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धर्म

जानें- नमाज अदा करना क्यों है जरूरी? ये हैं इस्लाम के 5 फर्ज

प्रज्ञा बाजपेयी
  • 27 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 12:30 PM IST
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इस्लाम के 5 स्तंभ या फर्ज माने गए हैं. इस्लाम धर्म में इनपर अमल करना हर मुसलमान के लिए फर्ज यानी जरूरी है.

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इस्लाम में 5 वक्त की नमाज इस्लामिक मान्यताओं में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है. नमाज अल्लाह को राजी करने और उससे माफी मांगने का अहम जरिया है. माना जाता है कि नमाज अदा करते वक्त इंसान अल्लाह के सबसे ज्यादा करीब होता है. आइए जानते हैं क्या हैं इस्लाम में 5 फर्ज, जिनपर अमल करना हर मुसलमान के लिए जरूरी है...

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1. शहादत (पहला कलमा) : ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूल अल्लाह. पहले कलमे का मतलब है, अल्लाह एक है, अल्लाह के सिवा कोई माबूद (दूसरा खुदा) नहीं है और पैगंबर मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं.

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2.सलात (नमाज): हर मुसलमान पर दिन में पांच बार पढ़नी वाजिब है. फज्र (तड़के), जुहर (दोपहर), अस्र (सूरज ढलने से पहले), मगरिब (सूरज छिपने के बाद) और ईशा (रात). ये वो वक्त हैं जब नमाज पढ़ी जाती है. इसके अलावा भी कई नफील नमाजें हैं, जो अलग-अलग दिन और अलग-अलग मौकों पर पढ़ी जाती हैं. नफील नमाज पढ़ना फर्ज तो नहीं है, लेकिन पढ़ने पर बेहद सवाब मिलता है.

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3. जकात (चैरिटी): जो मुसलमान अपनी कमाई की बचत कर सकते हैं. यानी ये हैसियतमंद मुसलमानों पर फर्ज है. आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है उसका 2.5 फीसदी हिस्सा जरूरतमंदों को दिया जाता है. रमजान के पाक महीने में हर हैसियतमंद मुसलमान पर जकात देना जरूरी है.

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4. रोजा: रमजान के महीने में रोजे रखना सभी मुसलमान पर फर्ज हैं. सिर्फ उस वक्त छूट मिली है जब या तो सफर में हो या फिर बीमार हो. रमजान इबादत का महीना है. ये मुसलमानों के लिए एक मौका है, जब वो अपने गुनाहों को माफ़ करा सकता है. अगर कोई शख्स बीमारी या किसी मजबूरी की वजह से रमजान के रोजे न रख पाए तो वह रमजान के बाद भी छुटे हुए रोजे रख सकता है.

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5. हज (मक्का की तीर्थयात्रा): जो मुसलमान इतना पैसा रखते हैं कि वो सऊदी अरब में मक्का जा सकते हैं उनके लिए जिंदगी में एक बार हज पर जाना जरूरी है. ये यात्रा जिलहिज के महीने में होती है. इस महीने को बकरीद के महीने के नाम से जानते हैं.

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वैसे तो नमाज किसी भी पाक साफ जगह पर पढ़ी जा सकती है, लेकिन इस्लाम में पुरुषों के लिए मस्जिद में नमाज पढ़ने को खास माना गया है. हदीस में मस्जिद में नमाज अदा करने के महत्व के बारे में बताया गया है. हदीस के मुताबिक, पैगंबर मोहम्मद ने कहा है कि अकेले में नमाज अदा करने की तुलना में मस्जिद में नमाज अदा करना 27 गुना ज्यादा सराहनीय है. इससे सामुदायिक एकता का उद्देश्य पूरा होता है. अगर कोई पुरुष बीमार है या मस्जिद जाने की हालत में नहीं है तभी घर में नमाज अदा कर सकता है.

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