प्रॉस्टिट्यूट, छेड़खानी, हाउसवाइफ... जेंडर स्टीरियोटाइप से जुड़े 43 शब्दों को हटाने के पीछे की कहानी

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने लैंगिक समानता बढ़ाने और महिलाओं के साथ न्यायिक क्षेत्र में भेदभाव दूर करने की पहल की है. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और दलीलों में 'जेंडर स्टीरियोटाइप' शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा. कोर्ट का कहना है कि संविधान सभी को समान अधिकारों की गारंटी देता है. महिलाएं ना तो पुरुषों के अधीन हैं और ना उन्हें किसी के अधीन होने की जरूरत है.

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सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की गरिमा के लिए हैंडबुक जारी की है. सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की गरिमा के लिए हैंडबुक जारी की है.

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 17 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 1:32 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने लैंगिक भेदभाव पर नकेल कसने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. बुधवार को SC की तरफ से एक हैंडबुक जारी की गई है. इस हैंडबुक का नाम 'कंबैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स' दिया है. इसमें कोर्ट ने न्यायिक आदेशों और फैसलों में महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी और गलत सोच दर्शाने वाली भाषा का इस्तेमाल ना करने के बारे में विस्तार से बताया है. साथ ही महिलाओं के पहनावे और उनके यौन संबंधों के इतिहास के आधार पर अवधारणा बना लेने को भी गलत ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को लेकर गरिमापूर्ण भाषा का उपयोग करने की सलाह दी है और कहा- रूढ़िवादी सोच को बदलना होगा. जानिए SC की हैंडबुक की 10 बड़ी बातें...

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सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए प्रयोग होने वाले आपत्तिजनक शब्दों पर रोक लगाने के लिए हैंडबुक लॉन्च की है. इसमें 43 रूढ़िवादी शब्दों और करीब इतने ही असम्मानजनक वाक्यांश और पूर्वाग्रह वाले वाक्यों का इस्तेमाल ना करने के बारे में निर्देश दिया गया है. साथ ही उन शब्दों की जगह वैकल्पिक शब्दों और भाषा का सुझाव दिया है. यह हैंडबुक देशभर के जजों और कानून से जुड़े लोगों को समझाने और महिलाओं के प्रति गलत शब्दों के इस्तेमाल से बचने की सलाह देती है.

1. किस कमेटी ने तैयार की हैंडबुक?

इस हैंडबुक को कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की अध्यक्षता वाली समिति ने तैयार की है. इस समिति में रिटायर्ड जस्टिस प्रभा श्रीदेवन और जस्टिस गीता मित्तल और प्रोफेसर झूमा सेन भी शामिल हैं. प्रोफेसर सेन फिलहाल कोलकाता में वेस्ट बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिडिकल साइंसेज में फैकल्टी मेम्बर हैं.

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2. किन शब्दों का इस्तेमाल करने पर मनाही?

- हुकर, प्रॉस्टीट्यूट, मिस्ट्रेस, ईव टीजिंग, हाउस वाइफ, कर्तव्यपरायण पत्नी, ड्यूटीफुल वाइफ, फेथफुल वाइफ, गुड वाइफ, ओबीडिएंट वाइफ जैसे अन्य शब्द.

3. अब किन शब्दों का इस्तेमाल होगा...

- स्ट्रीट, सेक्चुअल हैरेसमेंट, होममेकर, वाइफ, वूमन, बेरोजगार, ट्रांसजेंडर जैसे वैकल्पिक शब्द दिए गए हैं.

4. किन शब्दों की मनाही... अब वैकल्पिक तौर पर क्या कह सकते हैं?

स्टीरियोटाइप (गलत शब्द) वैकल्पिक भाषा
छेड़खानी सड़क पर यौन उत्पीड़न
कामकाजी महिला महिला
शारीरिक संबंध यौन संबंध
अफेयर शादी के इतर रिश्ता
प्रॉस्टिट्यूट या हुकर सेक्स वर्कर
अनवेड मदर यानी बिनब्याही मां मां शब्द का इस्तेमाल होगा
चाइल्ड प्रॉस्टिट्यूड तस्करी करके लाया बच्चा
बास्टर्ड यानी हरामी बिना विवाह किए दंपति से जन्मी संतान (ऐसा बच्चा जिसके माता-पिता ने शादी ना की हो)
ईव टीजिंग स्ट्रीट सेक्सुअल हैरेसमेंट
हाउसवाइफ होममेकर
मिस्ट्रेस ऐसी महिला जिसके साथ किसी पुरुष ने विवाहेतर रोमांटिक या यौन संबंध बनाए हों.
जैविक सेक्स/ जैविक पुरुष/ जैविक महिला जन्म के समय तय लिंग
लड़की/लड़के के रूप में जन्मा जन्म के समय पुरुष या महिला
अच्छे गुण वाली/ पवित्र महिला महिला
व्यभिचारिणी शादी के इतर यौन संबंध रखने वाली महिला
प्रोवोकेटिव क्लोदिंग/ड्रेस (भड़काऊ कपड़े) क्लोदिंग/ड्रेस
एफेमिनेट (जनाना) जेंडर न्यूट्रल शब्दों का प्रयोग
वफादार पत्नी/अच्छी पत्नी/आज्ञाकारी पत्नी वाइफ (पत्नी)
भारतीय महिला/पश्चिमी महिला महिला
कॉन्क्युबाइन/कीप ऐसी महिला जिसका शादी के इतर किसी पुरुष से शारीरिक संबंध हो.
फगोट (समलिंगी) व्यक्ति के यौन अभिविन्यास का सटीक वर्णन किया जाए. जैसे- समलैंगिक या उभयलिंगी.


5. वैकल्पिक शब्दों के इस्तेमाल का सुझाव

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस हैंडबुक को जारी करने का मकसद रूढ़िवादी सोच से बचने में मदद करना है. इस हैंडबुक में वैकल्पिक शब्दों के इस्तेमाल के लिए सुझाव दिए गए हैं. इसके साथ ही शब्दावली है.

6. महिलाओं को लेकर रूढ़िवादी सोच क्यों?

इस हैंडबुक में महिलाओं के गुणों के बारे में कुछ धारणाओं का भी जिक्र किया गया है. कोर्ट ने यह भी बताया कि यह धारणाएं गलत क्यों हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, रूढ़िवादी सोच यह है कि महिलाएं अत्यधिक भावुक, अतार्तिक होती हैं और निर्णय नहीं ले पाती हैं. जबकि वास्तविकता यह है कि लिंग किसी इंसान को तर्कसंगत, विचार क्षमता को निर्धारित या प्रभावित नहीं करता है. रूढ़िवादी सोच यह है कि अविवाहित महिलाएं अपने जीवन के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लेने में असमर्थ होती हैं. जबकि सच यह है कि विवाह का किसी व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.

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7. सीजेआई ने खुद लिखी प्रस्तावना

30 पेज की हैंडबुक की प्रस्तावना सीजेआई ने खुद लिखी है. उन्होंने जजों से ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं करने की नसीहत दी है, जो महिलाओं को लेकर रूढ़िवादी सोच दर्शाती है.

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8. LGBTQ के लिए हैंडबुक की थी लॉन्च

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने महिला दिवस पर हुए इवेंट में लीगल ग्लोसरी की घोषणा की थी. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने तीन महीने पहले मार्च में LGBTQ के लिए इस्तेमाल होने के लिए हैंडबुक लॉन्च की थी और कहा था- LGBTQ हैंडबुक के बाद जल्द ही हम जेंडर डिस्क्रिमिनेशन को खत्म करने के लिए अनुचित शब्दों की एक लीगल ग्लोसरी भी जारी करेंगे. सीजेआई ने कहा था, अगर आप आईपीसी की धारा 376 से संबंधित मामले का एक जजमेंट पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि कई ऐसे शब्द हैं जो अनुचित हैं. लेकिन उनका इस्तेमाल लीगल फ्रेटरनिटी में धड़ल्ले से होता है. लीगल ग्लोसरी से हमारी न्यायपालिका छोटी नहीं होगी और समय के साथ हम कानूनी भाषा को लेकर आगे बढ़ेंगे, क्योंकि हम भाषा को विषय और चीजों से ज्यादा महत्व देते हैं.

9. सीजेआई को कैसे आया विचार?

CJI ने बताया था कि मैंने ऐसे फैसले देखे हैं जिनमें किसी महिला के एक व्यक्ति के साथ रिश्ते में होने पर उसे रखैल लिखा गया. कई ऐसे केस थे, जिनमें घरेलू हिंसा अधिनियम और IPC की धारा 498ए के तहत FIR रद्द करने के लिए आवेदन किए गए थे, उनके फैसलों में महिलाओं को चोर तक कहा गया है.

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10. सीजेआई ने क्या तर्क दिया...

सीजेआई ने हैंडबुक करते हुए कहा, इसमें विभिन्न शब्दों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें जजों द्वारा टाला जा सकता था. उदाहरण के लिए महिला को व्यभिचारी कहना उचित नहीं है. इसके बजाय यह कहा जा सकता है- वह महिला जो विवाहेतर यौन संबंध में शामिल रही हो. अफेयर के प्रयोग को विवाहेतर संबंध से प्रतिस्थापित किया जा सकता है. पत्नी को कर्तव्यपरायण पत्नी कहना भी अनुचित बताया गया है. उसे महिला ही कहा जाना चाहिए. इसी तरह जबरन बलात्कार की जगह पर सिर्फ बलात्कार का प्रयोग किया जाना चाहिए. प्रॉस्टिट्यूट की जगह सेक्स वर्कर करना चाहिए.
- रूढ़िवादी धारणाएं अन्य लोगों के प्रति हमारे विचारों और कार्यों को प्रभावित करती हैं. वे हमें सामने वाले व्यक्ति को अपनी विशेषताओं के साथ एक अद्वितीय व्यक्ति के रूप में देखने से रोकती हैं. हमें उनके बारे में गलत धारणाएं बनाने के लिए प्रेरित करती हैं. रूढ़िवादी हमें किसी स्थिति की वास्तविकता को समझने से रोक सकती हैं. हमारे निर्णय को धूमिल कर सकती हैं.
- रूढ़िवादिता न्यायिक निर्णयों की निष्पक्षता और बौद्धिक कठोरता को प्रभावित करती है जहां वे जजों को कानून की आवश्यकताओं की अनदेखी करने या उन्हें दरकिनार करने या विशिष्ट व्यक्तियों या समूहों के सामने कानून के आवेदन को विकृत करने का कारण बनते हैं.
- यहां तक ​​कि जब जज कानूनी रूप से सही नतीजों पर पहुंचते हैं, तब भी लैंगिक रूढ़िवादिता को बढ़ावा देने वाले तर्क या भाषा का उपयोग अदालत के समक्ष व्यक्तियों की विशिष्ट विशेषताओं, स्वायत्तता और गरिमा को कमजोर करता है. स्थिति का निष्पक्ष मूल्यांकन करने के बजाय रूढ़िवादिता का उपयोग करना संवैधानिक सिद्धांत के खिलाफ जाता है.
-महिलाओं को ऐतिहासिक रूप से कई पूर्वाग्रही मान्यताओं और रूढ़िवादिता का सामना करना पड़ा है, जो समाज और न्याय प्रणाली के भीतर निष्पक्ष और समान व्यवहार तक उनकी पहुंच को बाधित करती है. भारतीय न्यायपालिका को लैंगिक रूढ़िवादिता के गहरे प्रभाव को पहचानना चाहिए और सक्रिय रूप से उन्हें अपनी सोच, निर्णय से खत्म करने के लिए काम करना चाहिए.

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किन और रूढ़िवादी बातों का जिक्र...

- हैंडबुक में आम रूढ़िवादिता पर भी चर्चा की गई है. जैसे- जो महिलाएं घर से बाहर काम करती हैं उन्हें अपने बच्चों की परवाह नहीं होती है. इसमें कहा गया है कि घर से बाहर काम करने का किसी महिला के अपने बच्चों के प्रति प्यार या चिंता से कोई संबंध नहीं है. सभी लिंग के माता-पिता अपने बच्चों की देखभाल के साथ-साथ घर से बाहर भी काम कर सकते हैं.
- आम रूढ़िवादिता है कि जो महिलाएं मां भी हैं, वे कार्यालय में कम सक्षम हैं. क्योंकि उनका ध्यान बच्चों की देखभाल से भटकता है. ये गलत है. जिन महिलाओं पर दोहरी जिम्मेदारी होती है, यानी घर से बाहर काम करना और बच्चों का पालन-पोषण करना, वे कार्यस्थल में कम सक्षम नहीं होती हैं. 
- जो महिलाएं गृहिणी हैं, वे 'अवैतनिक घरेलू श्रम' करती हैं, जैसे कि खाना बनाना, सफाई करना, कपड़े धोना, घरेलू प्रबंधन, हिसाब-किताब, और बुजुर्गों और बच्चों की देखभाल करना, बच्चों को उनके होमवर्क और पाठ्येतर गतिविधियों में मदद करना. महिलाओं द्वारा किया गया अवैतनिक श्रम ना सिर्फ घर के जीवन की गुणवत्ता में योगदान देता है, बल्कि मौद्रिक बचत भी करता है. 
- जो महिलाएं गृहिणी हैं, वे घर में समान (या अधिक) सीमा तक योगदान करती हैं. उनके योगदान को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. इस तरह के काम को सीमित तौर पर देखा जाता है.
-एक अन्य रूढ़िवादिता के बारे में कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में शारीरिक रूप से कमजोर हैं, इसमें कहा गया है, हालांकि पुरुष और महिलाएं शारीरिक रूप से अलग हैं, लेकिन यह सच नहीं है कि सभी महिलाएं सभी पुरुषों की तुलना में शारीरिक रूप से कमजोर हैं. एक व्यक्ति की ताकत केवल उनके लिंग पर निर्भर नहीं करती है, बल्कि उनके पेशे, आनुवंशिकी, पोषण और शारीरिक गतिविधि जैसे फैक्टर पर भी निर्भर करती है.
- महिलाओं से अक्सर ऐसे व्यवहार, कपड़े पहनने और बोलने की अपेक्षा की जाती है जो महिलाओं की तथाकथित 'अंतर्निहित विशेषताओं' और संबंधित लिंग भूमिकाओं के अनुरूप हो. यह याद रखना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति में विशेषताओं का एक अनूठा समूह होता है और दुनियाभर में महिलाओं और लैंगिक न्याय आंदोलनों ने इन रूढ़ियों से लड़ने और अदालत कक्ष के साथ-साथ उसके बाहर भी अपने लिए न्याय सुरक्षित करने के लिए कड़ी मेहनत की है.

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