'नाम बदलने की सनक समझ में नहीं आती', मनरेगा को 'जी राम जी' करने पर सदन में बोलीं प्रियंका

MGNREGA को खत्म करने के लिए लाए गए VB–GRAMG बिल पर संसद में बहस के दौरान कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने सख्त लहजे में विरोध किया है. उन्होंने कहा कि नया बिल रोजगार के कानूनी अधिकार को कमजोर करता है, केंद्र का नियंत्रण बढ़ाता है, राज्यों पर वित्तीय बोझ डालता है और संविधान व पंचायती राज की भावना के खिलाफ है.

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प्रियंका गांधी ने संसद में 'वीबी जी रामजी' बिल का किया विरोध (Photo: Screengrab) प्रियंका गांधी ने संसद में 'वीबी जी रामजी' बिल का किया विरोध (Photo: Screengrab)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 16 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:59 PM IST

मनरेगा को खत्म करने के लिए लाए गए बिल पर संसद में चर्चा चल रही है. इस दौरान कांग्रेस ने नए बिल का बड़ा विरोध किया है. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने संसद में 'विकसित भारत - गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) (VB – G RAM G)' बिल, 2025 का विरोध किया है. यह विधेयक मौजूदा मनरेगा (MGNREGA) कानून की जगह लेने वाला है. कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने बिल का विरोध करते हुए कहा, "इस विधेयक को पुरस्थापित करने पर अपनी सख्त आपत्ति दर्ज करना चाहती हूं. नए बिल से रोजगार का कानूनी अधिकार कमजोर हो रहा है."

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प्रियंका गांधी ने कहा, "हर योजना का नाम बदलने की जो सनक है, ये समझ में नहीं आती है. जब-जब ये किया जाता है, तो सरकार को पैसे खर्च करने पड़ते हैं. यह विधेयक वापस लिया जाना चाहिए और सरकार को नया विधायक पेश करना चाहिए. इस बिल को स्थायी समिति पास भेजा जाना चाहिए. कोई भी विधेयक किसी की निजी महत्वाकांक्षा, सनक और पूर्वाग्रहों के आधार पर न तो पेश होना चाहिए और न ही पास होना चाहिए."

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने योजनाओं का नाम बदलने के प्रति सरकार के 'जुनून' की आलोचना करते हुए कहा कि VB-G RAM G बिल सत्ता को केंद्रीकृत करता है और MGNREGA के तहत पहले से गारंटी वाले अधिकारों को कमजोर करता है. उन्होंने ऐसे गैर-जरूरी बदलावों के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया, जिनमें भारी खर्च होता है और स्थानीय शासन कमजोर होता है.

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'पिछले 20 सालों से...'

प्रियंका गांधी ने कहा, "मनरेगा कानून पिछले बीस सालों से ग्रामीण भारत को रोजगार देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में सक्षम रहा है. यह इतना क्रांतिकारी कानून है कि जब इसको बनाया गया तो सदन के सभी सियासी दलों ने इस पर सहमति जताई थी. इससे हमारे गरीब से गरीब भाई-बहनों को सौ दिन का रोजगार मिलता है."

उन्होंने आगे कहा कि जब हम अपने क्षेत्रों में जाते हैं, तो दूर-दूर से दिख जाता है कि मनरेगा मजदूर कौन है. सबसे गरीब होता है. चेहरे पर झुर्रियां होती हैं. हाथ मिलाने पर हाथ पत्थरों की तरह कठोर होते हैं क्योंकि वे बहुत मजदूरी करते हैं. इस कानून के तहत जो रोजगार की गारंटी और अधिकारी मिलता है, मांग के आधार पर संचालित होता है. मांग के आधार पर देना  अनिवार्य है. इस योजना के लिए कितने पैसे और कहां भेजने हैं, वो जमीनी हकीकत और मांग पर आधारित होता है. 

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'यह संविधान के खिलाफ है...'

प्रियंका ने कहा, "संविधान के 73वें संशोधन को नजरअंदाज किया जा रहा है. मनरेगा के जरिए ग्रामसभाओं को योजना की मांग को जमीनी परिस्थितियों के आधार पर तय करने का अधिकार दिया जाता था, लेकिन आज ये कमजोर किया जा रहा है. हमारी संविधान की भावना है कि हर शख्स के हाथों में शक्ति होना चाहिए, वही मूल भावना पंचायती राज में है. और ये बिल उसके विरोध में है."

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उन्होंने आगे कहा कि नए विधेयक के प्रबंधन से रोजगार का कानूनी अधिकार कमजोर हो रहा है और यह संविधान के खिलाफ है. 

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प्रियंका गांधी ने कहा, "मनरेगा में 90 प्रतिशत अनुदान केंद्र से आता था लेकिन नए बिल में प्रावधान है कि ज्यादातर अनुदान (60 फीसदी)  प्रदेशों से आएगा. इसको घटाया गया है. इससे प्रदेशों की अर्थव्यवस्था बहुत भार पड़ेगा. इस विधेयक द्वारा केंद्र का नियंत्रण बढ़ाया जा रहा है और जिम्मेदारी घटाई जा रही है. इसमें मजदूरी की बढ़ोतरी की कोई बात नहीं है."

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