रियो घोड़ा 18 साल से लगातार 26 जनवरी परेड का हिस्सा, आर्मी चीफ ने अवार्ड से नवाजा

अमूमन घोड़े 22 साल की उम्र तक रिटायर हो जाते हैं लेकिन रियो की सतर्कता और शॉर्प रिस्पॉन्स अब भी बरकरार हैं. 22 साल की उम्र में भी वो पूरी तरह सक्षम और मजबूत है. 

Advertisement
आर्मी चीफ ने रियो घोड़े को प्रशंसा अवार्ड से नवाजा आर्मी चीफ ने रियो घोड़े को प्रशंसा अवार्ड से नवाजा

अभिषेक भल्ला

  • नई दिल्ली ,
  • 31 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 7:15 PM IST
  • भारतीय सेना के घोड़े को मिला अवार्ड
  • आर्मी चीफ ने रियो घोड़े को प्रशंसा अवार्ड से नवाजा
  • रियो घोड़ा 18 साल से लगातार 26 जनवरी परेड का हिस्सा

भारतीय सेना के एक घोड़े को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कॉमन्डेशन (प्रशंसा) अवार्ड से नवाजा गया है. 22 साल के इस घोड़े का नाम रियो है. इसने लगातार 18 साल गणतंत्र दिवस दिवस परेड में हिस्सा लिया है. रविवार को दिल्ली कैंट के करिअप्पा ग्राउंड में हुए एक समारोह में रियो को कॉमन्डेशन दिया गया. थलसेना अध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे ने रियो को कॉमन्डेशन मेडल पिन किया.  

Advertisement

रियो गणतंत्र दिवस परेड का सबसे अनुभवी सदस्य है जो 18 साल से बिना कोई छुट्टी लिए परेड में हिस्सा लेता रहा है. रियो भारतीय सेना की 61 कैवलरी का पहला घोड़ा है जिसे ये अवार्ड मिला है. बता दें कि 61 कैवलरी दुनिया की इकलौती सक्रिय हॉर्स रेजीमेंट है. रियो पिछले 16 साल से कंटिंजेंट कमांडर का चार्जर भी रहा है.

अमूमन घोड़े 22 साल की उम्र तक रिटायर हो जाते हैं लेकिन रियो की सतर्कता और शॉर्प रिस्पॉन्स अब भी बरकरार हैं. 22 साल की उम्र में भी वो पूरी तरह सक्षम और मजबूत है. 

61 कैवलरी रेजीमेंट को भारत की आजादी के बाद भारतीय सेना के हिस्से के तौर पर 1 अगस्त 1953 को छह राज्यों की फोर्सेज को मिलाकर बनाया गया था. इस रेजीमेंट को अब तक 39 बैटल ऑनर्स मिल चुके हैं. घुड़सवारी और पोलो खेल प्रतियोगिताओं में भी इस रेजीमेंट के घोड़ों की धाक रही है.  

Advertisement

इस रेजीमेंट को एक पद्मश्री, एक सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक, 12 अर्जुन अवार्ड, 6 विशिष्ट सेवा मेडल, 53 चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कॉमन्डेशन, एक चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी कॉमन्डेशन, दो चीफ ऑफ नेवल स्टाफ कॉमेन्डेशन, आठ वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कॉमन्डेशन, आठ वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कॉमन्डेशन, आठ चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ कॉमन्डेशन और 180 जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ कॉमन्डेशन मिल चुके हैं.   

इस रेजीमेंट ने 1918 में पहले विश्व युद्ध के दौरान हाइफा के युद्ध में भी अपना लोहा मनवाया था. रेजीमेंट की सफलता को हर साल 23 सितंबर को हाइफा दिवस के तौर पर याद किया जाता है. इस दिन मैसूर और जोधपुर की भारतीय कैवलरी रेजीमेंट्स के पराक्रम को याद किया जाता है जिन्होंने हाइफा को 1918 में मुक्त कराने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी. उन्होंने अपने से कई बड़ी और मिल कर लड़ने वाली तुर्की, जर्मनी और ऑस्ट्रेलियाई फोर्सेज  को मात दी ती.  

देखें: आजतक LIVE TV 

1965 भारत-पाक युद्ध में 61 कैवलरी को राजस्थान के गंगानगर सेक्टर में तैनात किया गया था. इस पर सैकड़ों किलोमीटर में फैले क्षेत्र की जिम्मेदारी थी. वहां सरहद पार से एक भी घुसपैठ का मामला सामने नहीं आया था. 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दरान इस रेजीमेंट को राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था.  

Advertisement

ये रेजीमेंट 1989 में ऑपरेशन पवन, 1990 में ऑपरेशन रक्षक, 1999 में करगिल मे ऑपरेशन विजय और 2001-2002 में ऑपरेशन पराक्रम में भी विशिष्ट योगदान दे चुकी है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement