रूह अफजा के बनने से लेकर मार्केट से गायब होने तक की पूरी कहानी

रूह अफजा के मार्केट से गायब होने पर इसकी किल्लत साफ देखी जा रही है. इसके बाजार में उपलब्ध न होने पर तरह-तरह की अफवाहें हैं, लेकिन रूह अफजा बनाने वाली कंपनी हमदर्द से जुड़े आधिकारिक लोगों का कहना है कि यह हफ्ते-दस दिन में मार्केट में उपलब्ध हो जाएगा.

Advertisement
Rooh Afza (प्रतीकात्मक तस्वीर) Rooh Afza (प्रतीकात्मक तस्वीर)

ददन विश्वकर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 09 मई 2019,
  • अपडेटेड 12:44 PM IST

बात 1907 की है, दिल्ली में लोग भीषण गर्मी से परेशान थे और बीमार पड़ रहे थे. तब पुरानी दिल्ली के लाल कुआं बाजार में एक हकीम ने लोगों को ठीक करने के लिए एक दवा इजाद की. यह दवा कुछ और नहीं बल्कि रूह अफजा ही था.

रूह अफजा के मार्केट से गायब होने पर इसकी किल्लत साफ देखी जा रही है. इसके बाजार में उपलब्ध न होने पर तरह-तरह की अफवाहें हैं, लेकिन रूह अफजा बनाने वाली कंपनी हमदर्द से जुड़े आधिकारिक लोगों का कहना है कि यह हफ्ते-दस दिन में मार्केट में उपलब्ध हो जाएगा.

Advertisement

हम आपको बताते हैं कि रूह अफजा के बनने से लेकर मार्केट से गायब होने की पूरी कहानी. कब और कैसे रूह अफजा मार्केट में आया और कैसे गायब हो रहा है?

पहली बार कहां बना रूह अफजा?

रूह अफजा यूनानी हर्बल चिकित्सा के एक हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने ठीक 113 साल पहले गाजियाबाद में इजाद किया था. साल था 1906.  इसी साल उन्होंने पुरानी दिल्ली के लाल कुआं बाजार में हमदर्द नामक एक क्लीनिक खोली थी. 1907 में दिल्ली में भीषण गर्मी और लू से काफी लोग बीमार पड़ने लगे. तब हकीम अब्दुल मजीद मरीजों को इसी रूह अफजा की खुराक देने लगे. लू और गर्मी से बचाने में हमदर्द का रूह अफजा कमाल का साबित हुआ.

देखते ही देखते यह दवाखाना रूह अफजा की वजह से पहचाना जाने लगा. रूह अफजा सिर्फ दवा न होकर लोगों को गर्मी से राहत देने का नायाब नुस्खा बन गया और हमदर्द दवाखाना से बड़ी कंपनी बन गई. रूह अफजा मुस्लिम परिवारों में खूब फेमस हो गया, क्योंकि रमजान के दौरान रोजेदार इस ठंडे पेय को इफ्तारी के वक्त पीते थे.पहले इसे बोतलों में नहीं दिया जाता था लोग इस सिरप को लेने के लिए घर से ही बर्तन लेकर जाते थे.

Advertisement

ऐसे पाकिस्तान पहुंचा रूह अफजा

हकीम हाफिज अब्दुल मजीद के दो बेटे थे. अब्दुल हमीद और मोहम्मद सईद. दोनों पिता के इस व्यवसाय में हाथ बटाते थे. 1920 में हमदर्द दवाखाना नाम की कंपनी का गठन हुआ. अब्दुल मजीद का निधन हो चुका था. 1947 में देश के विभाजन के बाद हमदर्द कंपनी भी दो हिस्सों में बंट गई. मोहम्मद सईद पाकिस्तान चले गए. उन्होंने कराची में हमदर्द की शुरुआत की. यहां रूह अफजा खूब पसंद किया जाता है और यह पाकिस्तान का जाना-पहचाना ब्रैंड है. यही कंपनी भारत में रूह अफजा की किल्लत को देखते हुए वहां से इसकी सप्लाई का ऑफर कर रही है. जबकि बड़े बेटे अब्दुल हमीद मां के साथ हिंदुस्तान में ही रह गए. अब्दुल हमीद के दो बेटे हुए अब्दुल मोईद और हम्माद अहमद हुए. 1948 में हमदर्द कंपनी को वक्फ यानी चैरिटेबल बना दिया गया और मुतवल्ली यानी प्रबंधन निदेशक अब्दुल मोईद को बनाया गया जबकि हम्माद अहमद मार्केटिंग का काम देखने लगे. 1948 की वक्फ डीड थी, लेकिन 1973 में एक संशोधन कर दिया और बड़े बेटे अब्दुल मोईद को चीफ मुतवल्ली बना दिया, जो वक्फ का फाइनेंस, अकाउंट, प्रोडक्शन सब कुछ देखने लगे. उन्होंने अपने बेटे अब्दुल माजिद को मुतवल्ली बना दिया. इस तरह बोर्ड में अब्दुल मोईद की एंट्री हो गई. हम्माद ने भी अपने बेटे हमीद अहमद को बोर्ड में शामिल करा दिया. 2015 में अब्दुल मोईद के निधन के बाद बोर्ड की बागडोर अब्दुल माजिद ने सभाल ली. जिस पर हम्माद अहमद का विवाद शुरू हो गया. 2017 में हम्माद अहमद ने इसको लेकर हाईकोर्ट में केस कर दिया. जिस पर कोर्ट ने हम्माद के फैसला सुनाया. इसी कारण रूह अफजा का प्रोडक्शन नहीं हो पा रहा है. हालांकि कंपनी सिर्फ इसे एक कोरी अफवाह बता रही है.

Advertisement

करोड़ों का कारोबार

शुरुआती दौर में प्रोडक्शन सीमित मात्रा में होता था. फिर कंपनी ने 1940 में पुरानी दिल्ली में, 1971 में गाजियाबाद और 2014 में गुरूग्राम के मानेसर में प्लांट लगाया. अकेले इसी प्लांट से रोजाना हजार बोतल रूह अफजा का उत्पादन होता है. 1948 से हमदर्द कंपनी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रूह अफजा का उत्पादन कर रही हैं. रूह अफजा के अलावा कंपनी के जाने-माने उत्पादों में साफी, रोगन बादाम शिरीन और पचनौल जैसे उत्पाद शामिल हैं.

दि हिंदू बिज़नेस लाइन की 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 के वित्त वर्ष में कंपनी का टर्नओवर 700 करोड़ का था.  लेकिन हमदर्द के चीफ सेल्स मंसूर अली का कहना है कि गर्मी में 400 करोड़ के इस ब्रांड की बिक्री 25 फीसदी तक बढ़ जाती है.

दावत में आती थीं बड़ी हस्तियां

अब्दुल हमीद होली और ईद की दावत देने लगे. ईद में कबाब और होली में गुझिया खास होती थीं. इसमें सभी धर्मों के लोग आते थे. अब्दुल हमीद के निधन के बाद यह दावत बेटे अब्दुल मोईद ने कायम रखी. उनके दावत में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेई से लेकर सिने स्टार राज कपूर, दिलीप कुमार, सायरा बानो समेत कई देशों के राजदूत आते थे. दिवाली और होली में रूह आफजा के गिफ्ट पैक भी बनते थे और नामचीन लोगों के यहां जाते थे.

Advertisement

जब जूही चावला बनी ब्रैंड एंबेसडर

साल 2008-09 में आर्थिक मंदी से हमदर्द के रूह अफजा की तरलता गाढ़ी होनी लगी तो कंपनी ने प्रचार-प्रसार पर खर्च करने की सोची. इसके लिए मशहूर अदाकारा जूही चावला को कंपनी ने प्रचार-प्रसार के लिए हायर किया था. इसके बाद कंपनी ब्रैंड के प्रचार-प्रसार के लिए भी नित नए प्रयोग करती आ रही है.

अब आगे क्या होगा?

वहीं हमदर्द के चीफ सेल्स मंसूर अली का कहना है कि कुछ हर्बल सामानों की आपूर्ति की कमी की वजह से प्रोडक्शन रुक गया था. क्योंकि इसमें इस्तेमाल होने वाले हर्बल विदेश से आयात किए जाते हैं, आयात में कमी की वजह से ऐसी स्थिति पैदा हुई थी. उन्होंने कहा कि हफ्ते-दस दिन में डिमांड और सप्लाई के अंतर को ठीक कर दिया जाएगा.

मंसूर अली की मानें तो गर्मी में 400 करोड़ के इस ब्रांड की बिक्री 25 फीसदी तक बढ़ जाती है. अब जब कंपनी फिर एक हफ्ते में रूह अफजा आसानी से मिलने की बात कह रही है तो ग्राहकों में एक उम्मीद जगी है.

किन चीजों से बनता है रूह अफजा?

रूह अफजा का सिरप बनाने के लिए काफी सारी जड़ी बूटियों, फूलों और फलों का इस्तेमाल होता है. इसमें पीसलेन, चिक्सर, अंगूर-किशमिश, यूरोपीय सफेद लिली, ब्लू स्टार वॉटर लिली, कम, बोरेज, धनिया जैसी जड़ी-बूटियां होती हैं तो फलों में नारंगी, नींबू, सेबस जामुनस स्ट्रॉबेरी, रास्पबेरी, चेरी और तरबूज जैसे फल का इस्तेमाल होता है.

Advertisement

जबकि सब्जियों में पालक, गाजर, टकसाल, माफी हफ्गें और फूलों में गुलाब, केवड़ा डाला जाता है. एक खास किस्म की जड़ी वेटिवर भी इसके सिरप में डलती है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement