Ayodhya News: कहते हैं 'राम' अयोध्या के कण-कण में बसते हैं. जाति-पांति और ऊंच-नीच से दूर श्रीराम सबके अपने हैं और सबको गले लगाते हैं. अयोध्या में अलग-अलग जाति के नाम पर तो लगभग 36 मंदिर हैं, लेकिन पूजा सब में श्रीराम की ही होती है. यह सभी मंदिर 18वीं शताब्दी और 19वीं शताब्दी के बीच बनाए गए. इनमें से अधिकतर मंदिरों में पुजारी हों, व्यवस्थापक हों या फिर कर्मचारी, सभी उसी जाति के हैं, जिनके यह मंदिर हैं.
अयोध्या समेत कई नामचीन हस्तियों पर शोध कर पुस्तक लिखने वाले यतीन्द्र मिश्र कहते हैं कि श्रीराम के मानवरूपी जीवनचक्र में अलग-अलग जातियों का सहयोग और समागम देखने को मिलता है. इसलिए हर किसी के दिल में राम हैं और हर कोई उनके अधिक करीब रहना चाहता है. श्रीराम ने सबको जोड़ा और साथ लेकर चले. अलग-अलग जाति के मंदिर अयोध्या में देखने को मिलते हैं.
अयोध्या की पहचान को प्रदर्शित करते हैं ये मंदिर
अयोध्या जितनी पौराणिक है, उतनी ही विशेषताओं और विविधताओं का संगम भी है. इसीलिए हिंदू, बौद्ध, सिख, मुस्लिम सभी के लिए अयोध्या किसी तीर्थस्थल की तरह है. सभी धर्म के ईश्वर हों या पैगंबर, किसी न किसी तरह उनका अयोध्या से नाता जरूर है. अयोध्या में यूं तो 4000 से अधिक मंदिर हैं और इन्हीं में वह 36 मंदिर भी हैं, जो अलग-अलग जातियों के हैं.
राजपूत मंदिर, निषाद मंदिर, हलवाई मंदिर, कुर्मी मंदिर, यादव मंदिर, पासी मंदिर, हेला मंदिर, मुराव मंदिर, पंचायती मंदिर आदि शामिल हैं. मंदिर भले अलग-अलग जातियों के हों, उसकी व्यवस्था भले उसी समाज के लोग देखते हों, लेकिन पूजा श्रीराम और माता सीता की ही होती है. शांति, सद्भाव और आस्था की प्रतीक अयोध्या की एक पहचान यह भी है.
क्या कहते हैं इतिहासकार?
राम मनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी में इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर अजय प्रताप सिंह कहते हैं कि अयोध्या धर्म के साथ-साथ संस्कृति और ज्ञान का भी केंद्र रही है. इसीलिए अयोध्या में जाति आधारित मंदिर बनने की कई वजह हैं. पहला तो यह कि त्योहारों और धार्मिक आयोजनों में बड़ी संख्या में लोग अयोध्या आते रहे हैं. इनके ठहरने और सुचारू व्यवस्था के लिए इन मंदिरों का निर्माण हुआ. इसका उद्देश्य सामाजिक एकजुटता को बनाए रखना भी था.
18वीं और 19वीं शताब्दी में जाति आधारित मंदिरों का निर्माण हुआ और इसके निर्माण के लिए उस जाति के लोगों ने बढ़-चढ़कर योगदान दिया था. एक वजह यह भी है कि अयोध्या ज्ञान का भी केंद्र रही, इसीलिए दूरदराज से लोग अयोध्या आते थे और रहते थे. पहले के समय में अधिकतर धार्मिक स्थलों पर लोग मंदिरों में रहते थे और वहीं प्रसाद पाते थे, इसलिए इस तरह के मंदिरों का चलन बढ़ा. भले ही अलग-अलग जातियों के मंदिर बने, लेकिन पूजा सिर्फ राम और सीता की ही हुई, क्योंकि सभी जातियों का जुड़ाव श्रीराम के प्रति रहा है. या यूं कहें कि श्रीराम रूपी माला में सभी पिरोये हुए हैं, जिसके हर मनके बराबर हैं. इस तरह का उदाहरण पूरे भारत में और कहीं देखने को नहीं मिलता.
बनबीर सिंह