हॉन्गकॉन्ग, टोक्यो, न्यूयॉर्क और मुंबई जैसे बड़े शहरों में अब घर सिर्फ चार दीवारों का नाम नहीं रह गया है, बल्कि यह जिंदा रहने भर की जगह बनता जा रहा है. इसी कड़ी में इन दिनों सोशल मीडिया पर दुनिया का सबसे छोटा ‘रहने लायक कमरा’ चर्चा का विषय बना हुआ है, जिसे लोग ‘कॉफिन होम’ या ‘कैप्सूल अपार्टमेंट’ कह रहे हैं.
कब्र जैसा कमरा!
वायरल वीडियो में 25 साल का एक युवक अपने कमरे को दिखाता है. अंदर का नजारा चौंका देने वाला है. कमरे की चौड़ाई सिर्फ 2 फीट और लंबाई 6 फीट है. ऊपर लोहे की जाली लगी है, नीचे एक पतला सा गद्दा बिछा है.न खड़े होने की जगह है, न बैठने की सिर्फ लेटने भर की जगह है.
दीवार पर केवल एक छोटा पंखा, एक LED बल्ब और मोबाइल चार्ज करने के लिए एक सॉकेट लगा है. यही उसकी पूरी दुनिया है. बताया जा रहा है कि यह वीडियो चीन का है.
किराया 150 से 300 डॉलर, लेकिन सुविधाएं लगभग शून्य
हॉन्गकॉन्ग में ऐसे कॉफिन होम का किराया 150 से 300 अमेरिकी डॉलर प्रति महीना है. भारतीय मुद्रा में यह कई जगहों के PG रूम से भी सस्ता पड़ता है, लेकिन इसके बदले मिलने वाली सुविधाएं बेहद सीमित हैं.यहां न किचन है, न प्राइवेसी, न मेहमान बुलाने की अनुमति और न ही निजी सामान रखने की ठीक से जगह.
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पूरी दुनिया में बढ़ रहा माइक्रो लिविंग ट्रेंड
बिजनेस इनसाइडर की रिपोर्ट के मुताबिक, यह संकट सिर्फ हॉन्गकॉन्ग तक सीमित नहीं है.टोक्यो में कैप्सूल होटल अब लोगों के स्थायी घर बन चुके हैं.लंदन में शिपिंग कंटेनर काटकर 8×6 फीट के कमरे बनाए जा रहे हैं, जिनका किराया करीब 1200 पाउंड महीना है.मुंबई में चॉल के 100 स्क्वायर फीट के कमरे भी अब ‘लक्जरी’ माने जाने लगे हैं.
एक 28 साल के हॉन्गकॉन्ग निवासी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि मैंने 6 साल कॉफिन होम में गुजारे. अब मेरे कंधे हमेशा झुके रहते हैं, क्योंकि 6 साल तक मैं कभी पूरी तरह खड़ा ही नहीं हो सका.
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