पद्मश्री बिरुबाला राभा का निधन, कुप्रथाओं और अं​धविश्वास के खिलाफ लड़ाई में समर्पित रहा जीवन

स्विट्जरलैंड की संस्था 'द स्विस पीस' ने 2005 में '1000 विमेन' प्रोजेक्ट के तहत बिरुबाला राभा को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया था. असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि बिरुबाला राभा ने एक चुनौतीपूर्ण जीवन से आगे बढ़ते हुए, वह सभी बाधाओं के खिलाफ साहस का प्रतीक बनीं. समाज सेवा में उनके नेतृत्व के लिए असम सदैव आभारी रहेगा.

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कुप्रथाओं के खिलाफ लड़ने वाली सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री बिरुबाला राभा का निधन. (Photo: ANI) कुप्रथाओं के खिलाफ लड़ने वाली सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री बिरुबाला राभा का निधन. (Photo: ANI)

aajtak.in

  • गुवाहाटी ,
  • 14 मई 2024,
  • अपडेटेड 2:46 PM IST

जीवनभर टोना-टोटका और डायन-बिसाही (महिलाओं को डायन बताकर उनकी हत्या) जैसे अंधविश्वास और कुरीतियों के खिलाफ लड़ने वाली पद्मश्री बिरुबाला राभा का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वह कैंसर से जूझ रही थीं. उन्होंने 13 मई को असम के स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट ऑफ गौहाटी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (GMCH) में आखिरी सांस ली. बिरुबाला राभा को 2021 में डायन-बिसाही की शिकार महिला पीड़ितों की मदद करने में उनके आजीवन समर्पण के लिए देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया था.

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स्विट्जरलैंड की संस्था 'द स्विस पीस' ने 2005 में '1000 विमेन' प्रोजेक्ट के तहत बिरुबाला राभा को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया था. उनके छोटे बेटे दयालु राभा ने अपनी मां की मौत पर शोक जताते हुए आजतक से कहा, 'वह बहुत साहसी थीं और हमेशा कहती थीं कि अगर मैं लोगों की मदद करते हुए मर भी जाऊं तो यह बहुत बड़ा पुण्य होगा. अगर किसी की मदद करते हुए मुझे मौत का सामना करना पड़े तो मैं उसके लिए भी तैयार हूं. जब उन्हें कैंसर का पता चला था, तब भी वह नहीं टूटीं. उन्हें विश्वास था कि वह अपनी बीमारी पर काबू पा लेंगी और वह काम पूरा करेंगी जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया है.'

दयालु राभा ने कहा, 'जब मैं छोटा था तब मैं अपनी माँ को डायन-बिसाही के अंधविश्वास के खिलाफ लड़ते हुए देखकर डरता था. हम उन्हें रोकते थे, क्योंकि यह खतरनाक था. लेकिन वह कहती थीं कि लोगों की सेवा करना उनका कर्तव्य है. मुसीबत में फंसे लोगों की मदद करना उनका कर्तव्य है. वह कभी नहीं रुकीं और जो करना चाहती थीं उसे जारी रखा.' अपने परिवार के साथ बचपन में हुई घटना के बारे में बात करते हुए दयालु राभा ने कहा, 'मेरे बड़े भाई, धर्मेश्वर राभा जब बीमार पड़ गए, तो अंधविश्वास के कारण उन्हें एक स्थानीय तांत्रिक के पास ले जाया गया. तांत्रिक ने कहा गया कि मेरे भाई पर एक परी (चुड़ैल) का साया है. वह एक बच्चे को जन्म देगी और तीन दिनों के बाद मेरा भाई मर जाएगा. लेकिन मेरी मां ने दिन-रात मेरे भाई की अच्छी देखभाल की और वह फिर से बिल्कुल ठीक हो गए.'

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राभा ने सामाजिक बुराई और सभी प्रकार के अंधविश्वासों के खिलाफ लोगों में जागरूकता पैदा करने और डायन-बिसाही पीड़ितों को पुनर्वास प्रदान करने के लिए 2012 में 'मिशन बिरुबाला' का गठन किया. संगठन ने माजुली, कोकराझार, गोलपारा और तिनसुकिया जिलों में अब तक 55 पीड़ितों की जान बचाई है. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बिरुबाला राभा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया. उन्होंने X पर राभा को श्रद्धांजलि दी और लिखा, 'पद्मश्री बिरुबाला के निधन के बारे में जानकर मुझे बहुत दुख हुआ. सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के अपने अथक प्रयासों के माध्यम से, उन्होंने आशा और आत्मविश्वास के साथ सैकड़ों महिलाओं के मार्ग को रोशन किया.'

असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि बिरुबाला राभा ने एक चुनौतीपूर्ण जीवन से आगे बढ़ते हुए, वह सभी बाधाओं के खिलाफ साहस का प्रतीक बनीं. समाज सेवा में उनके नेतृत्व के लिए असम सदैव आभारी रहेगा. बिरुबाला राभा ने असम डायन बिसाही (निषेध, रोकथाम और संरक्षण) अधिनियम, 2015 को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने विच हंटिंग से संबंधित हर अपराध को संज्ञेय और गैर-जमानती बना दिया. इस कानून के तहत किसी व्यक्ति को डायन कहने और उसे प्रताड़ित करने पर ₹5 लाख तक के जुर्माने के साथ-साथ सात साल तक की जेल के सजा का प्रावधान है. (सारस्वत कश्यप के इनपुट के साथ)

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