'हम इंच भर जमीन नहीं देंगे...', महाराष्ट्र सरकार के प्रस्ताव पर भड़के कर्नाटक के CM बोम्मई

महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद चल रहा है. ये मामला 18 साल से सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है. दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद पांच दशकों से भी ज्यादा पुराना है. इसे लेकर हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात की थी और शांति बनाये रखने की अपील की थी.

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई. कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई.

aajtak.in

  • बेंगलुरु,
  • 27 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:32 PM IST

बेलगाम पर महाराष्ट्र सरकार के प्रस्ताव पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने ऐतराज जताया है. उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के प्रस्ताव पर सवाल उठाए हैं और मामले के सुप्रीम कोर्ट में होने का हवाला दिया है. उन्होंने कहा कि इन प्रस्तावों को कोई मतलब नहीं है. बोम्मई ने कहा कि हम अपनी इंच जमीन नहीं देंगे. हम अपने लोगों की रक्षा करेंगे और महाराष्ट्र सरकार के फैसले की निंदा करते हैं. 

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बता दें कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद चल रहा है. ये मामला 18 साल से सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है. दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद पांच दशकों से भी ज्यादा पुराना है. इसे लेकर हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात की थी और शांति बनाये रखने की अपील की थी. कुछ मसलों पर आम सहमति बनने का दावा किया गया था. अब एक बार फिर मसला गरमा गया है. मंगलवार को महाराष्ट्र विधानसभा में एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ. प्रस्ताव के मुताबिक, कर्नाटक के 865 मराठी भाषी गांवों को राज्य में शामिल करने के लिए कानूनी रूप से आगे बढ़ा जाएगा.

बोम्मई बोले- हम सीमा के बाहर भी अपने लोगों की रक्षा करेंगे

इस प्रस्ताव पर कर्नाटक सरकार ने आपत्ति जताई है. सीएम बसवराज बोम्मई ने कहा- महाराष्ट्र संकल्प का कोई मतलब नहीं है. ये कानूनी तौर पर नहीं है. उन्होंने हमारी संघीय व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है. हम इसकी निंदा करते हैं. राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुए कई वर्ष बीत चुके हैं. दोनों तरफ के लोग खुश हैं. महाराष्ट्र को राजनीति करने की आदत है. हम अपने रुख पर अडिग हैं. हम अपनी एक इंच जमीन नहीं देंगे. हमारी सरकार सीमा के बाहर भी कन्नड के लोगों की रक्षा करेगी. जब मामला सुप्रीम कोर्ट के पास है तो वे प्रस्ताव क्यों पारित कर रहे हैं? हमें कोर्ट पर भरोसा है.

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'हमें सुप्रीम कोर्ट से न्याय का भरोसा'

बोम्मई ने कहा कि हमारे और उनके संकल्प के तरीके में अंतर देखें. हमने कहा कि हम अपनी जमीन नहीं जाने देंगे. वे कह रहे हैं कि वे हमारी जमीन ले लेंगे. जब मामला सुप्रीम कोर्ट का है तो इन प्रस्तावों का कोई महत्व नहीं है. हमें विश्वास है कि हमें न्याय मिलेगा. हमारा संकल्प सुप्रीम कोर्ट के अनुरूप था. इसे पूरा देश देख रहा है. ये एक जिम्मेदार कदम नहीं है. हम इसकी निंदा करते हैं.

क्या है पूरा मामला

क्या है कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच का विवाद? दरअसल, आजादी से पहले महाराष्ट्र को बंबई रियासत के नाम से जाना जाता था. आज के समय के कर्नाटक के विजयपुरा, बेलगावी, धारवाड़ और उत्तर कन्नड़ पहले बंबई रियासत का हिस्सा थे. आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब बेलगावी नगर पालिका ने मांग की थी कि उसे प्रस्तावित महाराष्ट्र में शामिल किया जाए, क्योंकि यहां मराठी भाषी ज्यादा हैं. इसके बाद 1956 में जब भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने बेलगावी (पहले बेलगाम), निप्पणी, कारावार, खानापुर और नंदगाड को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग की. 

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जब मांग जोर पकड़ने लगी तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया. इस आयोग ने 1967 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. आयोग ने निप्पणी, खानापुर और नांदगाड सहित 262 गांव महाराष्ट्र को देने का सुझाव दिया. इस पर महाराष्ट्र ने आपत्ति जताई, क्योंकि वो बेलगावी सहित 814 गांवों की मांग कर रहा था. महाराष्ट्र का कहना है कि कर्नाटक के हिस्से में शामिल उन गांवों को उसमें मिलाया जाए, क्योंकि वहां मराठी बोलने वालों की आबादी ज्यादा है. लेकिन कर्नाटक भाषाई आधार पर राज्यों के गठन और 1967 की महाजन आयोग की रिपोर्ट को ही मानता है. कर्नाटक, बेलगावी को अपना अटूट हिस्सा बताता है. वहां सुवर्ण विधान सौध का गठन भी किया गया है, जहां हर साल विधानसभा सत्र होता है.

 

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