कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी को हराने के लिए दुनिया भर में 100 से ज्यादा देश वैक्सीन पर रिसर्च कर रहे हैं. हालांकि इस रेस में धनवान और शक्तिशाली देश ही आगे जा रहे हैं. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादा पैसे वाले देशों ने कोरोना वायरस वैक्सीन की एक अरब से अधिक खुराक को अपने लिए रिजर्व करने की व्यवस्था कर ली है.
ऐसे में यह चिंता बढ़ रही है कि ऐसे देश जो आर्थिक तौर कमजोर और गरीब है वो इस वैश्विक महमारी को हराने के प्रयास में कतार में सबसे पीछे चले जाएंगे. हाल ही में अमेरिका और ब्रिटेन ने सैनोफी और उसके सहयोगी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन पीएलसी से वैक्सीन की आपूर्ति पर करार किया है. इसके बाद जापान और फाइजर इंक के बीच भी नया समझौता हुआ है.
यूरोपीय संघ भी वैक्सीन प्राप्त करने के लिए आक्रामक कदम उठा रहा है. बता दें कि अंतरराष्ट्रीय समूह और कई देश टीके को सस्ती और सभी के लिए सुलभ बनाने का वादा कर रहे हैं, हालांकि दुनिया भर में करीब 7 अरब से ज्यादा लोगों को इस वैक्सीन के खुराक के लिए संघर्ष करना पड़ेगा.
साल 2009 में स्वाइन फ्लू महामारी के समय भी ऐसी स्थिति देखने को मिली थी जब इसके टीके की आपूर्ति पर धनी देशों का एकाधिकार स्थापित हो गया था.
लंदन स्थित एनालिटिक्स फर्म एयरफिनिटी के मुताबिक, अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और जापान ने अब तक कोरोना वायरस टीकाकरण की लगभग 1.3 बिलियन खुराक (संभावित) हासिल की है.
यहां तक कि अगर इस वैक्सीन को विकसित किए जाने का सही आकलन भी किया जाए तो जानकारी के मुताबिक दुनिया के लिए अभी भी पर्याप्त टीके उपलब्ध नहीं हैं.
एयरफिनिटी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रसमस बीच हेन्सन के अनुसार यह सोचा जाना भी बेहद महत्वपूर्ण है कि अधिकांश टीकों के दो खुराक की आवश्यकता हो सकती है.