विदेश मंत्रालय (ME) ने केरल सरकार की विदेश सचिव की नियुक्ति की आलोचना की है. मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि कहा कि राज्य सरकारों को अपने संवैधानिक अधिकार क्षेत्र से बाहर के मामलों में दखल नहीं देना चाहिए.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार को संविधान के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि विदेशी मामलों से संबंधित मामले केंद्र सरकार का एकमात्र विशेषाधिकार हैं.
'ये केंद्र का विशेषाधिकार का मामला है'
उन्होंने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची एक (संघ) के आइटम-10 में स्पष्ट रूप से कहा गया है. विदेश मामले और सभी मामले जो संघ के किसी अन्य देश के साथ रिश्ते से जुड़े हैं. उन पर केंद्र सरकार का एकमात्र विशेषाधिकार है.
उन्होंने कहा कि ये एक समवर्ती और निश्चित रूप से एक राज्य का मामला नहीं है. हमारा रुख ये है कि राज्य सरकारों को ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जो उनके संवैधानिक अधिकार क्षेत्र से बाहर हों.
बता दें कि 15 जुलाई को केरल सरकार ने एक आदेश जारी कर श्रम और कौशल विभाग के सचिव के वासुकी को विदेश सहयोग से जुड़े मामलों का अतिरिक्त प्रभार सौंपा था.
BJP सांसद ने की आलोचना
वहीं, सोमवार को भाजपा सांसद पीपी चौधरी ने लोकसभा में ये मुद्दा उठाया और केरल सरकारी के कदम को असंवैधानिक और केंद्र की जिम्मेदारियों पर हमला बताया.
उन्होंने केरल सरकार से पूछा कि क्या केरल सरकार खुद को एक अलग राष्ट्र के रूप में मान रही है. भाजपा सांसद ने कहा कि बाहरी सहयोग का मतलब विभिन्न देशों, विदेशों में भारतीय दूतावास और मिशनों से निपटाए जाते हैं जो व्यापार नियमों के आवंटन के अनुसार संघ सूची का हिस्सा हैं.
राजस्थान के पाली से सांसद ने कहा कि तो केरल सरकार की ओर से ऐसा आदेश जारी कर एक आईएएस अधिकारी को विदेश सचिव नियुक्त करना असंवैधानिक है और यह संघ सूची का अतिक्रमण है."
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