प्रकृति की सच्ची संरक्षक तिम्मक्का का निधन, 'पेड़ों की मां' ने 112 साल की उम्र में छोड़ी दुनिया

तिम्मक्का ने हजारों पेड़ों को लगा कर और उन्हें संवार कर पर्यावरण संरक्षण की ऐसी मिसाल पेश की, जिसकी गूंज पूरे देश-दुनिया में रही. उनके निधन पर सामाजिक संगठनों से लेकर राजनीतिक नेतृत्व तक ने गहरा शोक व्यक्त किया है. उनका जाना देश के ल‍िए अपूर्णनीय क्षति है.

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‘वृक्ष माता’ तिम्मक्का को अंतिम विदाई ‘वृक्ष माता’ तिम्मक्का को अंतिम विदाई

सगाय राज

  • बेंगलुरु,
  • 14 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:04 PM IST

मशहूर पर्यावरणविद् सालूमरादा तिम्मक्का का निधन हो गया है. 112 साल की पद्मश्री पुरस्कार विजेता तिम्मक्का ने आज बेंगलुरु के जयनगर अपोलो अस्पताल में आखिरी सांस ली. तिम्मक्का का जन्म तुमकुरु जिले के गुब्बी तालुक में हुआ था. उन्होंने हजारों पेड़ लगाकर और उनकी देखभाल करके पूरे देश में ख्याति पाई. इसी वजह से उन्हें 'पेड़ों की मां' कहा जाता था.

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अपने लंबे जीवन में तिम्मक्का को कई बड़े सम्मान मिले जिनमें राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार (1995), इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार (1997), नडोजा अवॉर्ड, राज्योत्सव अवॉर्ड आदि शामिल हैं. साल 2019 में पद्मश्री सम्मान दिया गया. साल 2020 में कर्नाटक सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने उन्हें मानद डॉक्टरेट भी प्रदान किया था. पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक कार्यों के लिए भी उन्हें कई सम्मान दिए गए.

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तिम्मक्का के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए X (ट्विटर) पर लिखा- 

ट्वीट में उन्होंने कहा कि वृक्ष माता सालूमरादा तिम्मक्का के निधन की खबर सुनकर मुझे दुख हुआ. उन्होंने हजारों पौधे लगाए और उन्हें अपने बच्चों की तरह पाला. उन्होंने अपना लगभग पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण को समर्पित किया. हालांकि तिम्मक्का आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन पर्यावरण के प्रति उनका प्रेम उन्हें हमेशा अमर रखेगा. उनकी आत्मा को शांति मिले-मेरी विनम्र श्रद्धांजलि. तिम्मक्का के निधन से देश ने एक महान मानवतावादी को खो दिया है. मैं उनके परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूं.

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अपने बच्चों की तरह पेड़ों से किया प्यार 

तिम्मक्का ने अपने पति के साथ मिलकर सड़क किनारे व अन्य स्थानों पर हजारों पेड़ लगाए और उन्हें 'अपने बच्चों' की तरह पाला-पोसा. 4-5 किमी की सड़क किनारे वे करीब 385 बरगद के पेड़ लगाने की शुरुआत की और बाद में कुल मिलाकर 8 हजार से अधिक पौधों का रोपण करती रहीं. 

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