यहां शादी के लिए रात में कुंवारे लड़कों को छड़ी मारती हैं महिलाएं, 564 साल पुरानी परंपरा

जोधपुर में बेंतमार मेले का आयोजन किया गया. यह दुनिया का अनोखा मेला कहलाता है. इसमें महिलाएं कुंवारे युवकों को प्यार से छड़ी मार कर बताती हैं कि यह कुंवारा है. मान्यता है कि बेंत मारने के बाद कुंवारे लड़कों की जल्द ही शादी हो जाती है.

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564 साल पुरानी परंपरा है ये. 564 साल पुरानी परंपरा है ये.

अशोक शर्मा

  • जोधपुर,
  • 10 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 10:04 AM IST

राजस्थान के जोधपुर में रविवार को बेंतमार मेले का आयोजन किया गया. जिसमें बच्चों से लेकर बड़ों तक, कई लोग रंग बिरंगी पोशाक पहने नजर आए. बता दें, यह दुनिया का सबसे अनोखा मेला कहलाता है. 16 दिन की पूजा करने के बाद सुहागिन महिलाएं जोधपुर के भीतरी शहर में रात भर सड़कों पर अलग-अलग स्वांग खेलती हैं.

पूरी रात इस शहर पर महिलाओं का राज होता है. इस मेले को बेंतमार के नाम से भी जाना जाता है. बताया जाता है कि जोधपुर में पुराने समय से यह परंपरा चली आ रही है.

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इसमें भाभी अपने देवर और अन्य कुंवारे युवकों को प्यार से छड़ी मार कर बताती हैं कि यह कुंवारा है. मान्यता है कि बेंत मारने के बाद कुंवारे लड़कों की जल्द ही शादी हो जाती है.

16 दिन तक होता है गवर माता का पूजन
इस मेले की रात, शहर की सड़कों पर सिर्फ महिलाएं दिखती हैं और हर महिला के हाथ में एक छड़ी होती है. जैसे ही कोई कुंवारा पुरुष सामने दिखता है तो उस छड़ी से पुरुषों को मार पड़ती है. मेले से पहले 16 दिन तक गवर माता का पूजन होता है. फिर 16वें दिन पूरी रात महिलाएं घर से बाहर रहती हैं. और अलग-अलग समय में धींगा गवर की आरती करती हैं.

कहते हैं कि सिर्फ जोधपुर में ही धींगा गवर का आयोजन किया जाता है जिसे देखने के लिए न सिर्फ राजस्थान बल्कि दुनियाभर के लोग जोधपुर पहुंचते हैं. इस धींगा गवर की अनूठी पूजा करने वाली महिलाएं दिन में 12 घंटे निर्जला उपवास करती हैं. दिन में एक समय खाना खाती हैं और इसी तरह 16 दिन तक अनुष्ठान व पूजन चलता है.

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564 साल से हो रही है यह पूजा
जोधपुर की स्थापना राव जोधा ने 1459 में की थी. मान्यता है कि धींगा गवर पूजन तभी से शुरू हुआ है. राज परिवार से इस पूजन की परंपरा शुरू हुई थी. 564 सालों से यह पूजा चली आ रही है. मान्यता है कि मां पार्वती ने सती होने के बाद जब दूसरा जन्म लिया तो वह धींगा गवर के रूप में आई थीं.

भगवान शिव ने ही मां पार्वती को इस पूजन का वरदान दिया था. इन 16 दिनों में माता की पूजा में मीठे का भोग लगाया जाता है. जो महिलाएं यह व्रत रखती हैं उनके हाथ में एक डोरा बंधा होता है और इसमें कुमकुम से 16 टीके लगाए जाते हैं.

 

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