सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एनसीआर से आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर उन्हें शेल्टर होम भेजने का आदेश दिया है. कोर्ट के इस फैसले के विरोध के नाम पर कुछ लोग इस समस्या से मुंह फेरकर उनके लिए जबरदस्त संवेदना दिखा रहे हैं. दरअसल कुत्ता प्रेमियों का यही एक्टिविज्म आज कुत्तों और समाज के लिए परेशानी का सबब बन गया है. गली के कुत्तों से समाज को कोई दिक्कत नहीं है , परेशानी तब बढ़ जाती है जब कुत्तों से प्यार करने वाले उन्हें लेकर एक्टिविस्ट की तरह व्यवहार करने लगते हैं.
नोएडा की करीब हर सोसायटी में यह एक कॉमन प्रॉब्लम है. 15 हजार की सैलरी पर एनसीआर में हर दिन करीब 16 घंटे काम करके अपनी आजीविका चला रहे एक सिक्युरिटी गार्ड को जब किसी कुत्ते को डंडे से हांकने के लिए गाली सुनने को मिलती है तो मानवता शर्म से डूबने लगती है. करीब हर सोसायटी में मुश्किल से पांच परसेंट ही कुत्ता प्रेमी रहते हैं पर 95 परसेंट लोगों पर वो भारी पड़ते हैं. क्योंकि वो अपने प्रेम के लिए एक्टिविस्ट बन जाते हैं. यही कारण है कि सामान्य लोग उनसे तौबा कर लेते हैं और उनके आगे घुटने टेक देते हैं.
स्ट्रे डॉग्स पर जबसे सुप्रीम कोर्ट से फैसला आया है लगातार कुत्तों को लेकर सोसायटी वाट्सऐप ग्रुप पर लोग अपने विचार लिखे जा रहे हैं. इस बीच नोएडा की लोटस जिंग सोसायटी के रेजिडेंट धर्मेंद्र सिंह ने अपनी सोसायटी के ग्रुप पर जो विचार रखे उससे आप समझ सकते हैं कि समस्या की जड़ कहां हैं? धर्मेंद्र सिंह लिखते हैं कि..
...कुत्तों का आवारा होना, मनुष्यों द्वारा उन्हें भोजन कराना, और उनका कभी-कभार काट लेना—ये तीनों ही सामान्य घटनाएं हैं. इन सभी के साथ हम सह-अस्तित्व की भावना से सदियों से कुत्तों के साथ रह रहे हैं. समस्या कुछ और है—समस्या की जड़ है ज़रूरत से ज़्यादा अपनी बुद्धिमानी को कुत्तों की ज़िंदगी में घुसाना. असल समस्या है कुत्ता-प्रेमियों का उनके प्रति भावनात्मक प्रेम, जो पूरी तरह अवैज्ञानिक तरीक़ों पर आधारित है.
अगर कोई व्यक्ति यह प्रार्थना करे कि कुत्तों को थोड़ा दूर हटकर खिला दें, ताकि हमें भी सुरक्षा मिले और कुत्तों को भी भोजन, तो कुत्ता-प्रेमियों का उस व्यक्ति पर झपट पड़ना और ऐसा प्रदर्शन करना मानो वह उनका निजी शत्रु हो, बल्कि ऐसे प्रदर्शित करना मानो वह स्वयं उस व्यक्ति के जीवन के लक्ष्यों में बाधा डाल रहा हो—यह मानसिक विकलांगता इस समस्या का एक बड़ा कारण है.
उस समय कुत्ता-प्रेमी ऐसा प्रदर्शित करता है मानो स्वयं वह रेबीज़ का शिकार हो और उसमें रेबीज़ के लक्षण हों, और बदतमीज़ी करने लगता है.
अगर कोई शिकायत करे कि ये कुत्ते हम पर झपट सकते हैं, और आप उन्हीं कुत्तों के सामने उस व्यक्ति से लड़ने लगते हैं, तो बताइए—क्या आप कुत्तों को बिगाड़ नहीं रहे? ज़रा सोचिए, अगर कोई आपके बच्चे की शिकायत करे कि ‘ये बच्चा हमें परेशान कर रहा है’ और आप शिकायत करने वाले से ही उलझ पड़ें, तो बच्चा सुधरेगा या और बिगड़ेगा?
धर्मेंद्र सिंह ने जो लिखा वो केवल उनकी सोसायटी का दर्द नहीं है. यही कहानी नोएडा की हर सोसायटी की है. मशहूर पॉडकास्ट तीन ताल के एक किरदार खानचा अपनी सोसायटी का किस्सा सुनाते हैं और बताते हैं कि कैसे एक सोसायटी गार्ड को केवल इसलिए भला बुरा कहा गया क्योंकि बेसमेंट में कुछ कुत्तों को उसने एक मेड को बचाने के लिए डंडे से हांकने की कोशिश की थी. खानचा बताते हैं कि एक बार सोसायटी के अंदर के कुछ कुत्तों को शेल्टर होम भेजने की कोशिश हुई. शेल्टर होम की गाड़ी कुत्तों को लादकर अभी निकली ही थी कि कुछ कुत्ता प्रेमियों ने हंगामा कर दिया. मुट्ठी भर कुत्ता प्रेमियों ने कार से उनका पीछा किया और आगे जाकर शेल्टर होम की गाड़ी को मजबूर कर दिया कि वो वापस कुत्तों को सोसायटी में छोड़कर आएं. अंत में कुत्ता प्रेमियों की जीत हुई और वो सोसायटी में उन कुत्तों की वापसी हुई.जबकि सोसायटी के दर्जनों लोगों को ये कुत्ते काट चुके थे.
कुत्ते का काटना कितना हार्मफुल हो सकता है इस पर किसी को फिक्र नहीं है
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में कुत्तों के काटने से होने वाली रेबीज की बीमारी से होने वाली मौतें वैश्विक स्तर पर 36% हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक हैं. हाल के वर्षों में, खासकर बच्चों और बुजुर्गों पर कुत्तों के हमलों की घटनाएं बार-बार सुर्खियों में रही हैं. आए दिन सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल होते हैं जिसमें देखा गया है कि गली के कुत्ते कितने हिंसक हो गए हैं.
दिल्ली में 2024 में 1.5 लाख से अधिक कुत्तों के काटने की घटनाएं दर्ज की गईं. कुत्तों के झुंड राहगीरों, साइकिल सवारों, और दोपहिया वाहन चालकों पर हमला करते हैं. फरवरी 2024 में, दिल्ली के तुगलक लेन में एक दो साल की बच्ची को कुत्तों ने मार डाला, और जून 2025 में रोहिणी के पूठ कलां में एक छह साल की बच्ची रेबीज से मर गई. ये घटनाएं न केवल शारीरिक चोट पहुंचाती हैं, बल्कि मनोवैज्ञानिक भय भी पैदा करती हैं.
धर्मेंद्र सिंह लिखते हैं कि जो लोग यह सोचते हैं कि कोई बात नहीं, कुत्ते ने काट लिया तो रैबीज़ का इंजेक्शन लगवा लेंगे. उन्हें मैं सलाह दूँगा कि वे रैबीज़ का इंजेक्शन साल में दो बार, लगातार तीन-चार साल तक लगवाकर देखें. तब उन्हें स्वयं अनुभव होगा कि इसके शरीर पर कितने गंभीर और लंबे समय तक रहने वाले प्रभाव हो सकते हैं. एंटी-रेबीज़ सीरम जिस जानवर से प्राप्त होता है, उस जानवर की शुद्धता और उसके प्लाज़्मा को कितनी अच्छी तरह परिष्कृत किया गया है, इसकी कोई गारंटी नहीं होती. संभव है कि प्लाज़्मा देने से रेबीज़ के लक्षण तो दब जाएं, लेकिन इसके साथ कोई और समस्या उत्पन्न हो जाए, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
कोर्ट के आदेश को कुछ लोग अव्यवहारिक मान रहे
कोर्ट ने आदेश दिया कि दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद, और फरीदाबाद में आठ सप्ताह के भीतर सभी आवारा कुत्तों को पकड़ा जाए और शेल्टर होम में रखा जाए. पहले चरण में 5,000-6,000 कुत्तों के लिए शेल्टर तैयार करने, सीसीटीवी निगरानी, और नसबंदी-टीकाकरण की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया है. कोर्ट ने पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2001 के उस प्रावधान को बेतुका बताया, जिसमें नसबंदी के बाद कुत्तों को उसी स्थान पर छोड़ने की बात कही गई है. कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि कोई भी कुत्ता वापस गलियों में नहीं छोड़ा जाएगा, और ऐसा होने पर सख्त कार्रवाई होगी. इसके अलावा कोर्ट ने कुत्तों के हमले की शिकायत के लिए हेल्पलाइन शुरू करने और चार घंटे के भीतर कार्रवाई करने का आदेश दिया है.
एनिमल राइट्स के लिए मशहूर हो चुकीं मेनका गांधी कोर्ट के इस फैसले को अव्यावहारिक बताती हैं.उनका कहना है कि 10 लाख कुत्तों को शेल्टर में रखने के लिए 15,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी. PETA इंडिया ने ङी इस फैसले को अतार्किक बताया . 11 अगस्त को, इंडिया गेट पर पशु प्रेमियों ने जिस तरह प्रदर्शन किया उसे तो ऐसा लगता है कि कहीं कोर्ट दबाव में न आ जाए.
कुत्ता प्रेमी अक्सर गलियों में कुत्तों को खाना खिलाते हैं, जिससे कुत्तों का झुंड एक जगह जमा होता है. सोसायटियों में इसी बात का झगड़ा है कि कुत्तों के लिए सोसायटी के अंदर ही फीडिंग पॉइंट बने. जो रेजिडेंट्स के लिए खतरा बन जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सवाल उठाया कि क्या पशु प्रेमी अपने घरों में कुत्तों को खाना नहीं खिला सकते, ताकि गलियों में खतरा कम हो? जब लोग कुत्तों को भगाने की कोशिश करते हैं, तो एक्टिविस्ट कानूनी धमकियां देते हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429, और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (PCA) की धारा 11 का हवाला देते हुए सिक्युरिटी गार्ड्स और मैनेजर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हैं. जाहिर है कि ऐसी स्थिति में सोसायटियों और मुहल्लों में तनाव बढ़ता है. मारपीट की घटनाएं होती हैं.
संयम श्रीवास्तव