'मां… मैं यहां हूं, मुझे मत छोड़ो, मैं जीना चाहता हूं'... पत्थर के नीचे से जिंदगी की गुहार

'यदि यह बच्चा बोल सकता, तो वह अपनी मां से कहता मां… मेरी सांसें तुम्हारे प्यार की तलाश कर रही हैं… मेरे छोटे हाथ तुम्हारे हाथ को छूना चाहते हैं… लेकिन ये पत्थर और फेवी क्विक मुझे तुम्हारे पास जाने नहीं दे रहे… कोई नहीं सुन सकता मेरी पुकार…' भीलवाड़ा में पत्थरों के नीचे दबे इस नन्हें नवजात को समय रहते बचा लिया गया.

Advertisement
पत्थरों के नीचे दबे मासूम को समय रहते बचा लिया गया (फोटो डिजाइन : विक्रम गौतम) पत्थरों के नीचे दबे मासूम को समय रहते बचा लिया गया (फोटो डिजाइन : विक्रम गौतम)

aajtak.in

  • भीलवाड़ा ,
  • 24 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:01 PM IST

'मां मैं यहां हूं… मेरी छोटी-छोटी सांसें तुम्हारे प्यार की तलाश कर रही हैं. मेरे छोटे हाथ तुम्हारे हाथ को छूना चाहते हैं, मेरे छोटे कदम तुम्हारे कदमों का सहारा चाहते हैं. लेकिन ये पत्थर… ये फेवी क्विक… मुझे तुम्हारे पास जाने नहीं दे रही. कोई नहीं सुन सकता मेरी पुकार…' राजस्थान के  भीलवाड़ा में पत्थरों के नीचे दबाया गया 10 दिन का मासूम यदि बोल सकता, तो शायद यही बातें अपनी मां से कहता.

Advertisement

हर सांस उसके लिए संघर्ष बन गई थी. फेवी क्विक ने उसके छोटे मुंह को पूरी तरह बंद कर दिया था. ऊपर से रखे भारी पत्थरों का दबाव उसकी नाजुक त्वचा पर था. फिर भी, उसके छोटे हृदय में जीवन की उम्मीद जिंदा थी. जी हां, राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के बिजौलिया उपखंड के सीताकुंड जंगल में मंगलवार दोपहर एक ऐसी घटना सामने आई, जिसने मानवता को झकझोर कर रख दिया. एक दस से बारह दिन का नवजात बच्चा जंगल में पत्थरों के नीचे दबा पाया गया. उसकी चीखें दबाई गई थीं, रोने की आवाज को फेवी क्विक और पत्थरों के नीचे दबा दिया गया था. 

नवजात की पहली लड़ाई

नन्हा सा जीवन अपने छोटे-छोटे हाथों और पैरों से संघर्ष कर रहा था. उसकी नन्हीं धड़कनें जीवन की उम्मीद थामे हुए थीं.  पत्थरों के दबाव और फेवी क्विक के बावजूद, शायद उसकी आत्मा अभी भी बोल रही थी मां… मुझे मत छोड़ो…तभी पास ही चरवाहा अपने मवेशी चराने आया. उसने हल्की-हल्की आवाज सुनी. मासूम की यह हल्की पुकार उसकी आखिरी उम्मीद थी. पास जाकर उसने देखा कि पत्थरों के बीच एक नवजात बच्चा दबा हुआ है, मुंह पर फेवी क्विक चिपकी हुई थी.

Advertisement

जंगल में आशा की किरण

चरवाहे ने तुरंत आसपास के ग्रामीणों को बताया. यह छोटी सी मदद उस नन्हें जीवन के लिए चमत्कार बन गई. ग्रामीण और पुलिस मौके पर पहुंचे. बच्चे को बाहर निकालते समय, उसकी नाजुक त्वचा और छोटे शरीर पर पत्थरों का दबाव स्पष्ट दिख रहा था. मुंह पर लगी फेवी क्विक ने उसे बोलने और सांस लेने से रोक रखा था. लेकिन हर सांस में जीवन की उम्मीद जिंदा थी.

अस्पताल में नन्ही जान

बच्चे को बिजौलिया अस्पताल में भर्ती कराया गया. डॉक्टरों ने बताया कि उसकी हालत में सुधार हो रहा है, लेकिन पत्थरों की गर्मी के कारण शरीर का बायां हिस्सा झुलस गया है. यदि वह बोल सकता, तो वह शायद कहता मां… मैं यहां हूं… मुझे मत छोड़ो… मुझे तुम्हारी गोदी और प्यार चाहिए…

समाज के लिए चेतावनी

समाजशास्त्री अनिल रघुवंशी कहते हैं कि यह घटना मानवता और सामाजिक संवेदनाओं के लिए चेतावनी है. एक दस दिन का नवजात, उसे इतनी क्रूरता का सामना करना पड़ा. नाजुक बच्चों की रक्षा हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए. समाजशास्त्री डॉ. गीतांजलि वर्मा के अनुसार, यह घटना केवल एक क्रूरता का मामला नहीं है, बल्कि समाज में बच्चों की सुरक्षा और संवेदनशीलता की कमी को दर्शाती है. उनका कहना है कि ऐसे मामले परिवार और सामाजिक संरचना की कमजोरी, बच्चों के प्रति उदासीनता और लापरवाही का परिणाम हैं.

Advertisement

(इनपुट : प्रमोद तिवारी)

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement