अयोध्या और ओरछा का गहरा नाता है. जहां अयोध्या में रामलला की बाल लीलाओं की जीवंत स्मृतियां है तो वहीं ओरछा में श्री राम राजा के रूप में विराजते हैं. चार पहर की आरती में राजसी वैभव के साथ उन्हें पहरे पर खड़े सिपाही सशस्त्र सलामी देते हैं. राम यहां के जनजीवन की सांसों में धड़कते हैं. अयोध्या और ओरछा का करीब 600 वर्ष पुराना नाता है. 16वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मधुकरशाह की महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या से रामलला को ओरछा लाई थी.
यहां के बुंदेला शासक मधुकर शाह की महारानी कुंवरि गणेश ने ही श्री राम को अयोध्या से ओरछा लाकर विराजित किया था. यह महज एक धार्मिक कथा नहीं, यह तार जुड़ती है उन सवालों से जो समय-समय पर अखबारों की सुर्खियां बनीं. उन संभावनाओं से जिनमें कहा गया कहीं अयोध्या की राम जन्म भूमि की असली मूर्ति ओरछा के रामराजा मंदिर में विराजमान तो नहीं?
जब-जब अयोध्या के राम सुर्खियों में आए, ओरछा के राम की चर्चा मीडिया की हेडलाइन बन गई. 1989 की कार सेवा के दौरान की बात हो या फिर अयोध्या मसले पर आने वाले फैसले की, हर बार मीडिया में एक ही सवाल सुर्खियां बनता है कि अयोध्या जन्म भूमि मंदिर की प्रतिमा ही ओरछा रामराजा मंदिर में विराजमान है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि ओरछा के शासक मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे और उनकी महारानी कुंवरि गणेश, राम उपासक. भक्ति की परस्पर विरोधी उपासना ही दोनों के बीच अक्सर विवाद का कारण बन जाती थी. एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने का प्रस्ताव दिया पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार करते हुए अयोध्या जाने की हठ ठान ली. इसी दौरान राजा ने रानी पर व्यंग्य किया कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ.
अपने आराध्य के प्रति किए गए व्यंग्य से महारानी कुंवरि अयोध्या रवाना हो गईं. अयोध्या में 21 दिन तपस्या के बाद भी जब श्री राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी. कहा जाता है कि महारानी की भक्ति को देखकर ही भगवान श्री राम नदी के जल में ही उनकी गोद मे आ गए. इसके बाद महारानी ने जब भगवान श्री राम से अयोध्या से ओरछा चलने का आग्रह किया तो उन्होंने तीन शर्तें रख दीं.
पहली शर्त थी कि मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा. दूसरी शर्त में कहा कि ओरछा के राजा के रूप विराजित होने के बाद किसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी. वहीं, तीसरी शर्त उन्होंने खुद को बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों को साथ ले जाने की थी.
महारानी के द्वारा शर्ते मानने के बाद रामराजा ओरछा आ गए. तब से भगवान राम यहां राजा के रूप में विराजमान हैं. भगवान राम के अयोध्या और ओरछा दोनों स्थानों पर रहने को पुष्ट करता दोहा आज भी रामराजा मन्दिर में लिखा है कि रामराजा सरकार के दो निवास हैं खास दिवस ओरछा रहत है रैन अयोध्या वास.
रामराजा के अयोध्या से ओरछा आने की कहानी जितनी पौराणिक मान्यताओं को पुष्ट करती है, वहीं इतिहास के उस युग से भी तार जोड़ती है जब भारत में मंदिर और मूर्तियों को सुरक्षित बचाना मुश्किल था. ऐसा कहा जाता है कि विदेशी आक्रांताओं के मंदिरों और मूर्तियों को तोड़े जाने से भयभीत अयोध्या के संतों ने जन्मभूमि में विराजमान श्रीराम के विग्रह को जल समाधि देकर बालू में दबा दिया था.
साहत्यिकार राकेश अयाची ने इस बारे में बात करते हुए कहा कि सोलहवीं सदी में ओरछा के शासक मधुकर शाह एकमात्र ऐसे पराक्रमी हिंदू राजा थे जो अपने धर्म के लिए अकबर के दरबार में बगावत कर चुके थे. इतिहास में यह बात अंकित है कि जब अकबर के दरबार में इस बात पर पाबंदी लगाई गई कोई भी राजा शाही दरबार में तिलक लगाकर नहीं आ सकता तो मधुकर शाह ने भरे दरबार में बगावत कर दी थी. तब अकबर को अपना फरमान वापस लेना पड़ा था.
अयोध्या के संतों को यह भरोसा था कि मधुकर शाह की हिंदूवादी सोच के बीच राम जन्मभूमि का श्रीराम का यह विग्रह ओरछा में पूरी तरह सुरक्षित रहेगा. इसीलिए उनकी महारानी कुंवर गणेश अयोध्या पहुंची और संतों से मिलकर विग्रह को ओरछा लाई.
धार्मिक कथा में प्रसंग आता है कि कई दिन तक अयोध्या में रुकने के बाद जब श्रीराम, महारानी को नहीं मिले तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी थी. तब उन्हें जल में प्रकट होकर श्री राम जी ने दर्शन दिए. जब हम इस प्रसंग को इतिहास से जोड़ते हैं तो संतों का कहना है कि उस काल में मंदिरों व प्रतिमाओं पर आक्रांताओं के हो रहे हमले से बचने के लिए अयोध्या के संतों ने राम जन्मभूमि में विराजमान श्री राम की प्रतिमा को सरयू नदी में जल समाधि देकर बालू से ढक दिया था. यही प्रतिमा रानी कुंवरि गणेश ओरछा लेकर आई थीं.
भगवान रामराजा ओरछा में रसोई में विराजने पर इतिहासकार बताते हैं कि रामराजा के लिए ओरछा के मंदिर का निर्माण कराया गया था, पर बाद में उन्हें मंदिर में विराजमान नहीं किया गया. इसका कारण सुरक्षा को ही माना जाता है. रजवाड़ों की महिलाएं जिस रसोई में रहती हैं, उसमें अधिक सुरक्षा और कही नहीं हो सकती. इसलिए मन्दिर में विराजमान न करके उन्हें रसोई घर मे विराजमान कराया गया. जब भी अयोध्या के राम लला की बात होती है तो हर बार यह सवाल सामने आता है कि आखिर रामजन्म भूमि में विराजमान असली प्रतिमा ओरछा में तो विराजित नहीं.
अयोध्या में श्री राम की जीवंत स्मृतियां भले ही विवाद का विषय हों लेकिन ओरछा की स्मृतियों में वह यहां के जनजीवन में हैं, धड़कनों में बसते हैं. कहीं कोई विवाद नहीं. अयोध्या में कोई भी विवाद हो कोई भी फैसला पर ओरछा में राम की उपस्थिति ठीक उसी तरह निर्विवाद है जैसी कभी अयोध्या में हुआ करती थी.
ओरछा में राम हिन्दू के भी है और मुसलमान के भी. 40 सालों से ओरछा में रहने वाले मुन्ना खान जो सिलाई का काम करते हैं, राम राजा की अयोध्या से ओरछा आने की कहानी मुंह जबानी याद रखते हैं. वह कहते हैं कि रोज दरबार में सजदा करता हूं. हमारे तो सब यही हैं. राम उनके आराध्य हैं, इसलिए उनकी ऐसी कामना है कि अयोध्या का फैसला भगवान राम के ही पक्ष में आए.
वहीं, ओरछा के नईम बेग भी राम को उतना ही मानते है जितना रहीम को. उनकी मानें तो आपसी भाईचारा ऐसा ही रहे, जैसा ओरछा के रामराजा दरबार में है. यही तो ओरछा के राम की गंगा जमुनी तहजीब है. ओरछा के राम सुविधा नहीं, श्रद्धा चाहते हैं. इसलिए उन्होंने विशाल चतुर्भुज मन्दिर का परित्याग कर वात्सल्य भक्ति की प्रतिमूर्ति महारानी कुंवरि गणेश की रसोई में बैठना स्वीकार किया था. वे भक्तों के भावों में बसते है भवनों की भव्यता में नहीं.
ओरछा और अयोध्या का संबंध करीब 600 वर्ष पुराना है. संवत 1631 में चैत्र शुक्ल नवमी को जब भगवान राम ओरछा आए तो उन्होंने संत समाज को यह आश्वासन भी दिया था कि उनकी राजधानी दोनों नगरों में रहेगी. तब यह बुन्देलखण्ड की अयोध्या बन गया. ओरछा का रामराजा मंदिर विश्व का एकमात्र अनूठा मंदिर है, जहां श्री राम को चार बार की आरती में सशस्त्र सलामी गार्ड ऑफ ऑनर दी जाती है क्योंकि राम यहां राजा के रूप में विराजे हैं.
इतना ही नहीं, ओरछा नगर के परिसर में रामराजा के अलावा देश के किसी भी वीवीआईपी को गार्ड ऑफ ऑनर नहीं दिया जाता, चाहे वह प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ही क्यों न हों क्योंकि यहां सिर्फ राजा राम को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है.
ओरछा को भले ही बुंदेलखंड के अयोध्या कहा जाता हो पर यहां की शांति और सद्भाव यह बताती है कि रामलला, अयोध्या में नहीं ओरछा में विराजते हैं. यहां सुबह होती है राम राम से और शाम होती है रामराजा की जांच के साथ, जन्म राम से मरण राम से जीवन का तारन राम से.
भगवान रामराजा सरकार जब रोजाना ओरछा से अयोध्या प्रतीकात्मक दीपक के स्वरूप में पाताली हनुमान मंदिर से जाते हैं तो भक्त जयकारों के साथ अपने राजा को विदा करते हैं. उनके स्वागत में मन्दिर से ही पुष्प बिछा दिए जाते हैं.;