चीन ऐतिहासिक तौर पर करीब 2000 सालों तक प्राचीन धर्मों बौद्ध और ताओजिम का अनुसरण करता आ रहा है. हालांकि अब चीन का सांस्कृतिक ढांचा पहले से काफी बदल चुका है.
चीन में ईसाईयों की संख्या करीब 5 करोड़ 40 लाख पहुंच गई है जोकि इटली (4 करोड़ 70 लाख) में ईसाईयों की संख्या से भी ज्यादा है. चीन में जल्द ही दुनिया की सबसे ज्यादा ईसाई आबादी होगी.
चीन में ईसाईयों की आबादी में सबसे तेजी से वृद्धि हो रही है. चीन में इस्लाम और ईसाई समेत एकेश्वरवादी धर्म बड़ी जगह भर रहे हैं. जहां दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिम चीन में बौद्ध धर्म का बोलबाला है. वहीं, पूर्वी चीन में ईसाईयों की तादाद बढ़ती जा रही है. शिनजियांग और गांसू जैसे इलाके मुस्लिम बहुल है.
एक चीनी रिसर्चर के मुताबिक, अगर यह वृद्धि दर 7 प्रतिशत रहती है तो 2040 तक चीन की 32 प्रतिशत आबादी ईसाई होगी. 2050 तक इसके 66.7 प्रतिशत होने का अनुमान है.
1980 के बाद से चीन में ईसाई धर्म के अनुयायियों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. राज्य में राज्य नियमित तीन ईसाई संगठन हैं और इसके अलावा कई अंडरग्राउंड हाउस चर्च हैं. प्यू सेंटर के 2010 के एक रिसर्च के मुताबिक, चीन की कुल जनसंख्या की 5 प्रतिशत आबादी ईसाई धर्म को मानती है. इसके बावजूद ईसाई धर्म और चीन सरकार के बीच बड़ी खाई है. चीन में ईसाइयों की गिरफ्तारी और सजा मिलने के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है.
ईसाईयों की आबादी बढ़ने से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और ईसाईयों के बीच संघर्ष शुरू हो गया है. 'द गार्जियन' की रिपोर्ट के मुताबिक, हूझो में चीनी प्रशासन ने ईसाईयों के लगातार विरोध प्रदर्शन के बावजूद एक चर्च से क्रॉस हटवा दिया. 2013 से 2015 के बीच 'सुरक्षा और सुंदरता' के नाम पर चीन में 1200 क्रॉस हटाए गए.
चीन आधिकारिक तौर पर एक नास्तिक देश है हालांकि पिछले 40 सालों में यहां धार्मिक गतिविधियां बढ़ी हैं. राज्य केवल 5 धर्मों को मान्यता देता है जिसमें बौद्ध, कैथोलिजम, डाओजिम, इस्लाम और प्रोटेस्टैंटिजम शामिल हैं. इनके अलावा किसी अन्य धर्म के क्रियाकलापों पर लगभग बैन है.
सत्तारूढ़ पार्टी सीसीपी आधिकारिक तौर पर नास्तिक है. यह राजनीतिक पार्टी अपने 9 करोड़ सदस्यों को धार्मिक मान्यताएं रखने से प्रतिबंधित करती है. पार्टी के किसी सदस्य के किसी धार्मिक संगठन या संस्था से जुड़ा पाए जाने पर उन्हें पार्टी से बर्खास्त तक किया जा सकता है. पार्टी के रिटायर सदस्यों को भी किसी धर्म का पालन करने की मनाही है.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सत्ता में आने के बाद से बौद्ध धर्म को बढ़ावा दे रहे हैं. शी जिनपिंग ने सार्वजनिक तौर पर बौद्ध, कन्फ्यूसियनिजम और दाओजिम से देश के नैतिक पतन पर नियंत्रण की बात कही थी.
सरकार का मानना है कि धार्मिक आस्था से वामपंथ की विचारधारा कमजोर होती है. पार्टी के सदस्यों को मार्क्सवादी नास्तिक बनने को कहा जाता है. चीन के पहले कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग ने ही धर्म को नष्ट करने की कोशिश की थी. माओत्से तुंग नास्तिकतावाद को बढ़ावा देते थे.
चीनी सरकार लगातार पारंपरिक चीनी मूल्यों को बढ़ावा देने वाली विचारधाराओं और विश्वासों को प्रचारित करती है जैसे कि कन्फ्यूशियनिजम और बौद्ध धर्म.
चीन में मुस्लिमों को भी कई तरह की पाबंदियों का सामना करना पड़ता है. शिनजियांग प्रांत में हिजाब पहनने, दाढ़ी बढ़ाने और रमजान महीने में रोजा रखने तक पर मनाही है.
पूर्व चीनी नेता जियांग जेमिन और हू जिंताओ ने बौद्ध धर्म के प्रचार को बढ़ावा दिया था. उन्हें लगता था कि बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार से शांतिपूर्ण राज्य की छवि उभरकर आती है. इससे सीसीपी की सौहार्दपूर्ण समाज के लक्ष्य की पूर्ति होती है. इससे ताइवान के साथ संबंध सुधारने में भी चीन को मदद मिलती है.