मुंबई में 1993 के सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले के मुख्य आरोपी अब्दुल करीम टुंडा (81 वर्षीय) को गुरुवार, 29 फरवरी को अजमेर की विशेष टाडा अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. मामले के दो अन्य आरोपियों इरफान अहमद और हमीर-उल-उद्दीन उर्फ हमीदुद्दीन को टाडा कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई. सीबीआई अब्दुल करीम टुंडा के खिलाफ ठोस सबूत पेश करने में विफल रही.
कोर्ट के फैसला आने के बाद अब्दुल करीम टुंडा ने मीडिया कर्मियों से बातचीत में कहा, 'कोर्ट ने मुझे बरी कर दिया है, कोर्ट की बहुत मेहरबानी. सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से, खुशबू आ नहीं सकती कागज के फूलों से...' अब्दुल करीम टुंडा उत्तर प्रदेश के हापुड़ का रहने वाला है. वह पिलखुवा में बढ़ई का काम करता था. बम बनाते समय अपना एक हाथ खोने के बाद उसको 'टुंडा' उपनाम मिला.
टाडा कोर्ट ने अब्दुल करीम टुंडा को क्यों बरी किया?
पांच व 6 दिसंबर, 1993 को मुंबई से नई दिल्ली, नई दिल्ली से हावड़ा, हावड़ा से नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस, सूरत से बड़ौदा फ्लाइंग क्वीन एक्सप्रेस, हैदराबाद से नई दिल्ली आंध्र प्रदेश एक्सप्रेस ट्रेनों में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे. इस आतंकी बम धमाकों में दो यात्रियों की मृत्यु हुई थी और 22 लोग घायल हुए थे. घायलों में से कुछ को गंभीर और कुछ को साधारण चोटें आई थीं.
कोर्ट ने मामले में बहस सुनने के बाद निष्कर्ष निकाला कि इरफान अहमद और हमीर-उल-उद्दीन उर्फ हमीदुद्दीन अपराध के खिलाफ पेश सबूत उन्हें दोषसिद्ध करार दिए जाने योग्य हैं. वहीं मुख्य अभियुक्त सैयद अब्दुल करीम टुंडा के विरूद्ध आपराधिक षडयंत्र में शामिल होने के पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं. अभियोजन टुंडा के विरूद्ध 5 व 6 दिसंबर, 1993 की रात विभिन्न ट्रेनों मे हुए बम विस्फोटों के संबंध में उसकी भूमिका स्पष्ट नहीं कर सका है.
टाडा कोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा, 'अभियोजन द्वारा केवल इस सीमा तक साक्ष्य पेश किए गए कि अभियुक्त सैयद अब्दुल करीम टुंडा ने अन्य अभियुक्तों जलीस अंसारी और हबीब अहमद को बम बनाने की विधि समझाई थी व उन्हें विस्फोटक उपलब्ध कराए थे. अभियोजन द्वारा यह साक्ष्य पेश किया गया कि अभियुक्त सैयद अब्दुल करीम द्वारा जो विस्फोटक सामग्री जलीस अंसारी को उपलब्ध कराई गई थी, उसका उपयोग मुंबई बम धमाकों से संबंधित अपराध की घटना में किया गया था'.
मामले के दो अन्य आरोपियों को मिली उम्रकैद की सजा
कोर्ट ने कहा, 'अभियोजन यह स्पष्ट नहीं कर सका है कि सैयद अब्दुल करीम टुंडा ने लंबी दूरी की ट्रेनों में विस्फोट के लिए सामग्री उपलब्ध कराई हो, अपना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग अन्य अभियुक्तों को दिया हो और इस अपराध की साजिश में शामिल रहा हो. टुंडा पर लगाए गए आरोप संदेह से परे साबित नहीं होते हैं. इसलिए यह अभियुक्त संदेह के लाभ में आरोपों से दोष मुक्ति का हकदार है'. फिर टाडा कोर्ट ने सैयद अब्दुल करीम टुंडा को संदेह का लाभ देते हुए दोष मुक्त करार दिया. वहीं अन्य दो अभियुक्तों इरफान अहमद (70) और हमीर-उल-उद्दीन उर्फ हमीदुद्दीन (44) को उम्रकैद की सुजा सुनाई.
चंद्रशेखर शर्मा