वाराणसी: गंगा खतरे के निशान तक पहुंची, गलियों में करना पड़ रहा है शवदाह

वाराणसी में बाढ़ के चलते गंगा नदी रौद्र रूप ले चुकी है. प्रति घंटे 4 सेंटीमीटर की रफ्तार से बढ़ती जा रही गंगा चेतावनी बिंदु 70.26 मीटर को पार कर चुकी है और अब 71.26 मीटर यानी खतरे के निशान की ओर बढ़ चली है. गंगा के बढ़ते जा रहे जलस्तर से सबसे ज्यादा तटीय इलाकों में रहने वालों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.

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वाराणसी में गंगा के पानी से घाट डूब गए हैं. अब गलियों में भी पानी भरा है. ऐसे में दाह संस्कार को लेकर परेशानी बढ़ गई है. वाराणसी में गंगा के पानी से घाट डूब गए हैं. अब गलियों में भी पानी भरा है. ऐसे में दाह संस्कार को लेकर परेशानी बढ़ गई है.

रोशन जायसवाल

  • वाराणसी,
  • 25 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 10:20 PM IST

वाराणसी में बाढ़ की विभीषिका अब खतरे के निशान को पार करते हुए दिखने लगी है. गंगा के सभी 84 घाट और सीढ़ियां पहले ही पानी में डूब चुके थे, अब आलम यह है कि गंगा का पानी गलियों में आ चुका है और गलियों में नाव भी चलना शुरू हो चुकी है. इतना ही नहीं, गलियों में शवदाह के चलते इलाके के लोग या तो धीरे-धीरे पलायन कर रहे हैं या फिर शवदाह के धुएं, राख और ताप के चलते अपनी खिड़कियों को चुनवाना शुरू कर दिया है. 4 सेंटीमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से बढ़ रही गंगा नहीं रूकती है तो आने वाले एक-दो दिन में खतरे के निशान को भी पार कर जाएगी.

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बाढ़ के चलते गंगा रौद्र रूप ले चुकी है. प्रति घंटे 4 सेंटीमीटर की रफ्तार से बढ़ती जा रही गंगा चेतावनी बिंदु 70.26 मीटर को पार कर चुकी है और अब 71.26 मीटर यानी खतरे के निशान की ओर बढ़ चली है.

गंगा के बढ़ते जा रहे जलस्तर से सबसे ज्यादा तटीय इलाकों में रहने वालों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. डूब चुके सभी 84 गंगा घाटों में श्मशान घाट हरिश्चंद्र भी है, जिसकी वजह से शवों का अंतिम संस्कार घाट से लगने वाली गलियों में किया जा रहा है.

शवदाह से उठनी वाली राख, धुएं और तपिश की वजह से लोग इस कदर परेशान होना शुरू हो चुके हैं कि अपने घरों की खिड़कियों को चुनवाना शुरू कर दिया है और धीरे-धीरे पलायन भी शुरू कर दिया है. श्मशान घाट हरिश्चंद्र के किनारे गलियों में शवदाह के चलते इलाके के 200 मकान में रहने वाले लोग परेशान हैं, जिसमें ना सिर्फ शवदाह करने वाले डोम परिवार, बल्कि अन्य बिरादरी के लोग भी शामिल हैं.

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शवदाह वाली गली के ठीक सामने वाले मकानों की खिड़की ईंट, बालू और सीमेंट से चुन दी गई हैं. इस घर में रहने वाले डोम परिवार के सदस्य राजबाबू चौधरी बताते हैं कि गलियों में लाशों के जलने से वे हर साल अपने घर की खिड़कियों को चुनवा देते हैं. ज्यादा दिक्कत बढ़ने पर घर छोड़कर दूसरे स्थान पर पलायन करने पर मजबूर हो जाते हैं. 

यहां शवों के आने का सिलसिला 24 घंटे जारी रहता है. गलियों में शवदाह के चलते घर में खाना बनाना और खाना सब मुहाल हो जाता है. ये आलम हर साल का है, इसके लिए सरकार को मणिकर्णिका घाट की तरह हरिश्चंद्र घाट पर भी ऊंचे प्लेटफार्म का निर्माण कराना चाहिए.

वहीं, गली में किराए के मकान में रहने वाली चंद्रमा देवी बताती हैं कि गंगा में आई बाढ़ के चलते गलियों में शवदाह की वजह से धुआ और आंच लगने लगती है, लेकिन, कहां जाएं? तबीयत भी बिगड़ने लगती है, फिर दवा करानी पड़ती है.

शवदाह वाली गली में रहने वाले क्लास चार में पढ़ने वाले गणेश और उसकी बहन बताते हैं कि धुएं और आग की गर्मी की वजह से उनको पढ़ाई में काफी दिक्कत होती है. कई बार गली के मकान की दीवारें इतनी तपने लगती हैं कि उनके हाथ-पैर भी सिर्फ छू जाने से जल जाते हैं. गणेश अपने पुराने जख्मों को भी दिखाता है.

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शहर के खोजवा इलाके से शवदाह में शामिल होने आए रामाश्रय और जय बहादुर बताते हैं कि गलियों में शवदाह हर साल बाढ़ की वजह से होता है, इसके लिए सरकार को कुछ सोचने की जरूरत है और सुविधाओं को बढ़ाने की भी जरूरत है. क्योंकि ना तो लोगों को कहीं बैठने की जगह है और ना ही शवदाह के लिए जगह है, इसलिए कम से कम ऊंचा प्लेटफार्म हरिश्चंद्र घाट पर भी बनना चाहिए ताकि बाढ़ में गलियों में शवदाह ना होने पाए और दिक्कतों से बचा जा सके.

शवदाह करने वाले डोम परिवार के सदस्य पवन चौधरी बताते हैं कि गंगा में बढ़ाव काफी तेज है. प्रत्येक साल जब बाढ़ का पानी ऊपर आता है तो शवदाह गलियों में करने के अलावा कोई और चारा नहीं रहता है. जिम्मेदार लोग आते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं. लेकिन फिर बाढ़ जाने के बाद सभी भूल जाते हैं. कम से कम ऊंचा प्लेटफार्म बनना चाहिए. अभी इलाके के लोगों ने घरों की खिड़कियों को या तो चुनवा दिया है या तो पलायन को मजबूर हैं.

दुश्वारियां सिर्फ यहीं खत्म नहीं हुई हैं. वाराणसी के जिस अस्सी घाट के सौंदर्य को निहारने लोग दूर-दूर से आया करते थे, वो आज जलप्रलय का शिकार हो चुका है. घाट तो डूबा ही है और अब गंगा उफनती हुई सीढ़ियों से होते हुए गलियों में आ गई है और सड़क की ओर बढ़ चली है. 

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इस रास्ते पड़ने वाले दर्जनों मकानों और दुकानों में गंगा का पानी प्रवेश कर चुका है और लोग अपने साजो-सामान को एक मात्र नौका के सहारे ही ढोकर एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए जा पा रहे हैं. यानी जिस गली में पहले वाहन दौड़ा करते थे और लोगों चहलकदमी हुआ करती थी. वहां अब नाव चल रही है. इतना ही नहीं, लोग अपने घरों की दीवारों को भी गंगा के पानी से बचाने के लिए चुनवाना शुरू कर चुके हैं.

पीएम मोदी बोले- कोई भी जरूरत हो, तुरंत मुझे बता सकते हैं

वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्थानीय अधिकारियों से बाढ़ की स्थिति की जानकारी ली. पीएम मोदी ने जब फोन किया, तब मंडलायुक्त और जिलाधिकारी शहर में बाढ़ राहत शिविरों की ही व्यवस्था देख रहे थे. प्रधानमंत्री ने मंडलायुक्त से गंगा और वरुणा नदी में बढ़ते जल स्तर और उसकी वजह से लोगों के विस्थापन पर चिंता जताई.

पीएम ने अधिकारियों को लोगों की हरसंभव मदद करने के निर्देश दिए. पीएम ने अफसरों से कहा कि किसी भी विशेष सहायता की जरूरत महसूस हो तो उन्हें सीधे अवगत कराएं. मंडलायुक्त ने पीएम को लगातार बढ़ते नदियों के जल स्तर से, राहत शिविरों की व्यवस्था और प्रशासनिक तैयारियों की जानकारी दी.

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