Madhya Pradesh Assembly Election 2023: भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 के लिए तारीख का ऐलान कर दिया है. 23 नवबंर को प्रदेश में एक चरण में वोटिंग होगी और 3 दिसंबर को चुनाव के नतीजे की घोषणा की जाएगी.
मध्य प्रदेश बीजेपी ने इस बार मुख्यमंत्री पद के लिए किसी के नाम की घोषणा नहीं की है. इसके पहले हुए विधानसभा चुनाव में एमपी में शिवराज सिंह को सीएम फेस बनाकर ही चुनाव लड़ा गया है. साल 2018 में बीजेपी चुनाव में बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी, लेकिन कांग्रेसी विधायकों द्वारा कांग्रेस छोड़ भाजपा में आने के बाद उपचुनाव हुए और बीजेपी सरकार में वापसी कर पाई. इसके पहले 2013 का विधानसभा चुनाव शिवराज सिंह चौहान को सीएम फेस बनाकर ही लड़ा गया था. बीजेपी ने बहुमत की सरकार बनाई थी.
एमपी विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर बीजेपी ने सीएम फेस के लिए किसी के नाम पर मुहर नहीं लगाई है. ऐसा एमपी ही नहीं राजस्थान में भी किया गया. बीजेपी अभी तक प्रत्याशियों के नाम की चार लिस्ट जारी कर चुकी है. जिसमें तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित 7 सांसदों के भी नाम हैं. पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी इस लिस्ट में शामिल हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि यदि बीजेपी सत्ता में वापसी करती है तो इस बार सीएम फेस बदला जा सकता है.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अक्सर नए साल का जश्न मनाने के लिए महाराष्ट्र के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल शिरडी जाते हैं. उनके सार्वजनिक उत्सव आम तौर पर सादे होते हैं और काम से छुट्टी लेने का उनका विचार अपने परिवार के सदस्यों के साथ धार्मिक स्थानों का दौरा करना होता है. कम से कम यही वह छवि है जिसे वह विकसित करने में कामयाब रहे हैं. इसलिए जब 64 वर्षीय शिवराज सिंह चौहान ने सोशल मीडिया पर अपनी एक तस्वीर पोस्ट की, जिसमें वह गंगा के किनारे चिंतनशील मुद्रा में बैठे हुए थे, वह भी पेन और नोटिंग पैड लेकर.
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पार्टी की चौथी सूची, सीएम शिवराज ऋषिकेश में
17 नवंबर के चुनावों के लिए पार्टी द्वारा उम्मीदवारों की चौथी सूची की घोषणा के बाद सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले शिवराज सिंह चौहान ऋषिकेश में थे. मौजूदा सीएम को टिकट मिलना कोई खास खबर नहीं है, लेकिन चौहान के मामले में इससे इस बात को लेकर अटकलें खत्म हो गईं कि क्या वह महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव लड़ेंगे? क्योंकि हाल ही में आलाकमान से उनकी दूरी कम हो रही थी.
जैसा की पहले बताया गया कि पार्टी ने उन्हें 2023 में मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में घोषित नहीं किया है जैसा कि 2008 और 2013 में किया गया था, जब वह बीजेपी अंतर से जीती थी और 2018 में जब वह मामूली रूप से अधिक वोट पाने के बावजूद सीट गिनती में मामूली अंतर से हार गई थी.
'जब मैं चला जाऊंगा, तब याद आऊंगा'
मगर, बीजेपी ने अपने बचाव में मध्य प्रदेश के साथ-साथ उन अन्य राज्यों में भी यही पैटर्न अपनाया है, जहां चुनाव होने वाले हैं. दो सप्ताह से भी कम समय पहले सीहोर में महिलाओं को संबोधित करते हुए बुधनी विधायक सीएम शिवराज ने कहा था, "जब मैं चला जाऊंगा, तब याद आऊंगा" इसे फ्रायडियन चूक के रूप में नहीं बल्कि एक स्वीकारोक्ति के रूप में देखा गया कि उन्होंने मुख्यमंत्री का बंगला खाली करने की स्थिति के लिए तैयारी हैं.
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अप्रत्याशित सूची
चौहान की टिप्पणी जिसे विपक्षी कांग्रेस ने विदाई भाषण बताया. भाजपा उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी होने के बाद आई. सूची में सात मौजूदा लोकसभा सदस्यों के नाम थे, जिनमें तीन केंद्रीय मंत्री और एक राष्ट्रीय महासचिव शामिल थे. इस सूची ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था क्योंकि इससे पहले कभी भी इतने सारे सांसदों को विधानसभा चुनाव में नहीं उतारा गया था.
यहां तक कि पार्टी के फैसले से सांसद भी अनभिज्ञ दिखे..पार्टी आलाकमान ने लंबे समय से मध्य प्रदेश में चुनाव प्रबंधन का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था, पिछले चुनावों के विपरीत जब चौहान की बात मायने रखती थी. पिछले साल अगस्त में उन्हें सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था बीजेपी संसदीय बोर्ड से हटा दिया गया था.
हाल ही में उन्होंने जो टिप्पणियां कीं उनमें से कुछ या तो हताशा से उपजी थीं,. इससे पहले कि शिवराज आलाकमान पर दबाव डालते दिखे थे. शिवराज ने एक रैली में दर्शकों से पूछा था कि क्या उन्हें आगामी चुनाव लड़ना चाहिए और क्या उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनना चाहिए. बीच-बीच में उन्होंने यहां तक कहा, ''मैं दुबला-पतला हूं पर लड़ने में बहुत तेज हूं'' (मैं कमजोर दिख सकता हूं, लेकिन मैं एक मजबूत योद्धा हूं.
हालाँकि, अलग-अलग मौकों पर और अलग-अलग सेटिंग्स में चौहान की टिप्पणियों की झड़ी से पता चलता है कि उनके अंदर कुछ टूट गया है. वह अपने विनम्र तरीकों और वरिष्ठ नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों को नाराज न करने के लिए हर संभव प्रयास करने के लिए जाने जाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की दुर्जेय जोड़ी को तो छोड़ ही दें. ऐसा प्रतीत होता है कि निर्णायक बिंदु तब आया जब प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रैलियों में उनका नाम लेना बंद कर दिया.
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2013 की घटना
पिछली बार शिवराज सिंह और पीएम मोदी के बीच 2013 में भाजपा के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार की दौड़ के दौरान असहजता हुई थी. पार्टी के एक वर्ग ने चौहान को आगे बढ़ाने की कोशिश की थी, जो पूर्व उप प्रधान मंत्री लालकृष्ण आडवाणी के करीबी थे. मोदी के प्रतिद्वंद्वी के रूप में चौहान को अपनी संभावनाओं का अंदाज़ा था.
मगर, इस बात की अधिक संभावना थी कि उनके नाम का इस्तेमाल मोदी की दावेदारी को विफल करने के लिए किया गया था, जो कि एक कठिन सवाल था. एक बार जब मोदी प्रधान मंत्री बन गए और उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती गई, तो चौहान ने पूरी तरह से आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन ऐसा लगता है कि स्पष्ट तौर पर दरकिनार किए जाने और लगातार मीडिया कमेंट्री का असर चौहान को मिल गया है. उन्होंने अपने सूक्ष्म तरीकों से जवाबी हमला करने का फैसला किया है कई टिप्पणियां इसका एक संकेत हैं.
अन्यथा, वह हाल ही में डिंडोरी में मतदाताओं से क्यों पूछेंगे कि क्या वे उन्हें फिर से सीएम बनाना चाहते हैं? इसी समारोह में उन्होंने यहां तक पूछ लिया कि क्या नरेंद्र मोदी को दोबारा पीएम बनना चाहिए? जाहिर है, उन्हें उम्मीद नहीं थी कि भीड़ नकारात्मक जवाब देगी।
केंद्रीय मंत्री तोमर और प्रह्लाद पटेल और पार्टी महासचिव विजयवर्गीय जैसे नाम
दूसरी सूची में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रह्लाद पटेल और पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जैसे नाम शामिल हैं जो सीएम की दौड़ में हैं. दूसरी सूची के विपरीत, दो दिन पहले जारी की गई चौथी सूची में मंत्रियों सहित सभी मौजूदा विधायकों को मैदान में उतारा गया, सुरक्षित खेलने का विकल्प चुनकर. ऐसा लगता है कि पार्टी ने किसी तरह अपने साथ हुए व्यवहार से चौहान की कथित नाखुशी को स्वीकार कर लिया है.
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बीच विभाजन
पार्टी के भीतर की उठापटक ने विपक्ष को लगातार चौहान और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के बीच विभाजन को मुद्दा बनाकर चर्चा करने का मौका दिया है. जबकि पीसीसी अध्यक्ष और सीएम पद के उम्मीदवार कमल नाथ लगातार उस व्यक्ति पर कटाक्ष करते हैं जो उनके 15 महीने के कार्यकाल से पहले और बाद में सीएम की कुर्सी पर रहे.
मिलिंद घटवई