राहुल गांधी क्यों याद दिला रहे हैं 2011 की जनगणना, जानें- जातियों के डेटा का क्या हुआ

राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ में 2011 की जनगणना का जिक्र करते हुए केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला. राहुल आखिर 2011 की जनगणना क्यों याद दिला रहे हैं? 2011 की जनगणना में जातियों का जो डेटा जुटाया गया था, उसका क्या हुआ?

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 26 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 6:51 PM IST

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इन दिनों जातीय जनगणना की मांग को लेकर मुखर हैं. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक संसद में भी जातीय जनगणना की मांग उठा चुके हैं. राहुल गांधी ने अब चुनावी राज्य छत्तीसगढ़ में भी जातीय जनगणना का राग छेड़ दिया है. राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में जनसभा को संबोधित करते हुए जातिगत जनगणना को देश के लिए एक्स-रे की तरह बताया.

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राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज करते हुए कहा कि ये जहां भी जाते हैं, ओबीसी की बात करते हैं. पीएम मोदी जातीय जनगणना से क्यों डरते हैं? उन्होंने इसे जरूरी बताते हुए कहा कि कांग्रेस जब सत्ता में थी, जातीय जनगणना कराई थी जिसमें ये डेटा है कि देश में किस जाति के कितने लोग हैं. राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी ये डेटा छिपाना चाहते हैं.

अब सवाल ये उठ रहे हैं कि राहुल गांधी 2011 की जनगणना की याद क्यों दिला रहे हैं? दरअसल, महिला आरक्षण बिल पर चर्चा की शुरुआत में ही सोनिया गांधी ने जातीय जनगणना की मांग उठा दी. जब राहुल गांधी का नंबर आया, उन्होंने 90 में से तीन ओबीसी सचिव होने का जिक्र कर सरकार को घेरा. सोनिया से लेकर राहुल तक ने संसद में जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया और ओबीसी महिलाओं के लिए भी आरक्षण की मांग कर दी. इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह से लेकर कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल तक, सभी ओबीसी प्रधानमंत्री, ओबीसी मंत्री, बीजेपी के ओबीसी सांसद-विधायकों के डेटा बता कांग्रेस पर हमलावर हो गए.

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ओबीसी के मामले में भी बीजेपी पुरानी सरकारों के बहाने कांग्रेस को आक्रामक तरीके से घेर रही है. ओबीसी को लेकर जस्टिस जी रोहिणी की अध्यक्षता में गठित कमीशन की रिपोर्ट को सरकार की ओर से जातीय जनगणना की मांग काउंटर करने के लिए इस्तेमाल करने की चर्चा भी रही है. ऐसे में अब राहुल गांधी के 2011 की जातीय जनगणना याद दिलाने और इसके आंकड़े जारी नहीं करने के लिए सरकार पर आरोप लगाने को बीजेपी के दांव की काट के रूप में देखा जा रहा है.

दरअसल, साल 2011 की जनगणना से पहले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और समाजवादी पार्टी (सपा) जैसी पार्टियां जातीय जनगणना की मांग को लेकर मुखर हो गईं जिनकी सियासत का आधार ही ओबीसी पॉलिटिक्स है. तब कांग्रेस या यूपीए सरकार का इसे लेकर स्टैंड स्पष्ट नहीं था. कांग्रेस के ओबीसी नेताओं का एक वर्ग भी इसके पक्ष में था.

तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस पर आपत्ति जताते हुए ये कहा था कि जनगणना में अगर जाति से जुड़ा कॉलम जोड़ा जाता है तो परिणाम प्रभावित हो सकते हैं. दोनों अलग-अलग चीजें हैं और साथ कराने पर डेटा के घालमेल का खतरा है. सरकार ने प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में इसे लेकर एक कैबिनेट कमेटी गठित कर दिया. कैबिनेट कमेटी भी इसे लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंची तब सभी दलों की राय मांगी गई.

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बीजेपी की ओर से लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा था कि हमें जातियों की जानकारी इसमें शामिल करने पर कोई आपत्ति नहीं है. इसमें ये जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए कि डेटा को लेकर कोई गलती न हो. अंत में जनगणना के लिए जो प्रारूप तैयार हुआ उसमें जातियों से जुड़ा कॉलम भी जोड़ा गया. 2011 की जनगणना 2012 में जाकर पूरी हो सकी लेकिन इसके आंकड़े 2013 तक भी तैयार नहीं हो पाए.

क्यों जारी नहीं हो सका जातियों से जुड़ा डेटा

2011 की जनगणना में जातियों से संबंधित डेटा जुटाया तो गया था लेकिन ये जारी नहीं हो सका. साल 2018 में ये मुद्दा लोकसभा में उठा भी था. तब बजट सत्र के दौरान सरकार की ओर से लोकसभा में ये जानकारी दी गई थी कि जातियों से संबंधित डेटा रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के कार्यालय को दे दिया गया है. उसी साल मॉनसून सत्र के दौरान सरकार ने राज्यसभा में कलेक्शन के चरण की कुछ खामियों की वजह से डेटा प्रोसेसिंग में समय लगने की बात कही थी.

गृह मंत्रालय की ओर से 2021 में राज्यसभा में ये जानकारी दी गई कि जाति का कच्चा डेटा वर्गीकरण के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को भेज दिया गया है. इसके अगले साल यानी 2022 के जुलाई में सरकार ने संसद में ये जानकारी दी कि 2011 की जनगणना में जातियों का आंकड़ा जारी करने की कोई योजना नहीं है. इससे पहले, 2021 में सरकार ने जातीय जनगणना की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट हलफनामा दायर कर 2011 की जातीय जनगणना की खामियां गिनाई थीं.

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सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि 2011 में जो सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना कराई गई थी उसके आंकड़े गलतियों से भरे और अनुपयोगी थे. सरकार ने 2023 में ही बजट सत्र के दौरान डीएमके सांसद एकेपी चिनराज की ओर से पूछे गए अतारांकित प्रश्न के जवाब में ये जानकारी दी थी कि रोहिणी कमीशन के साथ 2011 की जनगणना में जातियों से जुड़े आंकड़े साझा नहीं किए गए हैं. रोहिणी कमीशन की ओर से सरकार को ऐसा कोई अनुरोध भी नहीं मिला है.

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