SC का फैसला- ACB केंद्र के पास, ट्रांसफर-पोस्टिंग पर बड़ी बेंच करेगी सुनवाई

सभी पक्षों को सुनने के बाद इस पीठ ने 3 महीने पहले यानी एक नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पिछले हफ्ते दिल्ली सरकार ने पीठ के समक्ष इस मसले को उठाते हुए मामले में जल्द फैसला सुनाने का अनुरोध किया था.

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उपराज्यपाल अनिल बैजल और सीएम केजरीवाल (फाइल/ PTI) उपराज्यपाल अनिल बैजल और सीएम केजरीवाल (फाइल/ PTI)

संजय शर्मा / अनीषा माथुर / पूनम शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 14 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 11:57 AM IST

दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया. दो जजों की पीठ के फैसले के बाद भी मामला अभी पूरी तरह से सुलझा नहीं है, हालांकि कुछ मुद्दों जजों ने अपना फैसला साफ किया है. केंद्रीय कैडर के अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग के मुद्दे पर दोनों जजों में मतभेद ही रहा, इसलिए इस मुद्दे को बड़ी बेंच के पास भेज दिया गया है. इस मसले पर जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने सुनवाई की है. सबसे पहले जस्टिस एके सीकरी ने अपना फैसला पढ़ा.

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मामले में फैसला पढ़ते हुए जस्टिस सीकरी ने कहा कि राजधानी में सभी एक्जीक्यूटिव अधिकार दिल्ली सरकार के पास ही रहेंगे. जस्टिस अशोक भूषण ने भी कुछ मुद्दों पर जस्टिस सीकरी के साथ सहमति जताई, लेकिन ट्रांसफर-पोस्टिंग के मुद्दे पर दोनों जजों में मतभेद ही रहा, इसलिए इस मुद्दे को बड़ी बेंच के पास भेज दिया गया है.

हालांकि, दिल्ली में जमीन, पुलिस और कानून व्यवस्था से जुड़े सभी अधिकार केंद्र सरकार यानी उपराज्यपाल के पास ही रहेंगे. हालांकि, ये अभी अंतिम फैसला नहीं है क्योंकि दो जजों की बेंच में मतभेद होता दिख रहा है.

जस्टिस सीकरी ने अपने फैसले में कहा कि किसी अफसर की नियुक्ति या फिर ट्रांसफर को लेकर उपराज्यपाल राज्य सरकार के मंत्रिमंडल की सलाह पर फैसला ले सकते हैं. उन्होंने कहा कि IPS की ट्रांसफर-पोस्टिंग का हक उपराज्यपाल, और DANICS-DANIPS का फैसला मुख्यमंत्री के पास रहेगा. उन्होंने सुझाव दिया कि DASS और DANICS के अधिकारियों के मुद्दे पर एक कमेटी का गठन किया जा सकता है.

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अब दिल्ली सरकार राजधानी में जमीन के सर्किल रेट तय कर सकती है. जस्टिस अशोक भूषण ने भी ACB, कमीशन ऑफ इन्क्वायरी के मुद्दे पर जस्टिस सीकरी के फैसले में ही सहमति जताई है.

जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि दानिक्स का अधिकार सरकार के पास रहेगा, लेकिन एलजी की सहमति भी जरूरी है. अगर कोई विवाद रहता है कि दोनों पक्ष राष्ट्रपति के पास जा सकते हैं. अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार राष्ट्रपति के पास ही है.

सभी पक्षों को सुनने के बाद इस पीठ ने 3 महीने पहले यानी एक नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पिछले हफ्ते दिल्ली सरकार ने पीठ के समक्ष इस मसले को उठाते हुए मामले में जल्द फैसला सुनाने का अनुरोध किया था.

दिल्ली सरकार की ओर से पीठ को अनुरोध किया गया कि इस संबंध में फैसला जल्द सुनाया जाए क्योंकि प्रशासन चलाने में कई दिक्कतें आ रही है. पिछले साल संविधान पीठ ने अपना फैसला देते हुए कहा था कि दिल्ली में पुलिस, कानून व्यवस्था और भूमि को छोड़कर उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के किसी अन्य कामकाज में दखल नहीं देंगे.

सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में कहा गया था कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करना होगा और अगर किसी मुद्दे पर सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद हो जाए तो उपराज्यपाल उसे राष्ट्रपति के समक्ष रेफर करेंगे. हालांकि इस फैसले के बाद दिल्ली सरकार ने कहा था कि संविधान पीठ के फैसले के बाद भी कई मसलों पर गतिरोध बरकरार है.

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तब फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए. दिल्ली विधानसभा पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर के अलावा किसी भी विषय पर कानून बना सकती है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को भी पूरी तरह से उलट दिया, जिसमें हाई कोर्ट ने उपराज्यपाल को दिल्ली का असली बॉस बताया था.

हाई कोर्ट ने उपराज्यपाल को बताया था बॉस

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में उपराज्यपाल को ही दिल्ली का बॉस बताया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने 4 अगस्त 2016 को इस मसले पर सुनवाई करते हुए कहा था कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं और दिल्ली सरकार उपराज्यपाल की मर्जी के बिना कानून नहीं बना सकती.

हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार, उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं और वह अपने विवेक के आधार पर फैसला ले सकते हैं, साथ ही दिल्ली सरकार को किसी भी तरह का नोटिफिकेशन जारी करने से पहले एलजी की अनुमति लेनी ही होगी.

दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ ही राज्य की आम आदमी पार्टी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. 5 जजों की संविधान पीठ ने 6 दिसंबर, 2017 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

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