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उइगर मुसलमानों से आखिर क्या है चीन की दुश्मनी?

प्रज्ञा बाजपेयी
  • 05 जून 2019,
  • अपडेटेड 4:11 PM IST
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चीन के शिनजियांग प्रांत में करीब 10 लाख उइगर मुसलमान रहते हैं. चीन के बाहर रह रहे उइगर नेताओं ने चेतावनी जारी की है कि आने वाले वक्त में हालात और खराब हो सकते हैं. उनका कहना है कि चीन में उइगर मुस्लिमों के नरसंहार की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. पिछले 10 वर्षों में मानवाधिकारों के इतिहास में ये सबसे गंभीर है.

अक्सर ये सवाल उठता है कि आखिर चीनी सरकार की मुस्लिम आबादी से क्या दुश्मनी है?

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चीन में इस्लाम-
चीन में कुल आबादी में 1.6 फीसदी मुसलमान हैं यानी 2.2 करोड़. वे यहां नए नहीं हैं. चीन में इस्लाम मध्य-पूर्व देशों के राजदूतों के जरिए आया था जो सातवीं शताब्दी में तांग साम्राज्य के सम्राट गाओजोंग से मिलने के लिए पहुंचे थे.

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इस दौरे के बाद ग्वांगझाऊ में पहली मस्जिद का निर्माण किया गया ताकि हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरने वाले अरबी और ईरानी व्यापारी यहां इबादत कर सकें. इस समय तक मुस्लिम व्यापारियों ने चीनी बंदरगाहों और सिल्क मार्ग के क्षेत्र में खुद को स्थापित कर लिया था. हालांकि, वे बहुसंख्यक हान चीनी समुदाय से करीब पांच शताब्दियों तक अलग ही रहे.

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13वीं शताब्दी में मंगोल युआन साम्राज्य के आते ही इसमें तब्दीली आई जब नए शासकों के लिए असंख्य मुस्लिम अपनी सेवा देने के लिए चीन आए. ये नए शासक मंगोल साम्राज्य के संस्थापक चंगेज खान के वंशज थे. इन मंगोलों को चीनी साम्राज्य में प्रशासन का बिल्कुल ही अनुभव नहीं था इसलिए उन्होंने मदद के लिए सिल्क मार्ग के बुखारा और समरकंद जैसे प्रमुख शहरों के मुसलमानों की तरफ रुख किया. मंगोलों ने पश्चिम एशिया के लोगों और ईरानी लोगों की बड़े पैमाने पर भर्ती की और उन्हें जबरदस्ती बसा दिया.

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इस दौरान, समृद्ध अधिकारी अपनी बीवियों को अपने साथ लाए जबकि निम्न तबके के अधिकारियों ने चीनी लड़कियों से शादी कर ली.

चंगेज खान ने 12वीं शताब्दी में यूरेशिया के अधिकांश हिस्से पर जीत दर्ज कर ली थी, उसके उत्तराधिकारी महाद्वीप के अलग-अलग हिस्सों में शासन कर रहे थे. इस वक्त विचारों और संस्कृति का आदान-प्रदान हुआ. चीन और मुस्लिम दुनिया की सांस्कृतिक परंपराएं बिल्कुल नए अंदाज में साथ आईं.

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अगले आने वाले 300 वर्षों तक- मिंग साम्राज्य के दौरान शासन में मुस्लिमों का प्रभाव बना रहा. हालांकि, 18वीं शताब्दी में मुस्लिमों और चीन राज्य के रिश्ते बदलने लगे. इस दौरान कई हिंसक संघर्ष हुए क्योंकि राज्य मुस्लिम बहुल इलाकों पर सीधा नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कर रहा था.

किंग साम्राज्य  (1644-1911) के दौरान अभूतपूर्व रूप से जनसंख्या वृद्धि और क्षेत्र विस्तार हुआ. मुस्लिम आबादी ने कई मौकों पर किंग शासकों के खिलाफ विद्रोह किया. कई विद्रोहों को प्रवासियों की बढ़ती संख्या से जोड़कर देखा जाने लगा. राज्य ने इन विद्रोहों का दमन हिंसापूर्वक कर दिया और इसी के साथ चीन में कई दशकों से मुस्लिमों को दी गई जगह खत्म कर दी गई.

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1949 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद लोगों का भाषा, क्षेत्र, इतिहास और परंपरा के आधार पर 56 नस्लीय समूहों में बंटवारा किया गया. इनमें से 10 समूहों को अब मुस्लिम अल्पसंख्यकों के तौर पर जाना जाता है. घटती हुई आबादी के क्रम में उन्हें वर्गीकृत किया गया है- हुई, उइगर, काजाख, डॉन्गशियांग, किर्गिज, सालार, ताजीक, उज्बेक, बोनान और तातार.

जब चीन गणराज्य की स्थापना हुई तो एक साल तक तो मुस्लिमों को धार्मिक आजादी मिली हुई थी हालांकि 1966 से 1969 के बीच हुई सांस्कृतिक क्रांति के दौरान मस्जिदों को ढहाया गया, कुरानें नष्ट कर दी गईं, मुस्लिमों को हज जाने से रोका गया और सभी तरह की धार्मिक मान्यताओं को कम्युनिस्ट रेड गार्ड द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया. चीन की सरकार कम्युनिस्ट विचारधारा को प्रोत्साहित करती है. 1976 में माओ जेडोंग की मौत के बाद कम्युनिस्टों ने मुस्लिम समुदाय के प्रति थोड़ी उदार नीतियां अपनाईं.


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हालांकि, 9/11 हमले के बाद से तनाव बढ़ता ही गया. 2009 में शिनजियांग प्रांत में उइगर और हान चीनी समुदाय के बीच संघर्ष के बाद चरम तनाव पर पहुंच गया. इस घटना के बाद से चीन राज्य धीरे-धीरे और चुपचाप उइगर मुस्लिमों व अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों की गतिविधियों पर प्रतिबंध बढ़ाता जा रहा है. पिछले कई महीनों में उइगर मुस्लिमों के प्रति कई गैर-कानूनी प्रतिबंध थोपे जा रहे हैं. पश्चिम में पनपा इस्लामोफोबिया अब चीन में भी बढ़ता जा रहा है लेकिन मुस्लिम समुदाय के साथ इस तरह के बर्ताव के बावूजद पूरी दुनिया चुप्पी साधे हुए है.

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