अमरनाथ यात्रा के लिए श्रद्धालुओं का पहला जत्था बहुस्तरीय सुरक्षा घेरे में बुधवार की सुबह जम्मू के भगवती नगर आधार शिविर से रवाना हुआ.
अमरनाथ धाम श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक महत्व और पुण्य की यात्रा है. जिसने भी इस यात्रा के बारे में जाना या सुना है, वह कम से कम एक बार जाने की इच्छा जरूर रखता है. आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए श्रद्धालु यहां आते हैं.
हिमालय की पर्वत श्रेणियों में स्थित बाबा बर्फानी की यह यात्रा बहुत कठिन है और इसमें जाने के लिए किसी भी इंसान का मेडिकली फिट होना बहुत जरूरी है.
अमरनाथ यात्रा की प्रमुख बात यह है कि यहां शिवलिंग स्वयंभू है यानी स्वयं निर्मित होता है. इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है.
कहा जाता है कि चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस शिवलिंग का आकार भी घटता बढ़ता जाता है. अमरनाथ का शिवलिंग ठोस बर्फ से निर्मित होता है जबकि जिस गुफा में यह शिवलिंग मौजूद है, वहां बर्फ हिमकण के रूप में होती है.
अमरनाथ की ही गुफा में भगवान शिव ने अमरत्व का रहस्य बताया था. कहा जाता है कि जब भगवान शिव माता पार्वती को कथा सुनाने ले जा रहे थे तो उन्होंने छोटो-छोटे नागों को अनंत नाग में, कपाल के चन्दन को चंदनबाड़ी में, पिस्सुओं को पिस्सू टाप पर तथा शेषनाग को शेषनाग पर छोड़ दिया. ये स्थल अमरनाथ यात्रा के दौरान मार्ग में आते हैं.
अमरनाथ गुफा से लगभग 96 किलोमीटर पर स्थित पहलगाम पहली ऐसी जगह है जहां भगवान शिव ने रुक कर आराम किया था. उन्होंने अपने बैल नंदी को भी इसी जगह छोड़ दिया था. नंदी बैल के बिना शिवलिंग को अधूरा माना जाता है.
इसके बाद शेषनाग झील पर पहुंचकर उन्होंने अपने गले से सांपों को भी उतार
दिया था. गणेश जी को उन्होंने महागुणस पहाड़ पर छोड़ दिया था. इसके बाद
पंचतरणी नाम की जगह पर पहुंचकर भगवान शिव ने पांचों तत्वों को भी त्याग
दिया था.
अमरनाथ गुफा श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. अमरनाथ की गुफा की लंबाई 19 मीटर, चौड़ाई 16 मीटर व ऊंचाई 11 मीटर है.
अमरनाथ यात्रा के लिए दो रास्ते हैं. एक पहलगाम से और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से. बलटाल का रास्ता दुर्गम है. सरकार पहलगाम से ही अमरनाथ जाने का निर्देश देती है.
कई हिंदू मंदिरों में स्वयंभू शिवलिंग होने का दावा किया जाता है. स्वयंभू लिंग मानव द्वारा निर्मित नहीं किए जाते हैं. ये बिना किसी मानवीय प्रयास के अपने आप रहस्यमयी तरीके से बन जाते हैं. मदुरई मीनाक्षी मंदिर में भी स्वयंभू लिंग स्थापित है.
गुफा में ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदें टपकती रहती हैं. यहीं पर ऐसी जगह है, जहां टपकने वाली हिम बूंदों से करीब दस फीट ऊंचा शिवलिंग बनता है.
खुद से बनने वाले इन शिवलिंगों के पीछे क्या कोई वैज्ञानिक कारण भी है? क्या ये पृथ्वी पर मौजूद किसी खास शक्ति से बनते हैं? वैज्ञानिकों का कहना है कि हां, संभव है कि किसी विशेष शक्ति की वजह से ऐसा हो सकता है.
कैलाश पर्वत या तिरुवन्नमलाई में निर्मित प्राकृतिक आकृति शिवलिंग की तरह ही दिखती है. ये प्रकृति की ही कला है. कुछ घटनाओं की वैज्ञानिक कुछ हद तक व्याख्या कर पाते हैं लेकिन अमरनाथ के शिवलिंग के रहस्य को पूरी तरह सुलझाया नहीं जा सका है. अमरनाथ की बर्फ से बनी शिवलिंग पहाड़ के छिद्रों से गुफा में गिरती बर्फ के पानी की बूंदों से बनती है लेकिन यह अब भी एक हैरत की बात है कि यह शिवलिंग एक नियत मौसम में ही कैसे बनता है.
हिंदू परंपरा में हर चीज में भगवान को देखा जाता है. संगीत, नृत्य, प्रसाद, पहाड़ों पर पदचिह्न, रंगोली, यहां तक कि एक विशेष तरह के फूल में भी शिवलिंग की कल्पना की गई है. हिंदू पत्थरों या शालग्राम (जीवाश्म) को एकत्रित कर पंचायतन पूजा भी करते हैं. पत्थरों का शिवलिंग के आकार का होना, कई प्राकृतिक चीजों का अनोखा रूप प्रकृति की शक्ति में विश्वास जगा देता है. हालांकि इन घटनाओं की व्याख्या के लिए विज्ञान में एक अनोखा प्रत्यय है जिसे माइक्रो सीसमिक ऐक्टिविटी कहते हैं जो पृथ्वी की गहराई से पत्थरों को सतह पर धकेलती है. क्या ये किसी दैवीय ताकत से होता है? पृथ्वी की गहराई में बहुत ही निम्न फ्रीक्वेंसी (ELF) सीस्मिक एनर्जी होती है. पृथ्वी के नीचे से ELF की वजह से कई स्वयंभू लिंगों का निर्माण हो सकता है या फिर हो सकता है कि इन घटनाओं के पीछे शायद कुछ ऐसी शक्ति हो जो अभी तक विज्ञान को ज्ञात नहीं है.