एम्स (AIIMS) ने हाल ही में एक ऐसा मेडिकल और सामाजिक कदम उठाया है, जिसने भारतीय चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान (research) के क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है. 32 वर्षीय वंदना जैन ने पांचवें महीने में गर्भपात (fifth-month abortion) हुआ. दुःख के उस पल में, वंदना और उनके पति की एक बहादुरी से भरी पहल की.
दंपति ने भ्रूण (fetus) को शोध और शिक्षा के लिए एम्स को दान कर दिया. कहा जा रहा है कि ये भारत में पहली बार है जहां भ्रूण दान (fetal donation) को औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया है. दधीचि देहदान समिति और एम्स की एनाटॉमी विभाग की टीम ने मिलकर इस प्रक्रिया को संभव बनाया. आइए जानते हैं कि इस भ्रूण से मेडिकल साइंस की दुनिया में किस तरह की रिसर्च की जा सकती है और इनके क्या फायदे हो सकते हैं.
फीटल टिश्यू रीसर्च है सबसे खास
नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (NOTTO) के डायरेक्टर डॉ अनिल कुमार कहते हैं कि ये डोनेशन एकेडमिक और रिसर्च में बहुत मददगार होगा. इसके जरिये इंसान के भीतर डेवलेपमेंटल और रेयर डिजीज के इलाज की संभावनाएं खोजी जा सकती हैं. इस डोनेशन के बहुत से फायदे होंगे.
बता दें कि भ्रूण के अंग-तंत्र जैसे मस्तिष्क (brain), लिवर (liver), बोन मैरो (bone marrow) और रक्त (blood) जैसी टिश्यूज़ रिसर्च बेस्ड प्रोजेक्ट्स में काम आती हैं. डॉ. सुब्रत बासु, प्रोफेसर, एनाटॉमी विभाग, AIIMS कहते हैं क जब हम भ्रूण-टिश्यूज़ का अध्ययन करते हैं, तो हमें ये समझने का अवसर मिलता है कि किस समय कौन-सा अंग कैसे विकसित हो रहा है, किस समय किस कोशिका (cell) का निर्माण हो रहा है. ये जानकारी मेडिकल छात्रों और अनुसंधानकर्ताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है.
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स्टेम सेल रिसर्च में भी फायदा
इसके अलावा भ्रूण से निकली स्टेम सेल्स (stem cells) अन्य कोशिकाओं में परिवर्तित (differentiate) होने की क्षमता रखती हैं. इस क्षमता के कारण कैंसर, अल्जाइमर, पार्किंसन, स्पाइनल इंजरी आदि गंभीर रोगों पर दुनिया भर में शोध चल रहा है. भारत में भी इसमें शोध इस तरह के ट्रीटमेंट या थेरेपीज की दिशा खोल सकते हैं. भ्रूण-द्वारा प्राप्त स्टेम सेल्स में यह देखा जा सकता है कि किस अवस्था पर किस तरह की कोशिकाएं अधिक vulnerable होती हैं और किस तरह की कोशिका डैमेज होती है.
वैक्सीन और दवाइयों के लिए उपयोगी
कुछ दवाइयां या नई चिकित्सा पद्धतियां (therapies) विकसित करने के लिए ये जानना ज़रूरी है कि भ्रूण-टिश्यूज़ पर उनका क्या प्रभाव होगा. उदाहरण के लिए, वो चरण जब गर्भ में अंगों का विकास हो रहा हो, उस समय किसी दवा का प्रयोग कैसे हो सकता है. ये परीक्षण भ्रूण-टिश्यूज से ही संभव हैं, विशेषकर उन कोशिकाओं और अंगों में जहां विकास जारी हो रहा हो.
किन मामलों में सीमित माना जाता है भ्रूण-दान
इस पहल के साथ ही ये सवाल उठता है कि भ्रूण-दान को सीमित क्यों कहा जाता है. ICMR की नेशनल एथिकल गाइडलाइंस के अनुसार भ्रूण-टिश्यूज का प्रयोग सिर्फ उन मामलों में हो सकता है जहां अनुसंधान गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, न्यूरोलॉजी (मस्तिष्क/तंत्रिका तंत्र संबंधी रोग, जेनेटिक डिसऑर्डर आदि से जुड़ा हो. Cosmetic या सौंदर्य के उद्देश्य जैसे गैर-जरूरी (non-essential) प्रयोगों के लिए कानूनी अनुमति नहीं होती.
मानसी मिश्रा