कभी लाल सलाम की गूंज से कांपने वाला बस्तर, अब बच्चों की हंसी, स्कूल की घंटी, और विकास की आवाज से गूंज रहा है. जो क्षेत्र एक समय नक्सल हिंसा, अपहरण, बारूदी सुरंगों और बंदूकों के लिए जाना जाता था, वह अब उम्मीदों और उजाले की कहानी बन गया है. यह बदलाव अचानक नहीं आया - यह सरकार की संकल्प शक्ति, जनता के विश्वास और रणनीति की सूझबूझ का परिणाम है.
बीते डेढ़ वर्षों में छत्तीसगढ़ की सरकार ने नक्सल उन्मूलन की दिशा में ऐसे ठोस कदम उठाए हैं, जिसने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार ने नक्सलवाद की कमर तोड़ दी है. सबसे खास बात यह है कि यह सिर्फ गोली और बंदूक की लड़ाई नहीं थी - यह विश्वास और विकास की रणनीति भी थी.
इस अभियान की सबसे मार्मिक और प्रेरणादायक तस्वीर वह है, जहां महिला नक्सली हथियार छोड़ कर मुख्यधारा में लौट रही हैं. जिन हाथों में पहले बंदूकें थीं, अब वे बच्चों के हाथ थामे हुए हैं. आत्मसमर्पण करने वालों में बड़ी संख्या महिला माओवादियों की है. ये महिलाएं कभी ‘कमांडर’ के रूप में कुख्यात थीं, जिनके नाम पर गांवों में डर का माहौल रहता था, लेकिन अब वही महिलाएं पुलिस और प्रशासन की मदद से समाज में नए जीवन की शुरुआत कर रही हैं.
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 1 दिसंबर 2023 से 19 जून 2025 के बीच 1440 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें सैकड़ों महिला नक्सली शामिल थीं. वहीं 435 नक्सली मारे गए, जिनमें 8 महिला नक्सली थीं. यह संख्या बताती है कि अब नक्सली संगठन अपनी पकड़ खो रहे हैं, और उनकी मुख्य आधारशिला - महिला नेतृत्व भी दरकने लगा है.
ताजा आंकड़ों के अनुसार, नक्सली हिंसा से जुड़े मामलों में भारी गिरावट देखी गई है. 1440 आत्मसमर्पण, 1464 गिरफ्तारियां, 821 हथियारों और 1360 बारूदी सुरंगों की बरामदगी हुई है. 95 मुठभेड़ और 763 गिरफ्तारियां केवल बीजापुर जिले में - यह दिखाता है कि सुरक्षा बलों ने किस पैमाने पर अभियान चलाया है. 123 महिला नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया और 79 महिलाएं गिरफ्तार हुईं, जो यह दर्शाता है कि नारी शक्ति भी बदलाव का बड़ा हिस्सा बन रही है. नक्सलियों की गतिविधियों में कमी और आत्मसमर्पण में बढ़ोतरी सरकार की रणनीति की सफलता को साबित करती है
सरकार ने आत्मसमर्पण करने वालों के लिए पुनर्वास की मजबूत व्यवस्था की है. ‘नियद नेल्ला नार’ योजना जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार ने उन क्षेत्रों में बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाएं पहुंचाईं, जहां पहले माओवाद का बोलबाला था. महिला नक्सलियों को विशेष प्रशिक्षण, स्वरोजगार, और आर्थिक सहायता दी जा रही है ताकि वे सम्मान के साथ जीवन शुरू कर सकें. यह सोच केवल अपराध से मुक्ति नहीं, बल्कि जीवन को नया मकसद देने की सोच है.
अबूझमाड़ जैसे दुर्गम क्षेत्रों में 4G नेटवर्क की पहुंच, सैकड़ों स्कूलों का पुनः संचालन, और 49,000 करोड़ की सिंचाई परियोजनाएं यह साबित करती हैं कि सरकार केवल सुरक्षा नहीं, विश्वास की जीत चाहती है. सुरक्षा बलों के साथ-साथ समाज की भागीदारी भी इसमें अहम रही है. ‘बस्तर फाइटर्स’ के रूप में स्थानीय युवाओं को पुलिस बल में शामिल किया गया है जिससे उन्हें रोजगार भी मिला और अपने गांव की रक्षा का गर्व भी.
अब बस्तर में डर नहीं, उत्सव की गूंज है. बस्तर ओलंपिक में 1.65 लाख युवाओं की भागीदारी और पंडुम उत्सव में 47 हजार से अधिक कलाकारों की प्रस्तुति बताती है कि बस्तर अब जश्न की धरती बन रहा है. पालनार जैसे गांव, जो कभी उजड़ चुके थे, अब वहां फिर से बिजली, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाएं लौट आई हैं. जंगलों की वीरानी अब जीवन की चहचहाहट में बदल चुकी है.
सरकार की नीति है कि हर नक्सल-मुक्त पंचायत को 1 करोड़ रुपये तक की विकास योजनाओं की स्वीकृति दी जाए. ग्राम रक्षा समितियां स्थानीय सुरक्षा के साथ-साथ जागरूकता का कार्य कर रही हैं. पुलिस अधोसंरचना को मजबूत करने के लिए 518 करोड़ रुपये और अत्याधुनिक हथियारों के लिए 350 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. यह बताता है कि सरकार सुरक्षा और विकास दोनों को समान प्राथमिकता दे रही है.
बस्तर की यह यात्रा केवल भौगोलिक परिवर्तन नहीं, मानसिक क्रांति है. यह उदाहरण है कि जब नीतियां संवेदनशीलता से बनाई जाएं और विश्वास पर आधारित हों, तो सबसे कठोर रास्ते भी बदल सकते हैं. महिला नक्सलियों का आत्मसमर्पण, ग्रामीणों की सहभागिता और प्रशासन की प्रतिबद्धता मिलकर वह बस्तर बना रहे हैं जो कल तक कल्पना था और आज सच्चाई है. बस्तर अब बंदूक से नहीं, किताब से पहचाना जाता है. यह वह धरती बन चुकी है जहां डर की जगह भविष्य बसता है - शांत, समृद्ध और स्वाभिमानी भारत का प्रतीक बनकर.
जितेंद्र बहादुर सिंह