19 जून 1966 को अस्तित्व में आई शिवसेना के स्थापना दिवस को लेकर आज महाराष्ट्र में अलग ही सियासी मूड नजर आ रहा है. शिवसेना के पिछले स्थापना दिवस (19 जून 2022) से लेकर 2023 के स्थापना दिवस तक, पार्टी अध्यक्ष-मुख्यमंत्री-गठबंधन पिछले एक साल में कितना कुछ बदल चुका है. स्थापना दिवस के अगले दिन शुरू हुई बगावत ने शिवसेना को उस अंजाम तक पहुंचा दिया जहां से पार्टी दो भाग में बंट चुकी है.
शिवसेना के पिछले स्थापना दिवस के अगले दिन 20 जून 2022 को विधान परिषद चुनाव के लिए मतदान था. शिवसेना के कुछ विधायकों के क्रॉस वोटिंग करने की खबर आई और यही मतदान 'उद्धव ठाकरे और उनके सबसे विश्वस्त सहयोगियों में से एक एकनाथ शिंदे के बीच सबकुछ ठीक नहीं है' का संदेश लेकर भी आया. एमएलसी चुनाव की वोटिंग के बाद एकनाथ शिंदे, उद्धव ठाकरे और शिवसेना के लिए 'आउट ऑफ रीच' हो गए.
शिवसेना के नेता, तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जब तक कुछ समझ पाते, एक्टिव हो पाते, एकनाथ शिंदे के कुछ विधायकों के साथ गुजरात के सूरत में होने की खबर आई. एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के 43 और सात निर्दलीय विधायकों के साथ का दावा करते हुए बगावत का बिगुल फूंक दिया. शिवसेना ने एकनाथ शिंदे को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया तो वहीं शिंदे समेत विधायकों के सूरत से असम पहुंचने के बाद शुरू हुआ होटल पॉलिटिक्स और मान-मनौव्वल, तीखी बयानबाजियों का दौर.
महाराष्ट्र की सियासत और चंद रोज पहले ही सियासत के सफर में 56 साल पूरे करने वाली शिवसेना, दोनों ही एक ऐसी सियासी उथल-पुथल के गवाह बन रहे थे जिसमें उद्धव ठाकरे की कुर्सी तो गई ही, उनके हाथ से पिता की बनाई पार्टी भी छिन गई. महाराष्ट्र की सियासत में हुए बड़े उलटफेर के भी 12 महीने पूरे होने को हैं. शिवसेना में बगावत की शुरुआत से लेकर पार्टी पर कब्जे की लड़ाई और अब तक, यानी पिछले 12 महीने के सफर में शिवसेना में कितना कुछ बदल गया है? उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की शिवसेना में पावर बैलेंस किसके पाले में कितना है?
एकनाथ शिंदे के पास शिवसेना का नाम-निशान
एकनाथ शिंदे की बगावत और उद्धव सरकार की विदाई के बाद दोनों गुटों की लड़ाई पार्टी पर आ गई. दोनों ही गुटों ने चुनाव आयोग पहुंचकर पार्टी पर दावा ठोका. चुनाव आयोग ने इस मामले में शिवसेना के नाम, चुनाव निशान तीर-कमान को लेकर शिंदे गुट के पक्ष में फैसला सुनाया. चुनाव आयोग ने इस फैसले के पीछे सांसद-विधायकों के समर्थन को मु्ख्य आधार बताया था. इसके बाद उद्धव ठाकरे ने शिवसेना (यूबीटी) नाम से अलग पार्टी के गठन का ऐलान कर दिया था.
शिंदे-उद्धव में किसके पास कितने सांसद-विधायक?
चुनाव आयोग की ओर शिवसेना पर दावे को लेकर फैसले में ये भी जानकारी दी गई थी कि एकनाथ शिंदे गुट के पास 2019 में जीतकर आए शिवसेना के कुल 55 में से 40 विधायकों का समर्थन है. वहीं, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी के पास 15 विधायकों का समर्थन है. शिवसेना ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीती थीं.
शिवसेना के लोकसभा सदस्यों की संख्या 19 तक पहुंच गई थी. शिवसेना के 19 में से 13 सांसद पार्टी के दो भाग में विभाजित होने के बाद शिंदे गुट के साथ चले गए थे. उद्धव ठाकरे के खेमे में लोकसभा के पांच सदस्य ही बचे हैं. महाराष्ट्र विधानसभा और लोकसभा की तस्वीर देखें तो उद्धव ठाकरे की पार्टी पर एकनाथ शिंदे का खेमा भारी है.
विधानसभा-संसद में शिवसेना दफ्तर किसके पास
शिवसेना के विभाजन के बाद महाराष्ट्र विधानसभा और लोकसभा में पार्टी के लिए आवंटित कक्ष की लड़ाई में भी एकनाथ शिंदे का गुट भारी पड़ा. महाराष्ट्र विधानसभा और लोकसभा में शिवसेना के लिए आवंटित कक्ष एकनाथ शिंदे गुट को मिल गए थे. शिवसेना के मुख्य कार्यालय सेना भवन समेत पार्टी के अन्य सभी कार्यालय शिवसेना (यूबीटी) के पास हैं.
राज्यों के संगठन में शिंदे भारी, 15 में से 12 साथ
शिवसेना का मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान समेत 15 राज्यों में संगठन था. इन 15 में से 12 राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष और संगठन शिंदे गुट के साथ हैं. ठाणे समेत महाराष्ट्र के कई नगर निकायों में शिवसेना के पार्षद भी उद्धव ठाकरे को झटका देते हुए शिंदे के साथ आ चुके हैं. बड़ी तादाद में शिवसेना के पूर्व बीएमसी पार्षद भी शिंदे की पार्टी से जुड़ चुके हैं. एकनाथ की बगावत के बाद उद्धव ने जिन शिशिर शिंदे को पार्टी का उपनेता बनाया था, उन्होंने भी साथ छोड़ दिया है. उद्धव की पार्टी की प्रवक्ता रहीं मनीषा कायंदे भी एकनाथ शिंदे की शिवसेना में शामिल हो चुकी हैं.
1 साल पहले एक साथ, एक मंच पर थे, आज अलग-अलग
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना गोरेगांव के नेस्को ग्राउंड में स्थापना दिवस मना रही है तो वहीं, शिवसेना (यूबीटी) ने सेंट्रल मुंबई के सियोन स्थित सन्मुखानंद हॉल को स्थापना दिवस के लिए चुना है. शिवसेना का स्थापना दिवस उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे, दोनों ही मना रहे हैं लेकिन तस्वीर पिछले साल से बिलकुल अलग है. दोनों नेता पिछले साल जहां एक साथ, एक मंच पर थे. वहीं इस बार अलग-अलग.
स्थापना दिवस के अगले दिन ही शुरू हुई थी बगावत
शिवसेना के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में तत्कालीन मुख्यमंत्री और पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ ही उनकी सरकार में मंत्री और पार्टी विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे भी मंच पर मौजूद थे. उद्धव ठाकरे ने अपने संबोधन में विपक्ष पर जमकर निशाना साधा. शिवसैनिक भी उत्साह से लबरेज थे. एकनाथ शिंदे ने इस कार्यक्रम को संबोधित नहीं किया. तब शायद किसी को ये अंदाजा भी नहीं होगा कि शिंदे के दिल में जो चल रहा है, वह पार्टी का नक्शा बदल देगा.
स्थापना दिवस के अगले दिन यानी 20 जून को एमएलसी सीटों पर चुनाव हुए जिसमें विधायक ही मतदान करते हैं. इस मतदान के तुरंत बाद एकनाथ शिंदे से शिवसेना के नेताओं का संपर्क स्थापित होना बंद हो गया. एकनाथ शिंदे 11 विधायकों के साथ पड़ोसी राज्य गुजरात के सूरत शहर पहुंच गए थे. एकनाथ शिंदे के 11 विधायकों के साथ सूरत में होने की खबर और संपर्क नहीं हो पाना, इन सबने पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे और अन्य नेताओं की चिंता बढ़ा दी. शिवसेना और उद्धव ठाकरे एक्टिव हुए और अगले ही दिन विधायक दल की बैठक बुलाकर शिंदे को पार्टी के विधायक दल के नेता पद से हटा दिया.
एकनाथ शिंदे समर्थक विधायकों के साथ गुजरात के सूरत से असम के गुवाहाटी पहुंच चुके थे. एक तरफ उद्धव ठाकरे और शिवसेना के नेता शिंदे को मनाने की कवायद में जुटे थे तो वहीं दूसरी तरफ बागी विधायकों की संख्या भी बढ़ती चली गई. एकनाथ शिंदे ने गुवाहाटी के होटल में शिवसेना के 43 और सात निर्दलीय विधायकों की बैठक की तस्वीर शेयर कर 50 विधायकों के समर्थन का दावा कर दिया. बागी गुट ने शिंदे को विधायक दल का नेता चुनने का भी ऐलान कर दिया. इसके बाद शुरू हुई सियासी टशल आज उस अंजाम पर है जहां उद्धव के हाथ से सत्ता तो गई ही, अपने ही पिता की बनाई पार्टी भी नहीं रही.
बिकेश तिवारी