मुसलमान से हिंदू बने जितेंद्र त्यागी को हरिद्वार कोर्ट से बड़ी राहत, धर्म संसद मामले में किया बरी

हरिद्वार की जिला अदालत से जितेंद्र त्यागी को बड़ी राहत मिली है. धर्म सांसद के दौरान कथित भड़काऊ भाषण मामले में उन्हें बरी कर दिया गया. अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति की भावनाएं आहत होना आईपीसी की धारा 153-ए के तहत अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है.

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जितेंद्र नारायण त्यागी उर्फ वसीम रिजवी (फाइल फोटो) जितेंद्र नारायण त्यागी उर्फ वसीम रिजवी (फाइल फोटो)

संजय शर्मा

  • हरिद्वार,
  • 21 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 6:00 PM IST

हरिद्वार की जिला अदालत ने 2021 में हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद में दिए गए कथित भड़काऊ भाषण के मामले में जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिज़वी को बरी कर दिया है. उनके खिलाफ 2022 को एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप था कि उन्होंने हरिद्वार में 2021 में आयोजित धर्म संसद के दौरान इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं.

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अदालत का तर्क: धारा 153ए के तहत अपराध सिद्ध नहीं

अदालत के आदेश के अनुसार, त्यागी को यह कहते हुए बरी किया गया कि आईपीसी की धारा 153-ए के तहत अपराध साबित करने के लिए केवल किसी एक व्यक्ति की भावनाएं आहत होना पर्याप्त नहीं है. ना ही किसी को अपमानित करना इस धारा के तहत अपराध की अनिवार्य शर्त है. यदि बोले गए शब्दों से धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं तो वह आईपीसी की धारा 298 के अंतर्गत दंडनीय हो सकता है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि ऐसे शब्द उस व्यक्ति की उपस्थिति में या तब कहे गए हों जब वह सुन रहा हो. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ.

पूर्व वक्फ बोर्ड चेयरमैन, बाद में हिंदू धर्म अपनाया

जितेंद्र त्यागी पहले उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन थे. बाद में उन्होंने हिंदू धर्म अपना लिया था.

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एफआईआर और आरोपों का विवरण

2 जनवरी 2022 को, उनके खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी. उसमें आरोप था कि उन्होंने 17 से 19 दिसंबर 2021 के बीच हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद के दौरान इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं.

यह भी पढ़ें: त्यागी ब्राह्मण से अब बने ठाकुर, इस्लाम छोड़ हिंदू धर्म अपनाने वाले वसीम रिजवी ने फिर बदला अपना नाम

वीडियो साक्ष्य पर अदालत की राय

रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता ने स्वयं यह स्वीकार किया कि उसने सोशल मीडिया से प्राप्त वीडियो फुटेज जांच अधिकारी को दी थी. उसे उसने अपने मोबाइल से पेन ड्राइव में ट्रांसफर किया था. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सोशल मीडिया पर प्रसारित संदेश आम तौर पर वायरल प्रवृत्ति के होते हैं और सार्वजनिक उपभोग के लिए होते हैं. इसलिए, शिकायतकर्ता के मोबाइल में उपलब्ध वीडियो फुटेज को इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की श्रेणी में प्रामाणिक साक्ष्य नहीं माना जा सकता. यह भी नकारा नहीं जा सकता कि शिकायतकर्ता को भेजी गई सामग्री से भेजने वाले ने छेड़छाड़ की हो.

कोई धार्मिक तनाव उत्पन्न नहीं हुआ

अदालत ने यह भी कहा कि गवाही के दौरान यह भी पता चला कि भाषण के बाद कोई धार्मिक तनाव उत्पन्न नहीं हुआ था.

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