इजरायल-ईरान युद्ध: अगर जरूरी हुआ तो भारत किसके साथ खड़ा होगा?

जिस तरह इजरायल के पीएम नेतन्याहु ने भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी को युद्ध संबंधी पूरे घटनाक्रम की और अपनी सुरक्षा की जानकारी दी है वो दोनों देशों की बीच की नजदीकी को प्रकट करता है. इस तरह ईरान भारत की मजबूरी है तो इजरायल हमारे लिए जरूरी है.

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इजरायल-ईरान में जंग बढ़ने के साथ क्रूड की कीमतों में इजाफा इजरायल-ईरान में जंग बढ़ने के साथ क्रूड की कीमतों में इजाफा

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 16 जून 2025,
  • अपडेटेड 2:19 PM IST

ईरान और इजरायल के बीच जंग अपने चरम पर पहुंच चुकी है.दोनों तरफ से जबरदस्त हमले जारी हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि वो जल्द ही दोनों देशों के बीच जंग को रुकवा देंगे. पर जब वो खुद दोनों पक्षों में से एक के साथ मजबूती से खड़ें हैं ऐसे में ईरान किस तरह उनकी बात पर भरोसा करेगा यह समझ से परे है. फिलहाल अभी तो यही लग रहा है कि दोनों देशों के बीच यह जंग काफी दिनों तक चलने वाली है. जाहिर है कि अगर युद्ध लंबा चलता है तो दुनिया दो ध्रुवों में एक बार फिर बंट सकती है. अगर ऐसा होता है तो सबसे बड़ी मुश्किल भारत के समक्ष आने वाली है. भारत की विदेश नीति ऐतिहासिक रूप से तटस्थता, रणनीतिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने पर आधारित रही है. दोनों देशों—ईरान और इज़रायल—के साथ भारत के गहरे और रणनीतिक संबंध हैं, और किसी एक को चुनना भारत के लिए आसान निर्णय नहीं होगा.

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पहले तो भारत किसी के साथ जाएगा नहीं और अपनी गुट निरपेक्ष वाली छवि बनाए रखेगा. पर कई ऐसे कारण हैं जिनके चलते भारत को द्विध्रुवीय व्यवस्था में अपना एक पक्ष चुनना ही होगा.

भारत-इज़रायल संबंध

इजरायल के अस्तित्व में आने के बाद करीब 4 दशकों तक भारत इस्लामी राष्ट्रों के दबाव में इजरायल के साथ कूटनीतिक रिश्ते नहीं बना सका. भारत और इज़रायल के बीच 1992 में  पहली बार नरसिम्हा राव के कार्यकाल में पूर्ण कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए.उसके बाद से भारत-इजरायल के बीच रिश्ते तेजी से मजबूत हुए हैं . इज़रायल भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रक्षा और प्रौद्योगिकी साझेदार बन गया है. भारत ने इज़रायल से बराक मिसाइल रक्षा प्रणाली, ड्रोन, राडार सिस्टम, और अन्य उन्नत हथियार प्रणालियां खरीदी हैं. 2023 तक, भारत के रक्षा आयात में इज़रायल का हिस्सा लगभग 10-12% रहा है. इज़रायल की साइबर सुरक्षा तकनीक और खुफिया सहयोग भी भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं, खासकर आतंकवाद विरोधी अभियानों में.

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भारत और इज़रायल दोनों आतंकवाद को एक साझा खतरे के रूप में देखते हैं. इज़रायल की खुफिया एजेंसियां, जैसे मोसाद, और भारत की RAW के बीच सहयोग ने आतंकवाद से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

इज़रायल ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों पर भारत के हितों का समर्थन किया है, जैसे कि कश्मीर मुद्दे पर भारत के रुख का समर्थन.

भारत-ईरान संबंध

भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और रणनीतिक संबंध हैं, जो सदियों पुराने हैं. ईरान भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के लिए महत्वपूर्ण है.  ईरान भारत के लिए कच्चे तेल का एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता रहा है. हालांकि, अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण 2019 के बाद भारत ने ईरान से तेल आयात कम कर दिया, लेकिन ईरान की भौगोलिक स्थिति भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बनी हुई है.

भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारी निवेश किया है, जो भारत को बिना पाकिस्तान पर निर्भर हुए मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है.  यह बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह चीन के ग्वादर बंदरगाह (पाकिस्तान) को संतुलित करता है.

अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) भारत, ईरान, और रूस को जोड़ता है, जो भारत के लिए व्यापार और रणनीतिक कनेक्टिविटी को बढ़ाता है.

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भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धांत रणनीतिक स्वायत्तता और गुटनिरपेक्षता रहा है. भारत ने ऐतिहासिक रूप से किसी भी वैश्विक या क्षेत्रीय संघर्ष में स्पष्ट रूप से एक पक्ष चुनने से परहेज किया है. भारत ने रूस और यूक्रेन के बीच भी तटस्थता बनाए रखी.
भारत ने सऊदी अरब और ईरान, या इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच संतुलन बनाए रखा है. हाल ही में, भारत ने फिलिस्तीन को मानवीय सहायता भेजी, जो उसकी संतुलित नीति को दर्शाता है.

अगर भारत को किसी एक को चुनना पड़े

भारत को मजबूरी में ईरान या इज़रायल में से किसी एक को चुनना पड़े, तो क्या करेगा? इस सवाल का जवाब इसमें छिपा हुआ है भविष्य में समीकरण कैसे बनते हैं. जैसा कि संडे को ईरानी अधिकारियों का बयान आया है कि अगर इजरायल परमाणु हमला करता है तो ईरान की ओर पाकिस्तान इजरायल पर परमाणु हमला करेगा. पाकिस्तान की ओर से अगर इस तरह का आश्वासन ईरान को युद्ध के दौरान मिलता है तो जाहिर है भारत और ईरान के बीच दूरी बढ़ेगी ही.

इसके पहले जिस तरह इजरायल के पीएम नेतन्याहु ने भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी को पूरे घटनाक्रम की और अपनी सुरक्षा की जानकारी दी है वो दोनों देशों की बीच की नजदीकी को प्रकट करता है. 
इज़रायल का रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग भारत के लिए तत्काल और दीर्घकालिक रणनीतिक महत्व रखता है. भारत की रक्षा आधुनिकीकरण और आतंकवाद विरोधी नीतियां इज़रायल पर निर्भर हैं.

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इज़रायल अमेरिका और पश्चिमी देशों का करीबी सहयोगी है. भारत के अमेरिका, यूरोपीय संघ, और क्वाड (QUAD) देशों (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ बढ़ते संबंध इज़रायल के पक्ष में झुक सकते हैं.

इसलिए भारत को मजबूरन एक पक्ष चुनना पड़े, तो रणनीतिक और वैश्विक गतिशीलता के आधार पर इज़रायल को चुनने की संभावना अधिक हो सकती है. हालांकि, भारत ईरान को पूरी तरह से त्यागने की संभावना नहीं रखता. चाबहार बंदरगाह और मध्य एशिया में भारत के हित ईरान को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाए रखते हैं. 

ऑपरेशन सिंदूर और कश्मीर पर ईरान और इजरायल का क्या रहा है रुख

इजरायल ने ऑपरेशन सिंदूर (6-7 मई 2025) के दौरान भारत को सैन्य और तकनीकी सहायता प्रदान की. भारतीय सेना ने इजरायली हथियारों जैसे बराक-8 मिसाइल, हारोप ड्रोन, और स्काईस्ट्राइकर ड्रोन का उपयोग किया, जिन्होंने पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों को नष्ट करने और ड्रोन हमलों को नाकाम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

टाइम्स ऑफ इजरायल की एक रिपोर्ट के अनुसार, इजरायली ड्रोनों ने कराची और लाहौर जैसे प्रमुख पाकिस्तानी शहरों में सैन्य ठिकानों को सटीक निशाना बनाया, जिसने भारत-इजरायल रक्षा सहयोग को मजबूत किया.

ऑपरेशन के दौरान इजरायल ने भारत को खुफिया जानकारी और रणनीतिक समर्थन भी प्रदान किया, विशेष रूप से पहलगाम हमले (22 अप्रैल 2025) के बाद.

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इजरायल ने पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की और इसे बर्बर और अमानवीय करार देते हुए भारत के साथ एकजुटता व्यक्त की. इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत के लोगों और पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की.

इजरायल ने कश्मीर मुद्दे पर भारत का खुलकर समर्थन किया और पाकिस्तान के खिलाफ भारत की कार्रवाइयों को वैध ठहराया, जो भारत के लिए कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था.

ऐतिहासिक रूप से, इजरायल ने 1971 के युद्ध और कारगिल युद्ध (1999) में भी भारत को हथियार और तकनीकी सहायता प्रदान की, जिसने दोनों देशों के बीच विश्वास को मजबूत किया.

ईरान ने ऑपरेशन सिंदूर पर स्पष्ट रूप से भारत का समर्थन नहीं किया. कुछ स्रोतों और एक्स पोस्ट्स के अनुसार, ईरान ने इस दौरान पाकिस्तान का समर्थन किया या कम से कम तटस्थ रहकर भारत के खिलाफ बयान दिए.  ईरान ने पहलगाम हमले की निंदा जरूर की और भारतीय अधिकारियों के साथ आतंकवाद पर चर्चा की, लेकिन कश्मीर मुद्दे पर उसका रुख भारत के लिए असहज रहा है.

ईरान ने कई बार कश्मीर को विवादित क्षेत्र के रूप में संदर्भित किया है, जो भारत की संप्रभुता के दावे के खिलाफ है. यह भारत-ईरान संबंधों में एक संवेदनशील मुद्दा रहा है.

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