प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति मुर्मू के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में जवाब दिया. इस दौरान पीएम मोदी ने परिवारवाद को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर दिया.
उन्होंने परिवारवाद पर कांग्रेस को घेरते हुए कहा कि एक ही परिवार के दस लोगों का राजनीति में आना बुरा नहीं है. हम तो चाहते हैं कि नए लोग और युवा राजनीति में आएं. अगर किसी परिवार में अपने बलबूते पर और जनसमर्थन से कई लोग राजनीतिक क्षेत्र में प्रगति करते हैं तो उसे हमने कभी परिवारवाद नहीं कहा है. लेकिन जो पार्टी परिवार से चलती है, जिस पार्टी के सारे फैसले परिवार ही करते हैं वो परिवारवाद है.
मोदी ने कहा कि राजनाथ सिंह और अमित शाह को परिवारवाद से नहीं छोड़ा जा सकता क्योंकि ना तो राजनाथ सिंह की पॉलिटिकल पार्टी है और ना ही अमित शाह की. अगर किसी परिवार के दो लोग प्रगति करते हैं तो मैं उसका स्वागत करूंगा. दस लोग भी प्रगति करेंगे तो मैं उनका स्वागत करूंगा. नई पीढ़ी का आगे आना स्वागत योग्य है. सवाल ये है कि परिवार ही पार्टियां चलाती हैं. यह पक्का होता है कि यह पार्टी अध्यक्ष नहीं होगा तो उसका बेटा होगा. ये लोकतंत्र के लिए खतरा है. परिवारवादी पार्टियों की राजनीति हम सबकी चिंता का विषय होना चाहिए.
परिवारवाद का खामियाजा देश ने उठाया
पीएम मोदी ने लोकसभा में कहा कि विपक्ष ने जो संकल्प किया है, मैं उसकी सराहना करता हूं. इससे मेरा और देश का विश्वास पक्का हो गया है क्योंकि विपक्ष ने लंबे समय तक विपक्ष में ही रहने का संकल्प लिया है. अब कई दशकों तक जैसे सत्ता पक्ष में बैठे थे, वैसे ही कई दशकों तक अब विपक्ष में बैठने का आपका संकल्प जनता जनार्दन जरूर पूरा करेगी.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश ने जितना परिवारवाद का खामियाजा उठाया है, खुद कांग्रेस ने भी उसका खामियाजा उठाया है. परिवारवाद की सेवा तो करनी पड़ती है. खड़गे इस सदन से उस सदन में चले गए. गुलाम नबी तो पार्टी से ही शिफ्ट कर गए. ये सब परिवारवाद की भेंट चढ़ गए. एक ही प्रोडक्ट बार-बार लॉन्च करने के चक्कर में अपनी ही दुकान को ताला लगाने की नौबत आ गई.
कांग्रेस की रही है कैंसिल पॉलिसी
पीएम ने कहा कि देश परिवारवाद से त्रस्त है. विपक्ष में एक ही परिवार की पार्टी है. हमें देखिए, ना राजनाथ जी की पॉलिटिकल पार्टी है, ना अमित शाह की पॉलिटिकल पार्टी है. जहां एक परिवार की पार्टी ही सर्वेसर्वा हो, वह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. देश के लोकतंत्र के लिए परिवारवादी राजनीति हम सबकी चिंता का विषय होना चाहिए. मैं किसी परिवार के दो लोग प्रगति करते हैं, उसका स्वागत करूंगा लेकिन सवाल ये है कि परिवार ही पार्टियां चलाती हैं. ये लोकतंत्र का खतरा है.
हम कहते हैं 'मेक इन इंडिया', कांग्रेस कहती है 'कैंसिल', हम कहते हैं, 'संसद की नई इमारत', कांग्रेस कहती है 'कैंसिल'. मैं हैरान हूं कि ये मोदी की उपलब्धि नहीं है बल्कि देश की उपलब्धियां है. इतनी नफरत कब तक पाले रखोगे?
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