IVF: फरदीन खान ने खोए थे जुड़वां, 'टेस्ट ट्यूब बेबी' से बच्चा पैदा करना होता है इतना मुश्किल

In vitro fertilization: आईवीएफ को आम भाषा में टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहा जाता है. आज के समय में कई महिलाएं इस तकनीक से मां बन रही हैं. कुछ समय पहले एक्टर फरदीन खान ने अपने और अपनी वाइफ के इस प्रोसेस से गुजरने की जर्नी और मुश्किल के बारे में बताया. IVF प्रोसेस क्या है, इसमें क्या होता है और इसमें क्या रिस्क होते हैं, इस बारे में आर्टिकल में जानेंगे.

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(Image credit: Fardeena and pexels) (Image credit: Fardeena and pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 09 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 5:46 PM IST
  • दुनिया में कई महिलाएं IVF तकनीक से मां बन रही हैं
  • इंडिया में IVF का सक्सेस रेट 30-35 प्रतिशत है
  • इस प्रोसेस में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है

2019 में अक्षय कुमार, करीना कपूर, कियारा अडवाणी और दिलजीत दोसांझ की एक मूवी आई थी, जिसका नाम था 'गुड न्यूज़'. इस मूवी में करीना-अक्षय और कियारा-दिलजीत बच्चे पैदा करने के लिए आईवीएफ का सहारा लेते हैं. जिन लोगों ने उस मूवी को देखा है, उन्हें आईवीएफ के बारे थोड़ी बहुत जानकारी जरूर होगी. हाल ही में एक्टर फरदीन खान ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि उन्हें और उनकी पत्नी नताशा को बच्चे पैदा करने में काफी मुश्किल हो रही थी, इसलिए उन्होंने आईवीएफ का सहारा लिया था. फरदीन खान ने बताया कि 2011 में वो लंदन शिफ्ट हुए और उसके बाद आईवीएफ प्रोसेस शुरू हुई थी.

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फरदीन खान ने बताया, नताशा के गर्भधारण करने के बाद हमें पता चला कि हम जुड़वां बच्चों के पैरेन्ट्स बनेंगे. लेकिन 6 महीने के बाद उसका मिसकैरेज हो गया. आईवीएफ आसान नहीं होता और यह शरीर के लिए काफी मुश्किल और कठिनाइयां पैदा करता है. आईवीएफ क्या होता है और इस प्रोसेस के दौरान किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, अब इस बारे में भी जान लीजिए. 
 
क्या है आईवीएफ (What is IVF)

(Image Credit : Pixabay)

आईवीएफ (IVF) का पूरा नाम इन विट्रो फर्टिलाइजेशन है, जिसे आम भाषा में टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहा जाता है. आईवीएफ में महिला की अंडेदानी से अंडे निकालकर उनका पुरुष के स्पर्म के साथ फैलोपियन ट्यूब में फर्टिलाइजेशन कराया जाता है. इस फर्टिलाइजेशन से बनने वाले भ्रूण यानी एम्ब्रायो को महिला के गर्भाशय में डाल दिया जाता है. जो महिलाएं नेचुरल तौर पर बच्चा कंसीव नहीं कर सकतीं, वे मां बनने के लिए आईवीएफ का सहारा लेती हैं. आईवीएफ में कपल अपना स्पर्म-एग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं और जरूरत पड़ने पर डोनर का भी. ICMR की वार्षिक फर्टिलिटी रिपोर्ट के मुताबिक, इंडिया में आईवीएफ का सक्सेस रेट 30 से 35 प्रतिशत है.

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रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत में 3 अक्टूबर 1978 को भारत का पहला टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा हुआ था, जिसे दुनिया का दूसरा टेस्ट ट्यूब बेबी भी माना गया था. इनका नाम कानुप्रिया अग्रवाल (दुर्गा) है और वे 43 साल की हो गई हैं. भारत में इस तकनीक को लाने वाले डॉक्टर का नाम डॉ. सुभाष मुखर्जी था.

आईवीएफ के दौरान होती हैं ये मुश्किलें (These difficulties occur during IVF)

एक्सपर्ट बताते हैं कि IVF काफी सिंपल प्रोसेस होती है. अंडों की ग्रोथ कराने के लिए इस प्रोसेस में हार्मोन्स दिए जाते हैं. जैसे ही उन हार्मोन्स का काम हो जाता है, उसके बाद वे शरीर से बाहर निकल जाते हैं. लेकिन फिर भी इस प्रोसेस से लेकर बच्चे को जन्म देने तक महिला को काफी मुश्किल का सामना करना होता है. जैसे,

एक से अधिक बच्चे (Multiple births) 

महिला के अंडे और पुरुष के स्पर्म के फर्टिलाइजेशन के बाद बने एक से अधिक भ्रूण को अगर गर्भाशय में इंजेक्ट कराया जाता है, तो आईवीएफ एक से अधिक बच्चे पैदा होने का कारण बन सकता है. अगर ऐसा होता है तो अधिक बच्चे पैदा होने पर बच्चों का कम वजन हो सकता है. 

प्रीमैच्योर डिलीवरी (Premature delivery)

कुछ रिसर्च बताती हैं कि आईवीएफ कुछ मामलों में प्रीमैच्योर डिलीवरी का कारण भी बन सकता है, जिससे कम वजन के बच्चे का जन्म हो सकता है.

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ओवरिअन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम (Ovarian hyperstimulation syndrome)

गर्भाशय में अंडे विकसित करने के लिए ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) जैसे फर्टिलिटी ड्रग्स का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम का कारण बन सकता है. इसमें अंडाशय में सूजन आ जाती है, जिसमें काफी दर्द होता है. साथ ही पेट दुखना, सूजन, सांस फूलना, पेट दर्द जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं. यदि आप गर्भवती हो जाती हैं, तो आपके लक्षण कई हफ्तों तक रह सकते हैं.

गर्भपात (Miscarriage)

आईवीएफ से गर्भ धारण करने वाली महिलाओं के गर्भपात की दर, नेचुरल प्रेग्नेंसी कंसीव करने वाली महिलाओं के समान लगभग 15 से 25 प्रतिशत होती है. यह प्रतिशत जन्म देने वाली महिला की उम्र के साथ बढ़ती जाती है.

संक्रमण का खतरा (Risk of infection)

अंडे को इकट्ठा करने के लिए एस्पिरेटिंग सुई का उपयोग करने से संभवतः रक्तस्राव, संक्रमण या आंत को नुकसान हो सकता है. 

एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic pregnancy) 

आईवीएफ का उपयोग करने वाली लगभग 2 से 5 प्रतिशत महिलाओं में एक्टोपिक गर्भावस्था का खतरा बढ़ जाता है. इसमें अंडा फर्टिलाइज होने के बाद गर्भाशय से जुड़ने की जगह एब्‍डोमिनल कैविटी, गर्भाशय ग्रीवा या फैलोपियन ट्यूब से जुड़ जाता है. ऐसे में अंडा गर्भाशय के बाहर जीवित नहीं रह सकते. जिस कारण काफी समस्या होती है.

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तनाव (Stress) 

आईवीएफ का उपयोग आर्थिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से थका देने वाला हो सकता है. काउंसलर, परिवार और दोस्तों का सपोर्ट औपको दिमागी रूप से स्ट्रेस फ्री रखने में मदद कर सकता है. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है, तो जाहिर सी बात है महिलाओं को काफी स्ट्रेस होता है और उसका सीधा असर बच्चे पर पड़ सकता है.

IVF के पहले होती हैं ये स्क्रीनिंग (These screenings are done before IVF)

IVF की सफलता की दर कई चीजों पर निर्भर करती है, जिनमें उम्र और मेडिकल कंडिशन भी निर्भर करती है. कई रिपोर्ट बताती हैं कि IVF प्रेग्नेंसी के लिए सबसे आखिरी रास्ता होना चाहिए. महिलाओं और पुरुषों को IVF के सर्कल से गुजरने से पहले कुछ स्क्रीनिंग से गुजरना होता है.

ओविरियन रिजर्व टेस्टिंग (Ovarian reserve testing): इसमें एग्स की मात्रा और क्वालिटी की जांच होती है.

वीर्य की जांच (Semen analysis): इसमें पार्टनर के वीर्य की जांच की जाती है.

संक्रामक रोग जांच (Infectious disease screening): इसमें पार्टनर और आपकी संक्रामक रोगों की जांच की जाती है, जिसमें HIV टेस्ट भी शामिल होता है.

नकली भ्रूण को इंजेक्ट (Practice embryo transfer): इसमें फर्टिलाइजेशन के बाद बने भ्रूण को गर्भाशय में डालने से पहले एक नकली भ्रूण को गर्भाशय में डालते हैं. 

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गर्भाशय टेस्ट (Uterine exam): इसमें डॉक्टर गर्भाशय की जांच करते हैं. इसमें पतले टेलिस्कोप को वजाइना और गर्भाशय ग्रीवा से गर्भाशय तक डाला जाता है. 

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