Chhinnamasta Jayanti 2024: छिन्नमस्ता दस महाविद्या देवियों में से छठवीं देवी हैं. देवी का यह स्वरूप स्वयं का शीश काटने वाली देवी के रूप में जाना जाता है. देवी छिन्नमस्ता को प्रचण्ड चण्डिका के नाम से भी जाना जाता है. 21 मई यानी आज माता छिन्नमस्ता की जयंती मनाई जा रही है. हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को माता छिन्नमस्ता की जयंती मनाई जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी ने किसी महान उद्देश्य की पूर्ति हेतु स्वयं का मस्तक काट लिया था.
छिन्नमस्ता जयंती पूजन का शुभ मुहूर्त (Chhinnamasta Jayanti 2024 Shubh Muhurat)
चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 21 मई यानी आज शाम 5 बजकर 39 मिनट पर होगी और तिथि का समापन 22 मई यानी कल शाम 6 बजकर 47 मिनट पर होगा.
माता छिन्नमस्ता की पूजा शाम के समय ही करनी चाहिए. पूजा का समय आज शाम 4 बजकर 24 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 09 मिनट तक रहेगा.
छिन्नमस्ता जयंती पूजा विधि (Chhinnamasta Jayanti Pujan Vidhi)
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपनी हथेलियों का दर्शन करना चाहिए. तथा धरती माता को प्रमाण करना चाहिए. स्नानादि करने के बाद माता भगवती की पूजन अर्चना हेतु सभी सामाग्री को एकत्रित करके अपने पूजा स्थल में रख देना चाहिए. तथा कलश के लिए जल एवं अन्य पूजा की वस्तुओं को संग्रहित करके पूर्व या फिर उत्तर की तरफ मुंह करके माता का स्मरण करना चाहिए. इसके बाद अपने पूजन एवं व्रत का संकल्प लेना चाहिए. छिन्नमस्ता जयंती पर माता छिन्नमस्ता की पूजा होती है. वे शक्ति, साहस और ऊर्जा की देवी हैं. माता छिन्नमस्ता देवी काली का ही एक रूप है.
माता छिन्नमस्ता का स्वरूप
देवी छिन्नमस्ता का स्वरूप अत्यंत वीभत्स्य एवं भयंकर है. देवी छिन्नमस्ता अपने एक हाथ में अपना स्वयं का कटा हुआ शीश तथा दूसरे हाथ में खड्ग धारण करती हैं. उनके गले से रक्त की तीन धाराएं प्रवाहित होती हैं तथा देवी का कटा मुख और डाकिनी एवं वर्णिनी नामक दो परिचारिकाएं उन रक्त धाराओं का पान करती हैं.
देवी छिन्नमस्ता गुड़हल के पुष्प के समान लाल वर्ण (रंग) की हैं. उनकी आभा एवं कान्ति कोटि-कोटि सूर्य के समान है. उन्हें नग्न अवस्था में अस्त-व्यस्त केशों के साथ दर्शाया जाता है. देवी छिन्नमस्ता को सोलह वर्षीय कन्या के रूप में चित्रित किया जाता है, जिनके हृदय के समक्ष एक नीलकमल सुशोभित है. देवी मंगलसूत्र के रूप में सर्प तथा अन्य आभूषणों के साथ कटे हुए नरमुण्डों की माला धारण करती हैं.
माता छिन्नमस्तिका की कथा (Mata Chhinnamasta Katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवी भगवती अपनी सखियों के साथ नदी में स्नान करने गईं. तभी अचानक उनकी सखियों को बहुत तेज भूख लग गयी. लेकिन देवी की दोनों सखियां भूख और प्यास से बेहाल होने लगीं. उनका चेहरा सफ़ेद से काला पड़ने लगा. तब देवी ने अपने ही खड़ग से अपनी गर्दन काट ली जिसके बाद उनकी गर्दन से तीन रक्त की धारा फूट पड़ी. जिसमें से दो रक्त की धाराओं से देवी की सखियों की भूख मिटी जबकि एक धारा का पान स्वयं देवी ने किया.
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