'नहीं, वह मुझे PM नहीं बनाएंगी', बेटी शर्मिष्ठा की किताब में प्रणब मुखर्जी की डायरी के पन्ने... और सोनिया गांधी का जिक्र

प्रणब गांधी भारत का प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षा कभी नहीं छिपाई. लेकिन प्रणब ये भी जानते थे कि सिर्फ इसलिए कि वो PM बनना चाहते हैं इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें यह पद मिल जाएगा. बेटी शर्मिष्ठा ने पिता प्रणब की अधूरी हसरतों को अपनी किताब के पन्नों में करीने से उतार दिया है.

Advertisement
प्रणब मुखर्जी और सोनिया गांधी (फाइल फोटो- AFP) प्रणब मुखर्जी और सोनिया गांधी (फाइल फोटो- AFP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 12:25 PM IST

साल 2004 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को हराकर कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए सत्ता में आई तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा इस सवाल पर खूब बवाल हुआ. कांग्रेस के नेता सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी संभालने को कह रहे थे, लेकिन सोनिया इस पद के लिए इनकार कर चुकी थीं. इसके बाद पीएम पद के लिए डॉ मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी का नाम प्रमुखता से आगे आ रहा था. 

Advertisement

अब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी और पूर्व कांग्रेस प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने पिता के हवाले से उस समय की घटनाओं को एक किताब में पिरोया है. शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपनी किताब में लिखा है कि जब उन्होंने अपने पिता से पूछा कि क्या सोनिया गांधी की ओर से इनकार की हालत में उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं हैं. 

इसके जवाब में सोनिया का जिक्र करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि 'नहीं, वो मुझे प्रधानमंत्री नहीं बनाएंगी'. 

इस पुस्तक में,पूर्व कांग्रेस प्रवक्ता, जिन्होंने 2021 में राजनीति छोड़ दी, अपने पिता के शानदार जीवन की एक झलक प्रस्तुत करती हैं, जहां वह यह भी कहती हैं कि उनके पिता को प्रधानमंत्री न बनाने के लिए उनके पिता के मन में सोनिया गांधी के प्रति कोई विद्वेष नहीं था, और निश्चित रूप उस शख्सियत के प्रति तो कोई कड़वाहट नहीं थी जो इस काम के लिए चुने गए थे यानी की डॉ मनमोहन सिंह.

Advertisement

रुपा पब्लिकेशन की ओर से प्रकाशित इन प्रणब, माइ फादर: ए डॉटर्स रिमेंबर्स (In Pranab, My Father: A Daughter Remembers) में शर्मिष्ठा ने अपने पिता की डायरी, उनसे सुनी कहानियों और अपने शोध के आधार पर अपने पिता के अब तक के अज्ञात पहलुओं को उजागर किया है. कैसे प्रणब की भारत के प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा अधूरी रही, कैसे प्रणब सोनिया गांधी के नंबर वन विश्वस्त बनकर उभरने में नाकाम रहे. नेहरू गांधी परिवार के आभामंडल में उनका जीवन कैसे गुजरा और यह भी किस तरह राहुल गांधी में राजनीतिक करिश्मा और राजनीतिक समझ की कमी थी.ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर शर्मिष्ठा ने कलम चलाई है. 

शर्मिष्ठा मुखर्जी (फाइल फोटो)

प्रणब मुखर्जी ने भारत के वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया और बाद में विदेश, रक्षा, वित्त और वाणिज्य मंत्री बने. वह भारत के 13वें राष्ट्रपति (2012 से 2017) थे. 31 अगस्त, 2020 को 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया.

प्रणब मुखर्जी: जब इंदिरा ने कहा था, ट्यूटर रख लीजिए, अंग्रेजी का उच्चारण सुधर जाएगा 

पीएम बनने से सोनिया का इनकार और 10 जनपथ का राजनीतिक तापमान

"द पीएम इंडिया नेवर हैड" चैप्टर वाले अध्याय में शर्मिष्ठा लिखती हैं, "प्रधानमंत्री पद की दौड़ से हटने के सोनिया के फैसले के बाद, मीडिया और राजनीतिक गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म था. 

Advertisement

शर्मिष्ठा लिखती है, "इस पद के लिए शीर्ष दावेदारों के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी के नामों पर चर्चा हो रही थी. मुझे कुछ दिनों तक बाबा से मिलने का मौका नहीं मिला क्योंकि वह बहुत व्यस्त थे, लेकिन मैंने उनसे फोन पर बात की. मैंने उनसे उत्साहित होकर पूछा कि क्या वह पीएम बनने जा रहे हैं. उनका दो टूक जवाब था,'नहीं, वह मुझे पीएम नहीं बनाएंगी. वह मनमोहन सिंह होंगे.' उन्होंने आगे कहा, 'लेकिन उन्हें जल्द इसकी घोषणा करनी चाहिए. यह अनिश्चितता देश के लिए अच्छी नहीं है."

11 दिसंबर को लॉन्च होने जा रहे इस पुस्तक में शर्मिष्ठा कहती हैं कि उनके पिता को पीएम न बनने पर कोई निराशा नहीं हुई, ऐसा कहीं उनकी डायरी में नहीं है. उन्होंने एक पत्रकार से कहा कि उन्हें सोनिया गांधी से कोई उम्मीद नहीं है कि वह उन्हें प्रधानमंत्री बनाएंगी.

क्या प्रणब मुखर्जी स्वयं प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखते थे? इस सवाल को शर्मिष्ठा ने यूपीए-1 के दौरान अपने पिता से पूछा था. इसके जवाब में प्रणब ने अपने दिल की तमन्नाओं से सारे पर्दे हटा दिए थे. शर्मिष्ठा इस सवाल के जवाब में अपने किताब में लिखती हैं, "पापा ने कहा था- बेशक, मैं प्रधानमंत्री बनना चाहूंगा.' किसी भी योग्य राजनेता की यह महत्वाकांक्षा होती है. लेकिन सिर्फ इसलिए कि मैं इसे चाहता हूं इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे यह मिल जाएगा."

Advertisement

पूर्व कांग्रेस नेत्री ने अपने पिता के डायरी के पन्नों का जिक्र करते हुए लिखा है. 

17 मई 2004 को प्रणब मुखर्जी अपनी डायरी में लिखते हैं, "सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी से पीछे हटने का फैसला किया. बीजेपी का दुष्प्रचार. मुझे, मनमोहन, अर्जुन, अहमद पटेल और गुलाम नबी को बुलाया गया. हम स्तब्ध हैं."


17 मई 2004 की एंट्री, "सोनिया गांधी अपने फैसले पर कायम हैं. देशव्यापी आंदोलन. सहयोगी दल भी हैरान हैं. सीपीपी की बैठक भावनात्मक रूप से सराबोर है. उनसे पुनर्विचार करने की अपील है. रात 1 बजे तक काम किया"


19 मई को प्रणब ने अपनी डायरी में हल्की राहत का एहसास करते हुए लिखा, "मुद्दे सुलझ गए. मनमोहन सिंह मनोनीत प्रधानमंत्री बने."
किताब में कहा गया है, ''मनमोहन और सोनियाजी ने राष्ट्रपति से मुलाकात की और राष्ट्रपति ने मनमोहन सिंह को सरकार बनाने का न्योता देकर प्रसन्नता व्यक्त की.''

सोनिया की तारीफ में चली प्रणब की कलम

शर्मिष्ठा लिखती हैं कि उनके पिता को लगता था कि सोनिया प्रतिभाशाली, मेहनती और सीखने के लिए उत्सुक महिला थीं.एक बार बाबा ने मुझे बताया था कि कई राजनीतिक नेताओं के विपरीत, उनकी सबसे बड़ी ताकत यह थी कि वह अपनी कमजोरियों को जानती और पहचानती थीं और उन्हें दूर करने के लिए कड़ी मेहनत करने को तैयार थीं. वह जानती थीं कि उनके पास राजनीतिक अनुभव की कमी है, लेकिन उन्होंने भारतीय राजनीति और समाज की जटिलताओं को समझने के लिए कड़ी मेहनत की.

Advertisement

राहुल सीखना चाहते हैं लेकिन अभी परिपक्व नहीं

शर्मिष्ठा ने अपनी किताब में लिखा है कि प्रणब दा ने राहुल को 'बहुत विनम्र' और 'जिज्ञासा से भरा पूरा' बताया, प्रणब ने इसे राहुल की सीखने की इच्छा का संकेत माना. लेकिन उन्हें लगा कि राहुल 'अभी राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं हुए हैं.' राहुल राष्ट्रपति भवन में प्रणब से मिलते रहे. हालांकि बहुत बार नहीं. प्रणब ने उन्हें कैबिनेट में शामिल होने और शासन में कुछ सीधा अनुभव हासिल करने की सलाह दी.

शर्मिष्ठा लिखती हैं कि हालांकि कि हम सभी जानते हैं, राहुल ने स्पष्ट रूप से इस सलाह पर ध्यान नहीं दिया. इस किताब में आगे कहा गया है, "25 मार्च 2013 को इनमें से एक मुलाकात के दौरान प्रणब ने कहा, 'उन्हें विविध विषयों में रुचि है, लेकिन वे एक विषय से दूसरे विषय पर बहुत तेजी से आगे बढ़ते हैं. मुझे नहीं पता कि उन्होंने कितना सुना और आत्मसात किया."
 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement