भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने महिला आरक्षण बिल पर चर्चा के दौरान गीता मुखर्जी के नाम का उल्लेख किया. वे सोनिया गांधी के भाषण के ठीक बाद बोल रहे थे. जहां उन्होंने सोनिया पर कटाक्ष किया कि वे इस बिल का श्रेय लेना चाहती हैं लेकिन वे गीता मुखर्जी और सुषमा स्वराज का जिक्र करना भूल गईं. जिन्होंने इस बिल की भूमिका बनाई. इसके बाद से यह खोजा जाने लगा कि कौन हैं गीता मुखर्जी? जवाब है कि गीता मुखर्जी को 27 साल पहले संसद में महिला आरक्षण बिल पेश करने का श्रेय हासिल है. और ये काम गीता मुखर्जी ने प्राइवेट मेंबर बिल के जरिये किया था. गीता मुखर्जी को महिला अधिकारों का सबसे बड़ा पैरोकार माना जा सकता है - क्योंकि 1996 के बाद से तो गीता मुखर्जी ने महिला आरक्षण के लिए बाकी सारी चीजों का परित्याग ही कर दिया था.
अपने आस पास के लोगों के बीच गीता दी के नाम से लोकप्रिय गीता मुखर्जी अत्यंत मृदुभाषी और साधारण जिंदगी जीने की पक्षधर रहीं. तभी तो दिल्ली से हावड़ा के बीच जब भी आना जाना होता रहा, स्लीपर क्लास से ही चलना पसंद करती थीं - 7 बार सांसद रह चुके किसी शख्सियत के लिए ये तो असाधारण बात ही कही जाएगी.
जब संसद में पहली बार महिला आरक्षण बिल पेश हुआ
12 सितंबर 1996 को संसद में प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर गीता मुखर्जी ने भारतीय राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण पहल की थी - और ये भी देखिये कि 27 साल बाद सितंबर के महीने में ही वो बिल संसद से पास होने जा रहा है. पास होने की पूरी संभावना इसलिए है. बिल पास होने की संभावना सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि मोदी सरकार बहुमत में है - और किसी भी राजनीतिक दल ने ऐसा विरोध नहीं किया है, जिससे बिल लटक जाने की कोई आशंका हो.
1996 में ही गीता मुखर्जी ने संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण दिये जाने की मांग रखी थी. अव्वल तो हर मौजूदा सांसद चाहता है कि महिला आरक्षण बिल पास हो जाये, लेकिन विपक्षी खेमा उसमें अलग से जातिगत कोटे की मांग कर रहा है.
तब एचडी देवगौड़ा देश के प्रधानमंत्री थे, और यूनाइटेड फ्रंट की 13 राजनीतिक दलों के गठबंधन की सरकार थी. तब भी आलम यही था कि सरकार में शामिल जनता दल और कुछ अन्य पार्टियों के सांसद महिला आरक्षण के पक्ष में नहीं थे - विरोध को देखते हुए आखिरकार विधेयक को सीपीआई सांसद गीता मुखर्जी के नेतृत्व वाली संयुक्त समिति के समक्ष भेज दिया गया था. लोक सभा का कार्यकाल खत्म होते ही, विधेयक की भी उम्र पूरी हो गयी.
तब और अब में फर्क बस ये आया है कि ये विधेयक पुरानी संसद की जगह नये संसद भवन में पास होने जा रहा है - और नाम भी बदल कर नारी शक्ति वंदन अधिनियम कर दिया गया है.
गीता मुखर्जी का राजनीतिक कॅरियर
छात्र राजनीति से एंट्री लेने वाली गीता मुखर्जी 1980 से 2000 तक पंसकुरा चुनाव क्षेत्र का सात बार लोक सभा में प्रतिनिधित्व किया था. आखिरी बार वो 1999 में लोक सभा सदस्य बनी थीं. उससे पहले वो 1967 से 1977 के बीच चार बार पंसकुरा पूर्बा क्षेत्र से विधायक रह चुकी थीं. पहली बार वो सीपीआई की स्टेट काउंसिल के सदस्य के रूप में चुनी गयी थीं. 4 मार्च, 2000 को उनका निधन हो गया था.
गीता मुखर्जी पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता की छोटी बहन थीं - और जाने माने कम्युनिस्ट नेता बिश्वनाथ मुखर्जी की पत्नी. यहां तक कहा जाता है कि गीता मुखर्जी को इंद्र कुमार गुजराल सरकार में मंत्री पद का ऑफर मिला तो सिर्फ इसलिए ठुकरा दिया कि वो अपना पूरा ध्यान महिलाओं को आरक्षण दिलाने पर ही फोकस करना चाहती थीं.
महिला आरक्षण बिल पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बड़ा ही मार्मिक भाषण दिया. सोनिया गांधी ने सरोजिनी नायडू और अरुणा आसफ अली से लेकर इंदिरा गांधी तक का नाम लिया - अगर कांग्रेस नेता ने एक बार गीता मुखर्जी का भी नाम ले लिया होता तो क्या बात होती!
मृगांक शेखर