इस्लाम के पांच फर्ज कामों में एक हज होता है. हर हैसियतमंद मुसलमान पर जिंदगी में एक बार हज करना फर्ज है. सऊदी अरब के मक्का में हर साल दुनियाभर के लाखों मुसलमान हज के लिए इकठ्ठा होते हैं. हज तीर्थयात्रा में मुस्लिम मक्का और उसके नजदीकी पवित्र स्थलों अराफात, मीना और मुजदलिफा जाते हैं. ( Photo: Getty)
भारत समेत दुनिया भर के 20 लाख से ज्यादा मुसलमानों ने रविवार को सऊदी अरब
के मक्का में काबा का तवाफ कर हज यात्रा शुरू की. ( Photo: Getty)
शारीरिक और आर्थिक तौर पर सक्षम मुस्लिमों के लिए जीवन में एक बार हज करना जरूरी माना जाता है. हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है. इन 5 स्तंभों को इस्लाम की नींव के तौर पर देखा जाता है. ( Photo: Getty)
हज इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने के 8वें दिन से 13वें दिन के बीच किया जाता है. ( Photo: Getty)
हज का पहला चरण एहराम है. हाजी सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं. ये बिना सिला हुए होते हैं. मिकात के पास जाते ही तीर्थयात्रियों को एहराम में होना चाहिए. हज में आंतरिक शुद्धि पर विशेष ध्यान दिया जाता है. एहराम का उद्देश्य यह दिखाना है कि अल्लाह के सामने अमीर-गरीब सभी एक बराबर हैं.
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पहले दिन हाजी तवाफ करते हैं. तवाफ में तीर्थयात्री काबा के 7 बार चक्कर लगाते हैं.
अगर वे काबा के बिल्कुल नजदीक होते हैं तो इसे छूकर चूमते भी हैं. काबा इस्लाम में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है.
तवाफ पूरा करने के बाद हाजी काबा के नजदीक दो पहाड़ियों साफा और मारवाह के बीच सात बार चक्कर लगाते हैं. सुबह की नमाज अदा करने के बाद हाजी मीना जाते हैं और वहां पूरा दिन इबादत करते हैं. हाजी यहीं पर एक रात बिताते हैं.
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अराफात- हज का दूसरा दिन 'अराफात का दिन' कहलाता है. तीर्थयात्री अराफात पर्वत पर पूरा दिन बिताते हैं. अराफात पहाड़ को 'माउंट ऑफ मर्सी (दया का पर्वत)' भी कहा जाता है. इस्लाम के मुताबिक, पैगंबर मोहम्मद ने इसी पहाड़ी पर अपना अंतिम उपदेश दिया था. अगर कोई तीर्थयात्रा अराफात में अपनी दोपहर नहीं बिताता है तो उसकी हज यात्रा को अधूरा माना जाता है.
सूर्यास्त होने के बाद हाजी अरफाह से मक्का के नजदीक एक खुली जगह मुजदालिफा जाते हैं. यहां प्रार्थना के बाद शैतान पर पथराव के लिए पत्थर इकठ्ठा करते हैं.
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हाजी मुजदलिफा में सूर्योदय के पहले तक रुकते हैं. सूर्योदय होते ही मीना जाते हैं. यहां पर तीर्थयात्री तीन सबसे ऊंचे स्तंभों को (स्तंभों को शैतानों का रूप माना जाता है) को 7 पत्थर मारने का रिवाज पूरा करते हैं.
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कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को सपने में अपने बेटे की कुर्बानी देने का हुक्म दिया था, लेकिन एक शैतान ने हजरत इब्राहिम को अल्लाह की आज्ञा ना मानने के लिए कहा. तब हजरत इब्राहिम ने शैतान पर पत्थर फेंके. हजरत इब्राहिम जब अपने बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे तो अल्लाह ने वहां एक भेड़ भेज दी और इस तरह हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे के बजाए जानवर की कुर्बानी दी. दरअसल, अल्लाह यह नहीं चाहते थे कि हजरत इब्राहिम बेटे की कुर्बानी दें, वह केवल हजरत इब्राहिम की आजमाइश कर रहे थे.
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शैतान पर पत्थर फेंकने के बाद जानवर की कुर्बानी दी जाती है. ज्यादातर हाजी भेड़ की कुर्बानी देते हैं, जैसे कि हजरत इब्राहिम ने दी थी. हालांकि वे किसी और को भुगतान करके कुर्बानी दिलवा सकते हैं. यह कुर्बानी ईद-उल अजहा या बकरीद के दिन दी जाती है.
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कुर्बानी के बाद पुरुष अपना सिर मुंडवा देते हैं. इसके बाद हाजी मक्का जाते हैं और फिर से तवाफ करते हैं.
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पांचवें और 6वें दिन मीना में खंभों पर फिर से पत्थर फेंके जाते हैं. सूर्यास्त होने से पहले वे फिर मक्का लौट जाते हैं.
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मक्का छोड़ने से पहले हाजी अंतिम बार तवाफ दोहराते हैं.
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पैगंबर इब्राहिम के बेटे हजरत इस्माइल और इब्राहिम की बीवी हजरत हाजिरा एक रेगिस्तान में भटक गए थे. हजरत इस्माइल प्यास से तड़प रहे थे. अपने बेटे की जान बचाने के लिए हजरत हाजिरा पानी की तलाश में साफा और मारवा पहाड़ियों के बीच दौड़ लगा रही थीं. थककर वह जमीन पर गिर पड़ीं और अल्लाह से गुहार लगाई. तभी हजरत इस्माइल ने जमीन पर अपना पैर पटका और पानी निकल आया. हजरत हाजिरा और हजरत इस्माइल की जान बच गई. इस जगह से निकलने वाले पानी को आब-ए जमजम कहा जाता है.
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अल्लाह ने पैगंबर इब्राहिम को तीर्थस्थान बनाने का हुक्म दिया. अल्लाह के हुक्म को मानते हुए हजरत इब्राहिम और हजरत इस्माइल ने यहीं पर पत्थर से एक निर्माण करवाया जो दुनिया में काबा के नाम से मशहूर हुआ.
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