मालेगांव मनी लॉन्ड्रिंग केस: हाई कोर्ट ने BNS कानूनी व्यवस्था में PMLA को रखा बरकरार

आरोपी को 20 नवंबर, 2024 को ED ने नासिक मर्चेंट कोऑपरेटिव बैंक, मालेगांव में 14 नए खोले गए अकाउंट्स में जमा बड़ी रकम को कथित रूप से लूटने के आरोप में गिरफ्तार किया था.

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मालेगांव मनी लॉन्ड्रिंग मामले में हाई कोर्ट का आदेश मालेगांव मनी लॉन्ड्रिंग मामले में हाई कोर्ट का आदेश

विद्या

  • मुंबई,
  • 08 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 11:29 PM IST

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को 100 करोड़ रुपये के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार 33 साल के गुजरात निवासी की जमानत याचिका खारिज कर दी. इसके साथ ही कोर्ट ने फैसला सुनाया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) को निरस्त करने और उसके स्थान पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) लागू होने से धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 को लागू करने की प्रक्रिया प्रभावित नहीं होगी.

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क्या है पूरा मामला?

आरोपी नागनी अकरम मोहम्मद शफी को 20 नवंबर, 2024 को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने नासिक मर्चेंट कोऑपरेटिव बैंक, मालेगांव में 14 नए खोले गए अकाउंट्स में जमा बड़ी रकम को कथित रूप से लूटने के आरोप में गिरफ्तार किया था, जिसे बीजेपी नेता किरीट सोमैया ने उठाया था.

ट्रांजैक्शन, बीएनएस की धारा 318(4), 338 और 340(2) के तहत दर्ज अपराधों से जुड़े थे. शफी की तरफ से पेश हुए वकील अजय भिसे ने तर्क दिया कि अपराध बीएनएस के तहत दर्ज हैं, न कि आईपीसी के तहत, इसलिए पीएमएलए के तहत अनुसूचित अपराध नहीं माना जा सकता. उन्होंने कहा कि पीएमएलए अनुसूची में आईपीसी अपराधों को विशेष रूप से लिस्ट किया गया है और संसद ने बीएनएस में ट्रांजिशन को दर्शाने के लिए अनुसूची में संशोधन नहीं किया है.

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हालांकि, ईडी की तरफ से पेश हुए वकील हितेन वेनेगांवकर और आयुष केडिया ने कहा कि आईपीसी को रद्द करने और बीएनएस द्वारा रीप्लेसमेंट करने से पीएमएलए के कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ता है. उन्होंने जनरल क्लॉज एक्ट की धारा 8(1) पर भरोसा किया, जो निरस्त कानूनों के संदर्भों को फिर से लागू किए गए कानूनों के संदर्भ के रूप में व्याख्या करने की अनुमति देता है, बशर्ते कि अपराध काफी हद तक समान रहें.

जस्टिस अमित बोरकर की बेंच ने माना कि पीएमएलए केवल आईपीसी अपराधों का एक गतिशील संदर्भ देता है, समावेश नहीं और फैसला सुनाया कि बीएनएस में संबंधित अपराध पीएमएलए के तहत अनुसूचित अपराधों के रूप में माने जा सकते हैं. नहीं तो व्याख्या करने से एक अनपेक्षित कानूनी खालीपन पैदा होगा और कानून का मकसद फेल हो जाएगा."

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