रांची ODI में मिली 17 रनों की जीत ने टीम इंडिया को सीरीज में बढ़त तो दिला दी, लेकिन इससे टीम के भीतर की हलचल शांत नहीं हुई. विराट कोहली की दबदबे वाली 52वीं ODI सेंचुरी और रोहित शर्मा की चमकदार 57 रनों ने भारतीय जीत की खूबसूरती बढ़ाई, मगर रायपुर ODI (आज, बुधवार) से पहले टीम के चारों तरफ एक अलग तरह का तनाव तैर रहा है- एक ऐसा तनाव, जो मैदान पर दिखाई नहीं देता, लेकिन ड्रेसिंग रूम की हवा में साफ महसूस किया जा सकता है.
रांची में माहौल बिल्कुल अलग था. दर्शकों की आवाज, बैट-बॉल की टकराहट और भारतीय खिलाड़ियों की ऊंची ऊर्जा... सबकुछ जीत के अनुकूल दिखा... कोहली का क्लासिक कंट्रोल्ड अटैक, रोहित की टेम्पो सेट करने वाली पारी और बॉलिंग यूनिट की कसी हुई कोशिशों ने भारत को पहले मुकाबले में जीत दिलाई.
... लेकिन इसी जीत की शाम के बाद, कई रिपोर्ट्स में ड्रेसिंग रूम के भीतर की खटपट ने जगह घेर ली. खबरें आईं कि हेड कोच गौतम गंभीर और कुछ सीनियर खिलाड़ियों के बीच कुछ रणनीतिक मुद्दों को लेकर मतभेद हैं. गंभीर के कोचिंग स्टाइल को लेकर यह चर्चा नई नहीं है. उनकी डायरेक्ट अप्रोच, तेज टेम्परामेंट और हर फैसले में आक्रामकता उनकी पहचान है, लेकिन यह भी सच है कि हर खिलाड़ी इस टोन को समान रूप से नहीं पचा पाता.
गंभीर की 'हार्डलाइन'... कहां अटक रही है बात?
रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि टीम की प्लानिंग, कुछ चयन फैसलों और मैच सिचुएशंस में ऑन-फील्ड कॉल्स को लेकर गंभीर और दो-तीन सीनियर चेहरों के बीच अनबन हुई. भारतीय क्रिकेट में मतभेद नई बात नहीं- कोच-कप्तान की केमिस्ट्री हमेशा एक निर्णायक फैक्टर रही है. लेकिन इस बार मुद्दा अलग है, क्योंकि यह सिर्फ कप्तानी या चयन का मामला नहीं, बल्कि टीम कल्चर और कम्युनिकेशन पर आधारित है.
गंभीर ने जबसे कमान संभाली है, उन्होंने साफ संदेश दिया है- 'स्ट्रक्चर पहले, नाम बाद में.' यह अप्रोच कुछ खिलाड़ियों के लिए प्रेरक साबित होती है, जबकि कुछ के लिए चुनौतीभरी..., ऐसे माहौल में रांची की जीत ने भले ही बाहरी माहौल को पॉजिटिव बनाया हो, लेकिन अंदरूनी मुद्दों को पूरी तरह दबा नहीं पाई.
रायपुर मे टीम हार्मनी की भी परीक्षा
रायपुर के लिए टीम इंडिया जब उतरेगी, तो उनके सामने दो मोर्चे होंगे- दक्षिण अफ्रीका जैसी अनुशासित टीम को मात देना और ड्रेसिंग रूम की हवा को हल्का रखना. यह मैच सिर्फ सीरीज का दूसरा मुकाबला नहीं, बल्कि उस भरोसे का टेस्ट भी है, जिसे किसी भी सफल टीम का आधार माना जाता है.
भारतीय टीम प्रबंधन भली-भांति जानता है कि इस समय गलत मैसेज बाहर गया तो उसके दूरगामी असर हो सकते हैं. खासकर तब, जब कोहली और रोहित जैसे दिग्गज खिलाड़ी अब अपने करियर के अंतिम चरण में हैं और टीम के ट्रांजिशन फेज की शुरुआत अगले दो-तीन साल में तय है. ऐसे में कोच और सीनियर खिलाड़ियों का तालमेल भविष्य की दिशा तय करेगा.
सिर्फ स्किल नहीं, मानसिक मजबूती का भी इम्तिहान
दक्षिण अफ्रीका इस समय ODI फॉर्मेट में टॉप-5 में भले न हो, लेकिन उनका टेम्परामेंट कभी हल्का नहीं होता, पहली बाजी हारने के बावजूद वे रायपुर में और कड़ा मुकाबला देंगे. ए़डेन मार्करम. मार्को जानसेन, टेम्बा बावुमा जैसे खिलाड़ी भारत को किसी भी हाल में हल्के में नहीं लेते. लिहाजा भारतीय टीम को सिर्फ स्किल नहीं, बल्कि सामूहिक फोकस भी दिखाना होगा...क्योंकि यही वह पार्ट है, जो आमतौर पर ड्रेसिंग रूम के अंदरूनी तनाव के समय टूटता है.
रायपुर इंडियन क्रिकेट की ‘साइलेंट बैटलफील्ड’ है
रांची की जीत ने भारतीय खेमे में आत्मविश्वास भरा है, लेकिन रायपुर वह जगह है जहां टीम के अंदर की साइलेंट स्टोरी असली टेस्ट से गुजरेगी. अगर खिलाड़ी मैदान पर वही ऊर्जा और एकजुटता दिखाते हैं, तो यह जीत सिर्फ सीरीज में 2-0 की अजेय बढ़त नहीं, बल्कि टीम हार्मनी के लिए भी जीत होगी. लेकिन अगर मतभेदों की फुसफुसाहट मैदान तक पहुंची, तो दक्षिण अफ्रीका की चुनौती और कठिन हो सकती है.
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