गोरखपुर में इस नेता की मूर्ति के लिए बना चबूतरा तोड़कर BJP सरकार ने क्या गलती कर दी है?

चार दशकों तक पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे हरिशंकर तिवारी को बाहुबली, दबंग और माफिया टर्न पॉलिटिशियन कहा जाता था. पर बीजेपी की दो-दो सरकारों में वे माननीय रहे. 6 बार जनता ने उन्हें चुनकर विधानसभा में भेजा था. ऐसे शख्स की मूर्ति के लिए बनाया जा रहा चबूतरा तोड़कर यूपी सरकार ने बीजेपी को एक और घाव दे दिया है.

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हरिशंकर तिवारी की मूर्ति के लिए बनाया जा रहा चबूतरा धऱाशाई कर दिया गया हरिशंकर तिवारी की मूर्ति के लिए बनाया जा रहा चबूतरा धऱाशाई कर दिया गया

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 01 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 4:23 PM IST

पिछले चार दशकों से जो शख्स यूपी की राजनीति में छाया रहा, प्रदेश सरकार उसकी मूर्ति स्थापना के लिए दो गज जमीन भी देने को तैयार नहीं है. प्रदेश सरकार में करीब 7 साल तक मंत्री रहे, बीजेपी के दो मुख्यमंत्रियों के साथ कैबिनेट मिनिस्टर रह चुके शख्स की मूर्ति स्थापित करने के लिए बनाए गए चबूतरे को बुधवार को ध्वस्त करके यूपी सरकार आखिर क्या संदेश देना चाहती है? बात हो रही है पूर्वांचल के सात बार के विधायक रहे, पिछले साल दिवंगत हुए हरिशंकर तिवारी की. तिवारी पर बाहुबली विधायक होने का ठप्पा था, पर तिवारी करीब 16 शैक्षणिक संस्थाओं के प्रबंधक भी थे. तिवारी को माफिया टर्न पॉलिटिशियन कहा जाता था पर पूर्वांचल के लाखों ब्राह्मण के लिए वो मायने रखते थे. ऐसे शख्स की मूर्ति स्थापना के लिए बने चबूतरे को तोड़कर प्रशासन ने इतना छोटा दिल क्यों दिखाया, यह समझ से परे है? देखने में यह फैसला छोटा हो सकता है पर, यह मामला आगे बढ़ता है तो प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी की पूर्वी यूपी में चूलें हिल सकती हैं. साफ लगता है कि लोकसभा चुनावों में मिली पराजय, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के उत्थान से उत्तर प्रदेश बीजेपी ने अभी सबक नहीं लिया है. पार्टी को 2027 में जनता के बीच भी जाना है. आखिर इस तरह का एक्शन लेकर भारतीय जनता पार्टी जनता के बीच क्या मुंह दिखाएगी?

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1-क्या प्रशासन पर राजनीतिक दबाव है

हरिशंकर तिवारी के पैतृक गांव टाड़ा (गोरखपुर शहर से करीब 45 किलोमीटर) में 5 अगस्त को उनके दिवंगत होने के बाद पहली जयंती मनाने की तैयारी हो रही थी. इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय भी आने वाले थे. जाहिर है कि इस कार्यक्रम से पूर्वांचल के ब्राह्मणों का सेंटिमेंट जुड़ा हुआ था. ग्राम पंचायत ने प्रस्ताव पास कर इस अवसर पर हरिशंकर तिवारी की मूर्ति लगाने की तैयारी की थी. पर उत्तर प्रदेश शासन को खबर मिलते ही मूर्ति स्थापना के लिए बनाए जा रहे चबूतरे को तोड़ दिया गया. प्रशासन की ओर से कहा जा रहा है कि ग्राम प्रधान ने नियम कानूनों के तहत अनुमति नहीं ली. यह मामला पिछले सात दिन से चल रहा था. प्रशासन की मंशा अगर होती तो सात दिनों में नियम कानून के तहत फिर से अर्जी लेकर मामले को रफा दफा कर दिया जाता. पर ऐसा लगता है कि प्रशासन राजनीतिक दबाव में फैसले ले रहा था. जाहिर है स्थानीय राजनीति की यह कड़ी पूरे प्रदेश में फैलने वाली है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश  यादव ने भी ट्वीट करके घटना की निंदा की है. समाजवादी पार्टी ने आज इस मामले को विधानसभा में भी उठाया है. 

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दरअसल हरिशंकर तिवारी के दोनों पुत्र पूर्व सांसद भीष्म शंकर तिवारी और विनय शंकर तिवारी समाजवादी पार्टी में हैं. भीष्म शंकर को समाजवादी पार्टी ने डुमरियागंज से सांसद का टिकट भी दिया था. विनय शंकर भी विधायक रह चुके हैं. 2022 में चिल्लूपार विधानसभा से समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ चुके हैं. जाहिर है यह मामला स्थानीय राजनीति के कारण परवान चढ़ा है. पर अब यह मामला स्थानीय से बढ़कर प्रांतीय हो सकता है. इसमें संदेह नहीं किया जा सकता.

2- हरिशंकर तिवारी और ब्राह्रण स्वाभिमान

उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों का दबदबा रहा है. मंडल की राजनीति के हावी होने के पहले तक अधिकतर मुख्यमंत्री ब्राह्मण ही हुआ करते थे. प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों और राजपूतों के बीच जबरदस्त प्रतिस्पर्धा रही है, जो आज भी कम नहीं हुई है. गोरखपुर की राजनीति में गोरखनाथ मठ का बहुत दबदबा था. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होती थी पर गोरखपुर में वर्चस्व मठ का होता था. कहा जाता है कि इस वर्चस्व को तोड़ने के लिए गोरखपुर के एक डीएम ने हरिशंकर तिवारी को मजबूत बनाया. तबसे गोरखपुर शहर में मठ बनाम हाता के बीच संघर्ष चलता रहा. 1985 में प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह बने. वीर बहादुर सिंह भी जाति से राजपूत थे और गोरखपुर जिले के रहने वाले थे.गोरखपुर की स्थानीय राजनीति में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए उन्होंने हरिशंकर तिवारी को गिरफ्तार करवा दिया. जिस दिन हरिशंकर तिवारी की गिरफ्तारी हुई उस दिन कांग्रेस के एक और कद्दावर ब्राह्मण नेता कमला पति त्रिपाठी हरिशंकर तिवारी के होमटाउन बड़हलगंज उनके बुलावे पर आए हुए थे. त्रिपाठी को विदा करते ही हरिशंकर तिवारी गिरफ्तार कर लिए गए थे. इस तरह मठ बनाम हाता (तिवारी निवास), हरिशंकर बनाम वीरेंद्र शाही, हरिशंकर बनाम वीर बहादुर सिंह तीन- तीन मोर्चों पर राजपूतों से संघर्ष ने उन्हें ब्राह्मण स्वाभिमान का प्रतीक बना दिया. 

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पूर्वी यूपी के जिलों देवरिया, कुशीनगर, बस्ती, बलिया, आजमगढ, गाजीपुर , इलाहाबाद , जौनपुर आदि में आज भी ब्राह्मण हरिशंकर तिवारी के नाम पर प्राइड फील करता है. उसका कारण था कि हरिशंकर तिवारी के पहले तक ब्राह्मणों को मंत्र फूंककर मारने वाला समझा जाना. जिन लोगों ने कल्ट मूवी 'हासिल' देखी होगी उन्हें याद होगा कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के ठाकुर छात्रनेता बने इरफान बोलते हैं ' एक बात सुन लेओ पंडित तुमसे गोली वोली न चली. मंतर फूंक के मार दो साले को '. हरिशंकर तिवारी ने ब्राह्मणों के बारे में यह धारणा बदल कर रख दी. यही कारण है कि आज पंडित हरिशंकर तिवारी के विरासत को अखिलेश यादव कैश करना चाहते हैं.
 
3-पूर्वांचल में ब्राह्मणों की राजनीति

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता करीब 10 से 12 प्रतिशत के करीब हैं. यादव वोटर्स के बाद सबसे अधिक ब्राह्रणों की जनसंख्या है. इसके साथ ही ब्राह्मणों की राजनीतिक जागरूकता उन्हें प्रदेश में सबसे मजबूत बनाता है. प्रदेश में करीब 115 सीटें ऐसी हैं, जिनमें ब्राह्मण मतदाताओं का अच्छा प्रभाव है. करीब 15 फीसदी से ज्यादा ब्राह्णण मतदाता वाले 12 जिले ऐसे हैं जहां हार जीत इनके मूड पर निर्भर करता है. इनमें बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, इलाहाबाद प्रमुख हैं. यही नहीं पूर्वी यूपी से लेकर मध्य, बुंदेलखंड और पश्चिम उत्तर प्रदेश की करीब 100 सीटों पर ब्राह्मण मतदाता भले ही संख्या में ज्यादा न हों लेकिन राजनीतिक जागरूकता चलते जनमत को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं.यही कारण रहा है कि यूपी की सियासत में ब्राह्मणों का दबदबा पूरी तरह से रहा है. 2022 में भी 403 सीटों में से 52 ब्राह्मण विधायक चुनकर आए हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा 46 बीजेपी से हैं जबकि पांच सपा और एक कांग्रेस से जीत दर्ज की है. ऐसे ही 49 विधायक ठाकुर समाज से जीतकर आए है, जिनमें बीजेपी गठबंधन से 43, सपा से 4, बसपा से एक और  जनसत्ता पार्टी से राजा भैया हैं. 

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जिस तरह प्रदेश मे्ं सरकार के ऊपर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगता रहा है उस पर यह घटना नीम पर करेला चढ़ने जैसा है. 2024 के लोकसभा चुनावों में वैसे ही पिछड़ी जातियों ने बीजेपी का साथ छोड़ा है. अगर ब्राह्मण भी नाराज हो गए तो बीजेपी का बंटाधार तय है. 

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