संसद की स्थायी समिति ने दिल्ली में वायु प्रदूषण मापने की मौजूदा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. साइंस, टेक्नोलॉजी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर बनी संसदीय समिति का कहना है कि राजधानी में प्रदूषण की सही तस्वीर सामने ही नहीं आ पा रही, क्योंकि न तो निगरानी का ढांचा बराबर फैला है और न ही तकनीक पूरी तरह आधुनिक है.
समिति ने बताया कि दिल्ली में कुल 40 कंटीन्यूअस एंबिएंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन (CAAQMS) हैं, लेकिन इनमें से अब भी 7 स्टेशन मैनुअल सिस्टम पर चल रहे हैं, जिनसे रीयल-टाइम डेटा नहीं मिलता. समिति ने साफ कहा कि दिल्ली-NCR के सभी मैनुअल स्टेशनों को तुरंत CAAQMS में बदला जाना चाहिए और हर स्टेशन पर दुनिया की सबसे बेहतर उपलब्ध तकनीक लगाई जानी चाहिए, ताकि प्रदूषण के स्रोत और उसके घटकों की वैज्ञानिक पहचान हो सके. इससे नीतियां बनाने और आम लोगों को सही जानकारी देने में मदद मिलेगी.
कम प्रदूषित इलाकों में है मॉनिटर
समिति ने ये भी कहा कि दिल्ली में एयर मॉनिटरिंग स्टेशनों की लोकेशन में भारी असंतुलन है. ज्यादातर स्टेशन सेंट्रल और साउथ दिल्ली में लगाए गए हैं, जो अपेक्षाकृत हरे-भरे, कम प्रदूषित और संपन्न इलाके हैं. इससे प्रदूषण के आंकड़े एकतरफा और गैर-प्रतिनिधिक हो जाते हैं, जबकि ज्यादा आबादी और ज्यादा प्रदूषण वाले इलाकों की तस्वीर सामने ही नहीं आती.
समिति ने छह नए CAAQMS लगाने के प्रस्ताव पर भी सवाल उठाए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से कई स्टेशन ग्रीन जोन, जैसे जेएनयू कैंपस में प्रस्तावित हैं, जबकि ट्रांस-यमुना इलाके अब भी उपेक्षित हैं. समिति ने पर्यावरण मंत्रालय से कहा है कि नए स्टेशनों की जगहों पर दोबारा विचार किया जाए और न सिर्फ दिल्ली, बल्कि पूरे NCR में संतुलित तरीके से निगरानी ढांचा फैलाया जाए ताकि असली प्रदूषण बोझ का सही आकलन हो सके और उसी हिसाब से ठोस कदम उठाए जा सकें.
भारत को अपने सख्त मानक तय करने होंगे
संसदीय समिति ने भारत के वायु प्रदूषण नियंत्रण ढांचे में भी बड़ी खामियां गिनाईं. समिति ने कहा कि WHO की वायु गुणवत्ता गाइडलाइंस भले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानी जाती हों, लेकिन वे केवल सुझावात्मक हैं, कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं. ऐसे में भारत को अपनी भौगोलिक और सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के मुताबिक खुद के सख्त मानक तय करने और उन्हें लागू करने की जरूरत है.
समिति ने चेतावनी दी कि अगर परिवहन, उद्योग, बिजली संयंत्र, कचरा प्रबंधन, घरेलू ठोस ईंधन और धूल नियंत्रण जैसे क्षेत्रों में लगभग शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की दिशा में काम नहीं हुआ तो दिल्ली-NCR मौजूदा मानकों को भी पूरा नहीं कर पाएगा.
कई चेंज आए पर मानक अब भी पुराने
रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि नेशनल एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स (NAAQS) को आखिरी बार 2009 में संशोधित किया गया था. पिछले एक दशक में उत्सर्जन के स्वरूप और वैज्ञानिक समझ में बड़े बदलाव आए हैं, लेकिन मानक अब भी पुराने हैं. पर्यावरण मंत्रालय ने समिति को बताया है कि संशोधन की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन समिति ने इसे तेज करने और जल्द से जल्द लागू करने की सिफारिश की है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि WHO की वायु गुणवत्ता गाइडलाइंस केवल संकेतक हैं, लागू करने योग्य नहीं. देशों को अपनी भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार राष्ट्रीय मानक तय करने चाहिए. समिति का मानना है कि मौजूदा वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने के लिए दिल्ली-NCR को प्रदूषण नियंत्रण के हर क्षेत्र में बड़े स्तर पर कटौती करनी होगी और लगभग शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की ओर बढ़ना होगा.
कुल मिलाकर, संसद की समिति ने साफ कर दिया है कि दिल्ली की हवा की सही तस्वीर सामने लाने और उसे सुधारने के लिए आंकड़ों, तकनीक और नीतियों तीनों में बड़े बदलाव जरूरी हैं.
मिलन शर्मा