कौन हो सकता है अगला भारत रत्‍न? ये हैं 5 दावेदार...

वैसे तो भारत रत्न दिए जाने के बहुत से आधार हैं. पर जिन आधार पर चुनावी साल में 5 भारत रत्न दिए गए हैं उन्हें अगर फार्मूला माना जाए तो कम से कम 5 नाम और निकल कर आ रहे हैं. जिन्हें भविष्य में भारत रत्न मिले तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

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जिस हिसाब से भारत रत्न बांटा जा रहा है उम्मीद है कि जल्द ही कुछ और नामों की घोषणा हो सकती है. जिस हिसाब से भारत रत्न बांटा जा रहा है उम्मीद है कि जल्द ही कुछ और नामों की घोषणा हो सकती है.

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 10 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 9:02 AM IST

2024 के इस चुनावी मौसम में धड़ाधड़ भारत रत्न बांटे जा रहे हैं. और ऐसे लोगों को मिल रहे हैं जिन लोगों के बारे में खुद बीजेपी के नेताओं को भी यकीन नहीं था कि उन्हें उनकी पार्टी कभी भारत रत्न दे सकती है. जाहिर है हर नाम के पीछे राजनीतिक लाभ होने की बात कही जा रही है. फिलहाल यह कोई नया ट्रेंड नहीं है. जिसकी सरकार बनी उसने अपने हिसाब से भारत रत्न को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया. कांग्रेस ने एमजी रामचंद्रन को भारत रत्न दिया, विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बनी तो डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को मरणोपरांत भारत रत्न दिया गया. गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं तो मोरारजी देसाई, वल्लभभाई पटेल और जयप्रकाश नारायण जैसी शख्सियतों को भी भारत रत्न मिला.

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लोकतंत्र में सभी सरकारें एक ही लीक पर चलती हैं. अपने कोर वोटर्स और पार्टी की नीतियों को ध्यान में रखकर हमेशा फैसले होते रहे हैं. पिछले 15 दिनों के भीतर लालकृष्ण आडवाणी, कर्पूरी ठाकुर, पी वी नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और एस स्वामीनाथन को भी भारत रत्न देने के फैसले में कहीं न कहीं अपने राजनीतिक हित ही छिपे हैं. जिन आधार पर ये पांच पुरस्कार दिए गए हैं अगर हम उन्हें गणितीय सूत्र माने तो 5 और नाम दिखाई दे रहे हैं. जिन्हें मौका मिलते ही भारत सरकार भारत रत्न दे  सकती है. इन नामों का आधार कोई पॉलिकल सोर्स नहीं है बस समय-काल और परिस्थितियों के आधार पर इनका नाम निकाला गया है.

1-कांशीराम: उत्‍तर भारत में दलित राजनीति के बड़े नायक

उत्तर भारत में दलित राजनीति के मसीहा मास्टर कांशीराम को भारत रत्न दिए जाने की मांग उत्तर प्रदेश और बिहार के नेता समय समय पर करते रहे हैं. चौधरी चरण सिंह, नरसिम्हा राव और स्वामीनाथन के नाम की घोषणा होने के बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने तुरंत ट्वीट करके मास्टर कांशीराम के लिए भारत रत्न की मांग कर दी है. उधर बिहार में तेजस्वी यादव भी लगातार कांशीराम को भारत रत्न देने की मांग करते रहे हैं. बीजेपी के लिए भी दलित वोटों में घुसपैठ बनाने के लिए कांशीराम को भारत रत्न देना हितकर ही हो सकता है. क्योंकि बहुत कोशिश के बाद भी दलित वोटों में जिस तरह की पैठ पार्टी की होनी चाहिए वैसी नहीं हो पा रही है.

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उत्तर भारत के राज्यों में मायावती अभी दलित वोटों की सबसे बड़ी ठेकेदार बनी हुई हैं. कांग्रेस -समाजवादी पार्टी भी लगातार दलित वोटों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. चूंकि मायावती की राजनीति अब ढलान पर है इसलिए सही मौका है. आज तक के मूड ऑफ द नेशन के अनुसार 2024 के लोकसभा चुनावों में बीएसपी को एक भी सीट मिलती नहीं दिख रही है. विधानसभा चुनावों में भी मात्र एक प्रत्याशी ही बीएसपी का चुनाव जीत सका था. 2014 में भी बीएसपी को लोकसभा की एक भी सीट यूपी में नहीं मिली थी. मायावती को मिलने वाला वोट प्रतिशत भी लगातार गिर रहा है. इस तरह यह कन्फर्म है कि मायावती का वोट बैंक बहुत तेजी से ट्रांसफर हो रहा है. यह सही मौका है दलित वोटों को अपना बनाने का. बीजेपी को भी मिशन 370 सीट के लिए दलित वोटों का सहारा चाहिए. इसलिए इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह दिन दूर नहीं है जब केंद्र सरकार की ओर कांशीराम के लिए भी भारत रत्न की घोषणा हो जाए.

2-बाल ठाकरे: महाराष्‍ट्र और देशभर में हिंदुत्‍व के बड़े नायक

बाल ठाकरे की राजनीति यूं तो महाराष्ट्र तक ही सीमित रही है पर वक्त की डिमांड है कि उनके नाम के आगे भी भारत रत्न लग सकता है. उनके भारत रत्न दिए जाने के 2 कारण ऐसे हैं जिससे उन्हें यह अवार्ड मिलने की प्रोबेबिलीटी इन 5 लोगों में सबसे अधिक हो जाती है.देश में हिंदू हृदय सम्राट के नाम से बाल ठाकरे को ही जाना जाता है. जिस तरह देश का हिंदूकरण हो रहा है और देश में हिंदू हितों की बात हो रही है ऐसे समय में बाल ठाकरे को भारत रत्न मिलना जरूरी हो जाता है. लाल कृष्ण आडवाणी और पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न मिलने में कहीं न कहीं उनके राम काज का योगदान तो रहा ही है. फिर राम काज में बाल ठाकरे से आगे कौन रहा देश में है ? बाबरी ढांचे को ध्वस्त करने का देश में पब्लिकली कोई श्रेय लेता था तो वो केवल बाल ठाकरे ही थे. 

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दूसरी बात चुनावी राजनीति की है. बीजेपी ने महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाने के लिए बहुत तोड़ फोड़ मच रखी है. शरद पवार जैसे कद्दावर नेता की एनसीपी टूट चुकी है. पार्टी का नाम भी पवार को नहीं मिल सका है. इसी तरह शिवसेना भी टूट चुकी है. उद्धव ठाकरे के हाथ से भी सरकार के साथ पार्टी भी जा चुकी है. इन सबके बावजूद बीजेपी महाराष्ट्र में खुद को मजबूत नहीं पा रही है. इंडिया टुडे-आजतक के मूड ऑफ द नेशन के सर्वे के हिसाब से भारतीय जनता पार्टी को करीब 7 सीटों का नुकसान हो रहा है. मतलब साफ है कि महाराष्ट्र में अविभाजित शिवसेना के साथ बीजेपी अच्छी पोजिशन में थी.

बीजेपी को महाराष्ट्र में एक सहारा चाहिए . यह सहारा उद्धव ठाकरे से बेहतर कौन हो सकता है. अभी 2 दिन पहले ही उद्धव ठाकरे ने यह बयान देकर कि नरेंद्र मोदी से उनकी कोई दुश्मनी नहीं है, अपने संकेत दे दिए हैं. इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि जब यूपी में बीजेपी की अच्छी पोजिशन होने के बावजूद आरएलडी को पटाने के लिए चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिया जा सकता है तो बाल ठाकरे को क्यों नहीं . आखिर बाल ठाकरे तो बीजेपी के घर ही के थे.

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3-मनमोहन सिंह: 1990 के दशक में आर्थिक सुधार लाने वाले नायक

हालांकि मनमोहन सिंह की 2014 वाली स्पीच जिन लोगों ने सुनी होगी उन्हें कभी यकीन नहीं होगा कि पीएम नरेंद्र मोदी कभी मनमोहन सिंह के नाम को भारत रत्न के लिए आगे बढ़ाएंगे. इस स्पीच में मनमोहन सिंह ने नरेंद्र मोदी के पीएम बनने को देश के लिए हानिकारक बताया था. पर राजनीति में ऐसी बहुत सी बातें भुला दी जाती हैं. जिस तरह गुरुवार को राज्यसभा में मनमोहन सिंह का पीएम मोदी ने विदाई दी है उससे क्या संकेत मिलते हैं? मोदी ने मनमोहन सिंह की तारीफ में कहा कि एक सांसद के तौर पर मनमोहन सिंह दूसरों के लिए मिसाल हैं.

मोदी ने कहा कि हमारे बीच वैचारिक मतभेद रहे हैं पर सदन और देश का मार्गदर्शन करने वाले मनमोहन सिंह हमारे देश के लोकतंत्र की हर चर्चा में शामिल रहेंगे. मोदी ने कहा कि हाल में जब राज्यसभा में एक महत्वपूर्ण बिल पर वोटिंग हो रही थी, ये सभी को पता था कि बहुमत होने के कारण वोटिंग का नतीजा सरकार के पक्ष में रहेगा, लेकिन इसके बावजूद मनमोहन सिंह एक व्हीलचेयर पर सदन में आए थे.वो एक सांसद के तौर पर अपना कर्तव्य पूरा कर रहे थे. मैं मानता हूं कि गणतंत्र को मज़बूती देने के लिए वो सदन में आए थे.मोदी ने कहा, इसलिए मैं उनके लंबे और स्वस्थ जीवन की प्रार्थना करूंगा और उम्मीद करूंगा कि वो हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे.

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दरअसल जिन्होंने संजय बारू की किताब एन एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर पढ़ी है वो जानते हैं कि मनमोहन सिंह की स्थिति भी नरसिम्हा राव जैसी रही है. नेहरू-गांधी फैमिली के वे सताए हुए रहे हैं. पीएम रहते हुए मनमोहन सिंह ने सोनिया और राहुल के रवैये से नाराज होकर कई बार रिजाइन करने की सोची थी. राहुल गांधी ने मनमोहन सरकार के बिल को प्रेस के सामने फाड़ कर उनका अपमान किया था. नरसिम्हा राव सरकार की आर्थिक नीतियों मे जिस सुधार का बीड़ा मनमोहन सिंह ने उठाया था उन्हें वो अपने खुद के पीएम बनने के बाद जारी नहीं रख सके. मनमोहन सिंह के मन में यूपीए सरकार के कार्यकाल को लेकर बहुत मलाल रहा है. बीजेपी चाहेगी कि जिस तरह प्रणव मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित करके उन्हें अपना बना लिया वैसा ही कुछ मनमोहन सिंह के साथ भी हो जाए. साथ ही पंजाब में सरदार लोगों को भी संदेश चला जाएगा कि हम उनके बारे में भी सोचते हैं.

4-रजनीकांत: एक नायक जिसने तमिल सिनेमा से दुनिया में भारत की छाप कायम की

देश के सबसे बड़े सुपरस्टार हैं. तमिलनाडु में उनका जादू चलता है. दक्षिण के लोग उन्हें भगवान की तरह ट्रीट करते हैं. सबसे बड़ी बात यह भी है कि वे नरेंद्र मोदी को बहुत सम्मान देते हैं. अगर उनकी लोकप्रियता को आधार मान लिया जाए तो इस समय देश में भारत रत्न के सबसे बड़े दावेदार उनके सिवा कोई और नहीं है. इसके साथ ही वो बीजेपी के लिए वे जरूरत भी हैं. दक्षिण में बीजेपी लाख कोशिशों के बावजूद अपनी जगह नहीं बना पा रही है. अन्नामलाई के नेतृत्व में तमिलनाडु में बीजेपी लगातार एक्टिव है पर उसे पुश की जरूरत है.

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अगर रजनीकांत को भारत रत्न देते हैं तो उनके लाखों समर्थकों की निगाह में बीजेपी का सम्मान बढ़ जाएगा. करीब 2 साल पहले रजनीकांत ने एक राजनीतिक पार्टी भी बनाई थी. कई बार उन्होंने ऐसे संकेत भी दिए थे कि वो बीजेपी के साथ जा सकते हैं. पर शायद उचित राजनीतिक परिस्थितियों के न होने के चलते उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी को भंग कर दिया था. तमिलनाडु में राजनीतिक परिस्थितियां बदल रही हैं. द्रमुक और अन्ना द्रमुक की राजनीति अब कमजोर हो रही है. जाहिर है कि प्रदेश की राजनीति में पुराने प्लेयरों की जगह नए प्लेयर भरेंगे. इसी क्रम में साऊथ के एक और सुपरस्टार ने विजय ने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाई है. रजनीकांत की उम्र अब ढलान पर है. बीजेपी के लिए उनका हल्का सहारा भी काम आ सकता है.

5-शेख हसीना: तमाम चुनौतियों के बावजूद बांग्‍लादेश की राजनीतिक नायिका ने भारत का साथ नहीं छोड़ा

पिछले दिनों बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की बेटी साइमा वाजेद को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र को लीड करने के लिए नॉमिनेट किया गया है. साइमा वाजेद का मुकाबला नेपाल के सबसे वरिष्ठ अधिकारियों में से एक शंभू प्रसाद आचार्य के साथ था. भारत के सामने बहुत दुविधा की स्थिति थी. पर फाइनली भारत ने शेख हसीना की बेटी साइमा वाजेद का साथ दिया. यह बताना इसलिए जरूरी है कि भारत शेख हसीना के लिए किस हद तक जा सकता है. अभी तक केवल 2 विदेशी हस्तियों को भारत रत्न दिया गया है. इनमें दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला और पाकिस्तान के खान अब्दुल गफ्फार खान थे. शेख हसीना परिवार का संबंध गांधी फैमिली से भी रहा है. इसके पहले भी उन्हें भारत से कई पुरस्कार मिल चुके हैं. भारत के लिए इस समय बांग्लादेश को अपने साथ रखने की कूटनीतिक जरूरत है. दूसरे पश्चिम बंगाल में अपनी कट्टर हिंदू इमेज से इतर भी कुछ करने के बारे में बीजेपी सोच रही होगी. 

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पिछले कुछ समय से भारत के अपने पडोसी देशों के साथ रिश्‍ते उतार-चढाव से गुजरे हैं. लेकिन इन सबके बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना ही हैं जो चट्टान की तरह के साथ भारत के साथ खड़ी रही हैं. प्रधानमंत्री मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान ही वर्षों से लंबित भारत-बांग्‍लादेश सीमा विवाद सुलझाया गया. वैसे मोदी ही नहीं, पूर्व की अन्‍य सरकारों के साथ भी शेख हसीना के बेहतरीन रिश्‍ते रहे. और ये हो भी क्‍यों न, उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्‍व में लड़े गए बांग्‍लादेश मुक्ति आंदोलन में भारत ने कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया था. जब मुजीब और उनके परिवार पर कातिलाना हमला हुआ, तब शेख हसीना को भारत ने ही शरण और मदद दी थी. एक तरह से वे हमेशा भारत की बेटी बनकर ही रही हैं. प्रधानमंत्री मोदी को वे अपना भाई मानती हैं. ऐसे में यदि उन्‍हें भारत रत्‍न दिया जाए, तो किसी को ऐतराज नहीं होगा. इससे यह संदेश भी जाएगा कि भारत अपने पडोसी को कितना मान देता है. और यह तब और खास हो जाता है जबकि कथित रूप से हिंदुत्‍व वाली मोदी सरकार ऐसा फैसला लेती है. यह संदेश तो पाकिस्‍तान और मालदीव जैसे देशों तक पहुंचेगा ही.

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