भले ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने यह कहा हो कि एनआरसी में 40 लाख घुसपैठियों की पहचान नहीं हो गई है और भारत के कोई भी नागरिक को चिंता करने की जरूरत नहीं है. लेकिन शाह के दावे की जमीनी हकीकत हैरान करने वाली है.
जिन 40 लाख लोगों को एनआरसी में अवैध नागरिक बताया गया है उनमें 72 साल के रिटायर्ड टीचर, 6 साल के बच्चे, एमएलए से लेकर समाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एनआरसी के ड्राफ्ट में कई मामले तो ऐसे हैं जिनमें माता-पिता का नाम है तो बच्चों का नहीं तो कहीं एक भाई का नाम है तो एक का नहीं.
अभयपुरी से एआईयूडीएफ के पूर्व एमएलए अनंत कुमार मालो बताते हैं कि ड्राफ्ट में मेरा नाम नहीं है. जबकि मेरे भाई का नाम है और पत्नी का भी. मेरे भाई और मैंने एक ही डॉक्यूमेंट्स लगाए थे, लेकिन मेरा नाम ड्राफ्ट में नहीं
इसी तरह एक स्थानीय स्कूल में पढ़ाने वाले सरबत अली का नाम तो एनआरसी ड्राफ्ट में है, लेकिन उनके बच्चे रोज अहमद और राजिब अहमद का नाम नहीं है. सरबत का कहना है कि ऐसा कैसे हो सकता है. ड्राफ्ट में बड़ी गड़बड़ियां है.
इंडिया टुडे की टीम ने एनआरसी ड्राफ्ट आने के बाद मोरीगांव का दौरा किया. यहां एनआरसी ड्राफ्ट को लेकर लोगों के बीच काफी नाराजगी दिखाई दी. 64 वर्षीय अब्दुल लतीफ़ बताते हैं कि वो 6 भाई हैं और 5 का नाम लिस्ट में है और मैं और मेरा बेटा लिस्ट में नहीं है. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि सभी दस्तावेज देने के बावजूद नाम क्यों नहीं है. इसका जवाब हमें कौन होगा. खुद की नागरिकता साबित करने के लिए परेशान होना पड़ रहा है.
थानाघोरा गांव के रहने वाले अब्दुल सलाम बताते हैं कि कई हिंदू परिवारों के नाम लिस्ट में है, जबकि मुस्लिम परिवारों के नामों को हटा दिया गया है. मुझे लगता है कि धर्म के नाम पर भेदभाव किया गया है.
मोहम्मद मिराज अली भी इसी तरह की परेशानी से जूझ रहे हैं. वो बताते हैं कि मेरे गांव में हजारों लोग ऐसे हैं जिनके आधे परिवार का नाम लिस्ट में है तो आधों का नहीं है. मेरे पूरे परिवार का नाम लिस्ट में है, लेकिन मेरी पत्नी का नाम नदारद है.