UP के जिस स्कूल की थाली की हर तरफ है चर्चा, वो पूरे देश को स्मार्ट पढ़ाई का रास्ता भी दिखा सकता है

उत्तर प्रदेश के जालौन का एक छोटा सा गांव मलकपुरा. यहां के सरकारी स्कूल में तिथि भोजन यानी एड ऑन मिड डे मील के तहत परोसी गई थाली की देशभर में चर्चा है. मलकपुरा गांव में बच्चों की शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब जैसे तमाम कदम उठाए गए हैं. आज तक से खास बातचीत में गांव के प्रधान अमित ने बताया कि कैसे एक सरकारी स्कूल में सीमित संसाधनों के साथ ये कदम उठाना संभव हो पाया.

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यूपी के सरकारी स्कूल में एक बच्चे के हाथ में मौजूद इस थाली ने देशभर में चर्चा बटोरी है. यूपी के सरकारी स्कूल में एक बच्चे के हाथ में मौजूद इस थाली ने देशभर में चर्चा बटोरी है.

प्रभंजन भदौरिया

  • जालौन,
  • 05 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:02 AM IST

उत्तर प्रदेश के एक सरकारी स्कूल की मिड डे मील की थाली की देशभर में खूब चर्चा है. मटर पनीर की सब्जी, पूड़ी, फल में सेब, सलाद, मिल्क सेक और आइसक्रीम थाली की शोभा बढ़ा रहे हैं. दरअसल, ये थाली यूपी के जालौन के मलकपुरा गांव में 31 अगस्त को तिथि भोजन यानी एड ऑन मिड डे मील के तहत परोसी गई. मलकपुरा के सरकारी स्कूल की यह खास थाली सिर्फ एक पक्ष है, यहां शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए तमाम ऐसे कदम उठाए गए हैं, जो इसे किसी अच्छे प्राइवेट स्कूल की श्रेणी में खड़ा करते हैं. मलकपुरा गांव में स्कूल के बच्चों के लिए कंप्यूटर लैब, स्मार्ट क्लास, फ्री ट्यूशन जैसी व्यवस्थाएं गांव में ही की गई हैं. 

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मलकपुरा में शिक्षा की दिशा में हुए इन क्रांतिकारी बदलावों के पीछे यहां के ग्राम प्रधान अमित की सोच है. आज तक से खास बातचीत में अमित ने बताया कि कैसे उनके लिए एक सरकारी स्कूल में सीमित संसाधनों के साथ ये कदम उठाना संभव हो पाया. साथ ही उन्होंने बच्चे के हाथ में दिख रही खूबसूरत मिड डे मील की थाली का भी राज खोला. 

तिथि भोजन या एड ऑन मिड डे मील

अमित बताते हैं कि उन्हें बच्चों के लिए अच्छे खाने का आईडिया पिछले साल 31 दिसंबर को आया था. तब उन्होंने बच्चों की डिमांड पर स्कूल में मिड डे मील में पनीर की सब्जी बनवाई थी. लेकिन मिड डे मील के बजट में यह संभव नहीं है कि हर रोज इस तरह का खाना बनवाया जा सके. न ही अमित व्यक्तिगत तौर पर ऐसा कदम उठा सकते थे, क्योंकि इसमें अतिरिक्त खर्चा भी पड़ता है. इसके बाद अमित ने कोरोना काल के बाद जब स्कूल खुले तो इस दिशा में काम करना शुरू किया. 

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स्कूल में एक महीने में कम से कम 2 बार और ज्यादा से ज्यादा 4 बार तिथि भोजन के तहत स्पेशल खाना खिलाया जाता है.

अमित बताते हैं कि उनके सामने दो परेशानियां थीं. पहली कि इस तरह के खाने में तेल मसाला ज्यादा होता है, ऐसे में इस तरह का खाना रोज नहीं बनवाया जा सकता. इसके लिए उन्होंने महीने में कम से कम दो बार और ज्यादा से ज्यादा महीने में चार बार बच्चों के लिए ऐसा खाना बनवाने का विचार किया. अब दूसरी परेशानी थी कि इसके लिए फंड कहां से आता. अमित ने सोशल मीडिया पर लोगों से इस व्यवस्था में जुड़ने की अपील की. 

कैसे कराया जाता है खाने का प्रबंध?

अमित की अपील पर लोग आगे आए. उन्होंने अमित से संपर्क किया. लोग अपने बच्चों के बर्थडे या अन्य किसी शुभ मौकों पर बच्चों के लिए इस तरह के भोजन की व्यवस्था कराने के लिए कहते हैं. यानी कोई भी इस रेंडम व्यवस्था में अपना सहयोग दे सकता है. अमित के मुताबिक, उनके स्कूल में करीब 117 बच्चे हैं. ऐसे में 100-115 बच्चों के लिए स्पेशल खाने पर 2000-4000 रुपए का खर्चा आता है. यह एड ऑन मिड डे मील होता है. यानी मिड डे मील की व्यवस्था में इस अतिरिक्त खर्चे को जोड़कर बच्चों के लिए अच्छा भोजन कराया जाता है. 31 अगस्त की जो फोटो वायरल हुई, उसका प्रबंध कानपुर के रहने वाले सौरभ शुक्ला ने कराया. अमित बताते हैं उन्हें एड ऑन मिड डे मील का आईडिया गुजरात सरकार के तिथि भोजन योजना से आया. 

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कोई भी व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से तिथि भोजन की व्यवस्था करा सकता है.

अन्य सरकारी स्कूलों में क्या ऐसी व्यवस्था संभव है?

इस सवाल के जवाब में ग्राम प्रधान अमित ने बताया, आम तौर पर सरकारी अध्यापक इस तरह के कदम उठाने से बचते हैं. क्योंकि उन्हें शिकायत या विभागीय कार्यवाई का डर लगता है. चूंकि वे एक प्रतिनिधि हैं और गांव के लोगों द्वारा चुनकर बने हैं, इसलिए वे इस तरह का कदम उठाने पर विचार कर पाए. अमित ने बताया कि उन्होंने इसके लिए स्कूल प्रबंधन से प्रस्ताव पास कराया है. यानी अब इसमें किसी तरह की कोई कानूनी अड़चन नहीं है.

अमित के मुताबिक, हर महीने में कम से कम दो बार बच्चों के लिए ऐसी व्यवस्था आसानी से हो जाती है. यह भोजन रेंडम कराया जाता है. ऐसे में इसका लाभ ये मिला है कि जहां पहले स्कूल में 60-70 बच्चे आते थे, अब हर रोज स्कूल में 90% बच्चे आ रहे हैं. इसके अलावा बच्चों में कुपोषण की समस्या को भी दूर किया जा सकेगा.

ग्राम-प्रधान अमित.

बच्चों के लिए गांव में स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब और कूलर जैसी व्यवस्थाएं

मलकपुरा में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए तमाम कदम उठाए गए हैं. स्कूल के बच्चों के लिए स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब है. इसके अलावा बच्चों को फ्री ट्यूशन की व्यवस्था कराई गई है. स्कूल के करीब 18-20 बच्चे हर रोज फ्री ट्यूशन पढ़ते हैं. स्कूल में 6 कमरे हैं, हर कमरे में एक कूलर लगवाया गया है. इसके अलावा अमित हफ्ते में एक दिन खुद पढ़ाने भी जाते हैं. इसमें वे स्कूल के विषयों से हटकर किसी अन्य विषय पर जानकारी देते हैं. अमित ने बताया कि उन्होंने प्रधान चुनाव के अपने घोषणा पत्र में ये वादा किया था कि वे शिक्षा पर विशेष काम करेंगे. इसी दिशा में वे अपना वादा निभाने के लिए हरसंभव कदम उठा रहे हैं.

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अमित के मुताबिक, बच्चों को स्मार्ट क्लास में लगे प्रोजेक्टर के माध्यम से पढ़ाने के अलावा शनिवार-रविवार को विशेष फिल्म दिखाई जाती है. ये फिल्में किसी महापुरुष के जीवन, किसी स्वतंत्रता सेनानी या विज्ञान जैसे अहम विषयों पर आधारित होती हैं. अमित बताते हैं कि हाल ही में जब देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने शपथ ली, उसे भी बच्चों को लाइव दिखाया गया. साथ ही यह भी बताया गया कि कैसे एक छोटे से आदिवासी गांव की महिला इस मुकाम तक पहुंची. स्कूल में सीमित जगह और चोरी जैसी समस्याओं को देखते हुए स्मार्ट क्लास और कंप्यूटर लैब को गांव में खाली पड़े घर में बनवाया गया है. 

प्रोजेक्टर के माध्यम से राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का शपथ ग्रहण कार्यक्रम देखते बच्चे

बच्चे भाला और गोला भी फेंक रहे

ग्राम प्रधान अमित के मुताबिक, उन्होंने स्कूल में एक खेल का मैदान बनाने की दिशा में कदम आगे बढ़ाया है. मैदान बनाने का काम भी शुरू हो गया है. इसके अलावा बच्चों के लिए भाला फेंक और गोला फेंक समेत तमाम खेलों के सामानों की व्यवस्था की गई है. अमित का लक्ष्य है कि उनके 5 साल के कार्यकाल में कम से कम 1 बच्चा जिला स्तर या राज्य स्तर पर एथलीट खेलों में आगे आए. 

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गोला फेंक में हिस्सा लेते बच्चे.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने वाला राज्य का पहला स्कूल
 
अमित के मुताबिक, मलकपुरा सरकारी स्कूल उत्तर प्रदेश का संभवता पहला सरकारी स्कूल है, जहां नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू किया गया है. हालांकि, ये आंशिक तौर पर है. क्योंकि इसमें कई ऐसे प्रावधान हैं, जिन्हें लेकर राज्य सरकार को कदम उठाना है.

स्कूल में आंशिक तौर पर नई शिक्षा नीति की गई लागू.



अमित बताते हैं कि उन्होंने बच्चों के लिए टूर कराने की योजना बनाई है. इसका खर्चा पंचायत उठाएगी. इसके अलावा बच्चों को लाने के लिए ई रिक्शा, शनिवार को नो बैग डे जैसे प्रावधान लागू किए हैं. शनिवार को बच्चों को ऑनलाइन या ऑफलाइन किसी खास व्यक्ति से मुलाकात कराई जाती है. ताकि वे तमाम मुद्दों पर जानकारी हासिल कर सकें. 

कंप्यूटर क्लास में पढ़ते बच्चे

इतना ही नहीं अमित ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा संचालित विद्यांजलि योजना में भी देश का रजिस्ट्रेशन कराया है. ऐसा करने वाला यह राज्य का पहला स्कूल है. इस योजना के तहत भारत में रहने वाला या देश से बाहर का कोई भी व्यक्ति बच्चों को पढ़ाने में सहयोग दे सकता है. वह अपने समयानुसार स्कूल में बच्चों को पढ़ा सकता है. इसके अलावा स्कूलों में संसाधन जैसे कमरा बनवाना, कंप्यूटर या शिक्षा के स्तर को बढ़ाने में मददगार उपकरण दान में दे सकता है. 

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फ्री ट्यूशन में करीब 18-20 बच्चे हर रोज पढ़ने आते हैं.

स्कूल में इन संसाधनों को जुटाने के लिए फंड कहां से आया?

सरकारी स्कूल में प्राइवेट जैसी सुविधाओं को देखकर एक सवाल सबके मन में आता है कि आखिर इन व्यवस्थाओं के लिए फंड कहां से आया. अमित बताते हैं कि उन्होंने इसके लिए कई संसाधनों का इस्तेमाल किया है. उन्होंने बताया कि स्कूल में क्राउड फंडिंग, एनजीओ से मदद, ग्राम निधि, विद्यालय निधि और मनरोगा द्वारा इन कामों को कराया है. अमित बताते हैं कि विद्यालय में कूलर लगवाने के लिए उन्होंने सोशल मीडिया पर मदद मांगी थी. उनकी अपील के सिर्फ 20 घंटे में उन्होंने 6 कूलर लगवाने के लिए रकम जुटा ली थी. 

बच्चों को विज्ञान विषय के बारे में पढ़ाते ग्राम प्रधान अमित (हफ्ते में एक क्लास लेते हैं)

अमित के मुताबिक, मीडिया चैनल पर स्कूल में हो रहे कामों को लेकर वीडियो देखने के बाद अमेरिका में रहने वाले अविनाश श्रीवास्तव ने उनसे संपर्क किया और स्कूल में दो कंप्यूटर लगवाने की पेशकश की. उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर स्कूल में 20 हजार रुपए का प्रोजेक्टर लगवा दिया. वहीं, स्कूल में बच्चों के लिए अतिरिक्त ट्यूशन के लिए NGO ने मदद की है.

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