अयोध्या के भव्य श्रीराम मंदिर में राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान जो शिल्प सौंदर्य और धार्मिक गरिमा देखने को मिली, उसमें राजस्थान के जयपुर शहर की पारंपरिक कारीगरी का विशेष योगदान रहा. श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की प्रतिमाओं से लेकर उनके भव्य सिंहासन और अलंकरणों तक, हर तत्व में जयपुर की शिल्प परंपरा की गूंज स्पष्ट दिखाई दी.
इस आयोजन में सबसे उल्लेखनीय भूमिका रही जयपुर के सुप्रसिद्ध शिल्पकार रिषभ बैराठी और उनके परिवार की, जो आठ से नौ पीढ़ियों से इस पवित्र परंपरा से जुड़े हुए हैं. राम और सीता के लिए जो सिंहासन तैयार किया गया, वह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि भारतीय शिल्प कला का एक जीवंत उदाहरण भी है. इस सिंहासन का निर्माण शुद्ध चांदी से किया गया है, जिस पर 24 कैरेट शुद्ध सोने की प्लेटिंग की गई है. इसका डिज़ाइन प्राचीन अयोध्या की काष्ठकला और दक्षिण भारत के मंदिर स्थापत्य से प्रेरित है.
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रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में वर्णित राम दरबार की संरचना को ध्यान में रखते हुए सिंहासन की रचना की गई. निर्माण प्रक्रिया लगभग पांच महीने पहले प्रारंभ की गई थी और इसमें कुल आठ से दस कुशल शिल्पकारों ने भाग लिया. इस प्रक्रिया में डिज़ाइन निर्माण, नक्काशी, चित्रांकन, प्लेटिंग और फिनिशिंग जैसे विभिन्न चरण शामिल थे. बारीक नक्काशी हेतु पारंपरिक मैनुअल छैनी और आधुनिक पॉलिशिंग मशीनों का संतुलित उपयोग किया गया.
राम दरबार की मूर्तियों की स्थिति भी शास्त्र सम्मत है, श्रीराम को केंद्र में स्थान दिया गया है, उनकी बाईं ओर माता सीता विराजित हैं, जो पारंपरिक दृष्टि से दक्षिण दिशा में आती हैं. लक्ष्मण जी को दाईं ओर खड़ा दिखाया गया है, जो आज्ञाकारी अनुज और रक्षक के प्रतीक हैं, जबकि हनुमान जी को चरणों के समीप हाथ जोड़कर श्रद्धाभाव में दिखाया गया है.
सिंहासन पर उकेरे गए धार्मिक प्रतीकों में सूर्यदेव राम जी की सूर्यवंशीय परंपरा के प्रतीक हैं, कमल पवित्रता और दिव्यता का द्योतक है और कीर्ति मुख सकारात्मक ऊर्जा और राजशक्ति का प्रतीक माना गया है. इस पूरी रचना में शिल्प शास्त्र, वास्तु शास्त्र और धार्मिक ग्रंथों जैसे मयमतम्, मानसार और रामायण का गहन अध्ययन किया गया.
राम दरबार की मूर्तियों के डिज़ाइन और धार्मिक मर्यादा की देखरेख प्रशांत पांडे ने की. उन्होंने मूर्तियों की धार्मिक शुद्धता और स्थापित परंपराओं का पालन सुनिश्चित किया, जिससे पूरा कार्य पूर्ण श्रद्धा, संयम और शास्त्र सम्मत रीति से संपन्न हो सका.
रिदम जैन