पुलवामा आतंकी हमले के बाद देश भर में बेहद गुस्सा है, एक्सपर्ट ये पता लगाने में जुटे हैं कि आखिर सुरक्षा में चूक कहां हुई. ऐसा क्या हुआ जिससे आतंकियों ने आसानी के साथ ये हमला कर लिया और सीआरपीएफ के 40 जवानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. सभी एक्सपर्ट ये मानते हैं कि अगर विस्फोटकों से लदी गाड़ी की चेकिंग हो जाती तो इस हमले को रोका जा सकता था.
क्या यह सच है कि पिछली महबूबा मुफ्ती सरकार के एक आदेश के चलते उस गाड़ी की चेकिंग नहीं हो पाई जिसने ये कहर बरसाया? इंटरनेट पर इन दिनों रिटायर्ड मेजर जनरल जीडी बख्शी की एक क्लिप वायरल हो रही है. इसमें वह बता रहे हैं कि किस तरह महबूबा मुफ्ती की वजह से कश्मीर की सड़कों से चेकपोस्ट और बैरियरों को हटाया गया.
इस वीडियो में मेजर जनरल बख्शी ने दावा किया है कि श्रीनगर में एक फायरिंग हादसे के बाद सेना को न सिर्फ माफी मांगनी पड़ी थी बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने यह सुनिश्चित किया था कि इस हादसे में शामिल जवानों को तिहाड़ भेजा जाए.
इंडिया टुडे एंटी फेक न्यूज वार रुम (AFWA) की जांच में यह सामने आया कि जनरल बख्शी के दावे में कई खामियां हैं. इस घटना में शामिल किसी भी जवान को कभी तिहाड़ जेल नहीं भेजा गया था. जनरल बख्शी ने ये दावा एक टीवी शो में किया था.
इसे पुडुचेरी की लेफ्टिनेंट गवर्नर किरण बेदी ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से शेयर भी किया. कई लोगों ने इस वीडियो क्लिप को फेसबुक पर भी शेयर किया.
यहां जनरल बख्शी के दावे में दो तथ्यात्मक गलतियां हैं.
जनरल बख्शी और सुब्रह्मण्यम स्वामी जिस घटना का जिक्र कर रहे हैं वह घटना 3 नवंबर 2014 को बडगाम जिले के छतरगाम इलाके में हुई थी. इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी खबर के मुताबिक शाम के करीब सवा 5 बजे पांच लड़के छतरगाम से नौगाम के मुख्य मार्ग पर जा रहे थे जब उनकी कार पर 53 राष्ट्रीय राइफल्स के जवानों ने फायरिंग कर दी. इस फायरिंग में दो लड़कों की मौत हो गई. सेना और पुलिस ने इस घटना के चश्मदीदों के भी अलग-अलग बयान दर्ज किए कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिससे बैरिकेड पर गोलियां चलानी पड़ीं.
लेकिन जनरल बख्शी ने यह तथ्य गलत बताया कि उस वक्त महबूबा की सरकार थी. सच ये है कि नवंबर 2014 में उस वक्त उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे न कि महबूबा मुफ्ती. अप्रैल 2015 में पीडीपी की सरकार बनी और मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने, उनकी मृत्यु के बाद अप्रैल 2016 में महबूबा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
जिस घटना का जिक्र हो रहा है, उसके बाद पूरी घाटी में सेना के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन और हिंसा हुई. इस मामले में चदूरा थाने में एक एफआईआर ( नं 231/14) दर्ज की गई. सेना ने माना कि घटना में 53 राष्ट्रीय राइफल्स के जवानों की गलती थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नौ जवानों के खिलाफ कोर्ट ऑफ एनक्वाइरी के आदेश दिए गए थे. हालांकि इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि इस मामले में जवानों को सजा हुई और उन्हें तिहाड़ भेजा गया.
इस बार में एक विस्तृत रिपोर्ट द क्विंट में भी छपी जिसमें कहा गया कि तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा ने साफ किया कि जवानों के कोर्ट मार्शल की खबरें झूठी हैं. सेना ने भी इंडिया टुडे को कंफर्म किया कि जवानों को कभी भी जेल नहीं भेजा गया था.
जब हमने जनरल बख्शी से उनके दावे के बारे में पूछा तो उन्होंने माना कि फौजियों के अब भी जेल में होने की बात गलत है, हालांकि उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि घाटी में सुरक्षा जांच के नियमों में ढील देने के पीछे पीडीपी सरकार ही जिम्मेदार है.
बालकृष्ण