Ayodhya Ram Mandir: खुद को श्रीराम की प्रेमिका मानते हैं इस संप्रदाय के पुरुष, सिर पर पल्लू रखकर करते हैं आराधना

ईश्वर की सखा भाव में आराधना के अधिकतर उदाहरण, कृष्णभक्ति में मिलते रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. रामभक्ति में भी श्रीराम के साथ सखाभाव में उनकी भक्ति के उदाहरण मौजूद हैं और इस भाव का साक्षी है अयोध्या का कनक भवन मंदिर.

Advertisement
Ram Rashik Sampraday ( Representive image) Ram Rashik Sampraday ( Representive image)

सचिन धर दुबे

  • नई दिल्ली,
  • 21 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 9:56 PM IST

एक बार कैलास पर देवी पार्वती को राम नाम की महिमा समझाते हुए महादेव शिव ने श्लोक कहा... 
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे,
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने।

श्रीराम की स्तुति के रूप में यह श्लोक भारतीय जनमानस की प्राचीन परंपरा में शामिल रहा है. यह श्लोक अपने आप में उस भाव को सामने रखता है, जो यह कहता है कि 'हर ओर बस राम ही राम हैं.' अब जब अयोध्या में श्रीराम का मंदिर बनकर तैयार है और गर्भगृह में उनकी प्राण प्रतिष्ठा होने ही वाली है तो ऐसे में ध्यान आता है एक खास समुदाय, जो श्रीराम को सिर्फ अपना आराध्य ही नहीं मानता, बल्कि खुद को उनकी प्रेमिका मानकर उनसे प्रेम भी करता है. 

Advertisement

अब प्रेम में क्या स्त्री और क्या पुरुष. यह प्रेम की वह स्थिति है, जहां सारे बाहरी भेद मिट जाते हैं और सिर्फ रह जाती है आत्मा और परमात्मा की मौजूदगी. ऐसी मौजूदगी जहां दोनों तत्व मिलकर एक हो जाते हैं. कुछ ऐसे कि शिव और पार्वती मिलकर अर्धनारीश्वर बन जाते हैं और राधा से मिलकर कृष्ण राधेकृष्ण हो जाते हैं. 

ईश्वर की सखा भाव में आराधना के अधिकतर उदाहरण, कृष्णभक्ति में मिलते रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. रामभक्ति में भी श्रीराम के साथ सखाभाव में उनकी भक्ति के उदाहरण मौजूद हैं और इस भाव का साक्षी है अयोध्या का कनक भवन मंदिर. कनक भवन वह मंदिर, जिसके बारे में कहा जाता है कि मां कैकेयी ने यह स्वर्ण भवन सीताजी को उनकी मुंह दिखायी पर दिया था. वनवास जाने से पहले श्रीराम सीता इसी कनक भवन में रहते थे. श्रीराम से प्रेम करने वाला यह संप्रदाय इसी कनक भवन में उनकी आराधना करता है. श्रीराम से प्रेम करने वाले इस प्रेमी संप्रदाय को 'राम रसिक' नाम से जाना जाता है. 

Advertisement

अनोखी है राम रसिकों की राम आराधना 

अयोध्या निवासी मशहूर लेखक यतींद्र मिश्रा राम रसिक संप्रदाय के बारे में बहुत ही खूबसूरती से बताते हैं. वह कहते हैं कि, राम रसिक खूबसूरत संप्रदायों में से एक है. उन्होंने भगवान से अपना विशेष रिश्ता भी जोड़ रखा है . भगवान की आराधना करने का उनका तरीका सबसे अलग है और वे भगवान राम को प्रेम और सौंदर्य के प्रतीक के तौर पर देखते हैं. 

यतींद्र मिश्रा कहते है कि इस संप्रदाय के पुरुष स्त्री भाव से भगवान की उपासना करते हैं. श्रीराम को वे अपना जीजा और खुद को उनकी साली मानते है और उनसे प्रेमिका की तरह प्रेम करते हैं. जब भी राम रसिक भगवान राम की आरती कर रहे होते हैं हैं तो वे सिर पर पल्लू डाले रहते हैं. 

संत कवि रामानंद ने किया था राम रसिकों को एकजुट

राम रसिकों की परंपरा कई शाताब्दियों से है, लेकिन सबसे पहले संत कवि रामानंद ने इस संप्रदाय को एकजूट करने का प्रयास किया था. उनके शिष्य ब्राह्मण कृष्णदास 17वीं शाताब्दी के अंत में पहली बार जयपुर के निकट गलता में रामानंद संप्रदाय की गद्दी की स्थापना की. आगे चलकर उनके दूसरे शिष्य अग्रदास ने राजस्थान के विभिन्न भागों में रसिक सम्प्रदाय को स्थापित किया. फिर यहां से यह संप्रदाय अयोध्या, जनकपुर और चित्रकूट में फैला.

Advertisement

लक्ष्मण किले में भी है राम रसिकों की मौजूदगी

राम रसिकों की सबसे ज्यादा मौजूदगी कनक भवन मंदिर में ही देखी जाती है. हालांकि, लक्ष्मण किले में भी इनकी मौजूदगी है. आचार्य पीठ लक्ष्मण किला रसिक उपासना का सबसे प्राचीन पीठ है. आचार्य जीवाराम के शिष्य स्वामी युगलानन्य शरण की तपोस्थली पर इस मंदिर को साल 1865 में रीवा स्टेट के दीवान दीनबंधु के विशेष आग्रह के बाद बनवाया गया था.

दशहरे के पहले और बाद में शस्त्र धारण नहीं करते भगवान राम

इस मंदिर में भगवान राम सिर्फ दशहरे के वक्त शस्त्र धारण करते हैं. दशहरे के पहले और उसके बाद वह सिर्फ देवी सीता पति होते हैं. सखियों के जीजा हैं और जगत के स्वामी हैं. राम रसिक सिर्फ राम की भक्ति नहीं करते हैं, बल्कि राम से भक्ति में रचा-बसा प्रेम करते हैं. इस दौरान मंदिर में विवाह के पदों के गीत भी गाए जाते हैं.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement