अपनों के 'खेल' से कांग्रेस फेल! हरियाणा चुनाव में भितरघात पर राहुल गांधी लेंगे एक्शन?

चुनाव से पहले ही हरियाणा कांग्रेस में आपस में ही इतनी खींचतान थी कि दावा हुआ टिकट तक ज्यादातर हुड्डा कैंप ले गया. अलग अलग रिपोर्ट्स के आधार पर सामने आया कि आंकड़ा कहता है कि हरियाणा में 90 में से 89 टिकट जो कांग्रेस ने बांटे, उनमें हुड्डा कैंप के प्रत्याशी 72 थे. सैलजा गुट के 10, केंद्रीय नेतृत्व की सिफारिश से चार मिले, सुरजेवाला कैंप को दो, अजय यादव अपने बेटे के लिए एक टिकट पाए. और इसमें हुड्डा कैंप के 42 फीसदी प्रत्याशी जीते.

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राहुल गांधी और खड़गे ने हरियाणा के नतीजों को लेकर बैठक की (फाइल फोटो) राहुल गांधी और खड़गे ने हरियाणा के नतीजों को लेकर बैठक की (फाइल फोटो)

आजतक ब्यूरो

  • नई दिल्ली,
  • 10 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:25 PM IST

हरियाणा चुनाव के बाद कांग्रेस पर एक शेर बिल्कुल फिट बैठता है और वो है- कांग्रेस की कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था... हरियाणा में अपनों ने ही ऐसा खेल कर दिया कि फेल हुई कांग्रेस के लिए राहुल गांधी ने गुरुवार को बैठक की. इसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, केसी वेणुगोपाल, अजय माकन और अशोक गहलोत मौजूद होते हैं. सूत्रों की मानें तो हरियाणा की हार पर हुई पहली बैठक में राहुल गांधी ने सीधे कहा कि नतीजे अप्रत्याशित हैं और किसी हालत में स्वीकार नहीं हैं. 

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बैठक में राहुल गांधी ने पूछा कि जब सारे सर्वे कांग्रेस को जिता रहे थे तो ऐसे में हार की वजह की तह तक जाना होगा. इसके बाद राहुल गांधी ने हरियाणा में हार की असली वजह पकड़ ली. उन्होंने कहा कि पहले खुद और फिर पार्टी की सोच ने ही कांग्रेस को हरवा दिया. सूत्रों के मुताबिक राहुल ने ये तक कहा कि पूरे इलेक्शन को डुबवाने के पीछे पार्टी से बड़ा खुद को समझने वाले लोग हैं. और पार्टी का हित दूसरे नंबर पर रखकर कुछ नेताओं का अपना हित पूरे चुनाव पर हावी रहा. अब आगे फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनेगी. फिर वो हार की वजह खोजेगी. लेकिन सवाल ये है कि क्या इसके बाद कोई एक्शन राहुल गांधी ले पाएंगे?

दरअसल, 10 साल बाद भी हरियाणा नहीं जीत पाई कांग्रेस हार का सच खोजने के लिए फैक्ट फाइडिंग टीम बना रही है. जो कुछ पॉइंट्स का पता करने में जुटेगी और वो हैं-

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-पहले मैं, ऐसी महात्वाकांक्षा रखने वाले किन लोगों की वजह से हार हुई? 
-जाट बनाम गैर जाट का नैरेटिव क्या हुड्डा सरकार के नारे लगने से गैर जाट वोट विरोध में एकजुट हुआ? 
-गैर जाट और गैर जाटव दलित नेता की कमी, जबकि हुड्डा-सुरजेवाला जैसे जाट नेता, सैलजा, उदयभान जैसे दलित नेता मौजूद रहे. 
-टिकट बंटवारे में चूक- क्या हुड्डा कैंप के लोगों को ही ज्यादा टिकट दिए जाने से टिकट बंटवारे में चूक हुई? 
-गठबंधन और बागी- क्या गठबंधन करके जाते और बागियों को संभाल लेते तो खेल पलट जाता? 

बीजेपी प्रत्याशियों ने लगाए भितरघात के आरोप

हालांकि मीटिंग-मीटिंग का खेल तो चलता रहेगा. राहुल गांधी के सामने फैक्ट फाइंडिंग कमेटी तो बाद में जब बनेगी, तब सच सामने लाएगी. लेकिन कांग्रेस के तगड़े झगड़े का जो सच पहले से सामने है क्या कांग्रेस वो देखेगी? जहां कैप्टन अजय यादव कांग्रेस की ओबीसी सेल के चेयरमैन कबूलते हैं कि मिसमैनेजमेंट ने हरवा दिया. शमशेर सिंह असांध से हारे कांग्रेस प्रत्याशी कहते हैं हुड्डा कांग्रेस हारी, कांग्रेस नहीं. अंबाला कैंट से हारे कांग्रेस के प्रत्याशी कहते हैं कि B.D गैंग ने कांग्रेस को हराया. ऊंचाना कला से हारे कांग्रेस के प्रत्याशी कहते हैं कि बागियों की वजह से हारे  हैं. कांग्रेस के प्रत्याशी ही नहीं कार्यकर्ता भी कह रहे हैं कि पार्टी ने बंटाधार करने वालों के भरोसे छोड़ा था चुनाव.

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चुनाव से पहले ही हरियाणा कांग्रेस में आपस में ही इतनी खींचतान थी कि दावा हुआ टिकट तक ज्यादातर हुड्डा कैंप ले गया. अलग अलग रिपोर्ट्स के आधार पर सामने आया कि आंकड़ा कहता है कि हरियाणा में 90 में से 89 टिकट जो कांग्रेस ने बांटे, उनमें हुड्डा कैंप के प्रत्याशी 72 थे. सैलजा गुट के 10, केंद्रीय नेतृत्व की सिफारिश से चार मिले, सुरजेवाला कैंप को दो, अजय यादव अपने बेटे के लिए एक टिकट पाए. और इसमें हुड्डा कैंप के 42 फीसदी प्रत्याशी जीते. सैलजा कैंप के दस में से छह जीते. आरोप लग रहा है कि हुड्डा ये तक चाहते थे कि दूसरे गुट के ज्यादा लोग ना जीत पाएं. अब हार का सच पता करने को फैक्ट फाइंडिग कमेटी तो जब बनेगी, तब बनेगी, लेकिन कांग्रेस की हारे हउए प्रत्याशी जो अपनी रिपोर्ट दे रहे हैं, क्या कांग्रेस नेता वो सच सुनेंगे?

कांग्रेस में धांधली चलने का आऱोप

9 अक्टूबर को हरियाणा के नतीजों के बाद राहुल गांधी ने ये तो लिखा कि हरियाणा अप्रत्याशित नतीजे का विश्लेषण कर रहे हैं. कई सीट से आ रही शिकायत को चुनाव आयोग को बताएंगे. कांग्रेस पार्टी चुनाव आयोग में ये शिकायत भी करा आई है कि कई सीट पर ईवीएम में धांधली की आशंका है. लेकिन हरियाणा में कांग्रेस के भीतर ही अलग ही धांधली चलने का आरोप लगा है. जैसे गुटबाजी कैंपबाजी अपना डफली अपना राग मिसमैनेजमेंट बागी खुद खड़े कराना, गठबंधन ना करना, प्रभारी का फोन ना उठाना, प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव लड़ाने से ज्यादा लड़ने में व्यस्त रहना, राहुल के दौरे तक पर अंधेरे में नेताओं को रखना, ओबीसी नेताओं को भाव ना देना. जिसका फैक्ट खोजकर कांग्रेस को खुद ही उनके ही प्रत्याशी, नेता बताना चाहते हैं.

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हारे उम्मीदवारों के अपने-अपने दावे

राज्य में हार को लेकर पहला सच परविंदर पाल ने बताया. अंबाला कैंट में अनिल विज के खिलाफ उतरे कांग्रेस प्रत्याशी सैलजा कैंप से जुड़े हुए हैं. टिकट तो मिला लेकिन नंबर 3 पर रहे. दूसरे नंबर पर चित्रा सरवारा रहीं, जो कांग्रेस से बगावत करके उतरीं. बागी प्रत्याशी चित्रा-52581 वोट हासिल कर पाई. कांग्रेस प्रत्याशी परविंदर पाल को सिर्फ 14469 वोट मिले. पूछा गया क्यों तो उन्होंने आरोप लगाया कि हुड्डा कैंप ने ही चित्रा को उतरवाया. अंबाला सिटी में चित्रा सरवारा के पिता कांग्रेस प्रत्याशी निर्मल के खिलाफ बागियों को हुड्डा कैंप बैठवा लेते हैं, लेकिन अंबाला कैंट में बागी बनी चित्रा को नहीं हैंडल किया गया. नतीजा कांग्रेस हार गई.

दावा है कि हरियाणा में हुड्डा कैंप से जुड़े लोगों को 89 में 72 टिकट दिया गया, जिसमें 30 जीते. 42 फीसदी जीते. 58 फीसदी हारे. जबकि सैलजा गुट से जो टिकट मिल पाए उनमें से एक शमशेर सिंह तो कहते हैं कि हुड्डा चाहते ही नहीं थे कि सैलजा गुट के लोग जीत पाएं. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि हमारे यहां बीजेपी के अंदर के लोग थे, जो नहीं चाहते थे हम जीते. 
इसी तरह चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह जो बीजेपी से कांग्रेस में लोकसभा चुनाव में ही आ गए थे. ये मानते हैं कि हार की वजह का जिम्मेदार बागियों को कंट्रोल ना कर पाने वाले पार्टी के ही नेता हैं.

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सवाल है कि आखिर क्या सब कुछ हुड्डा के भरोसे छोड़कर कांग्रेस निश्चिंत हो गई थी या फिर राहुल गांधी को अंदाजा ही नहीं होने दिया गया कि हरियाणा में कांग्रेस के भीतर चल क्या रहा है. जहां नेता तो नेता कार्यकर्ता तक कहते हैं कि हुड्डा ऐसी जीत चाहते थे, जहां पार्टी हाईकमान फिर दिल्ली से भी कुछ ना कर पाए. 

एमपी-राजस्थान जैसे हालात नहीं चाहते थे हु़ड्डा

ऐसा ही आलम मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी दिखा था. मध्य प्रदेश में कमलनाथ और सिंधिया दोनों के हाथ हाईकमान ने जुड़वाए थे. खींचतान ऐसी हुई कि बाद में सरकार ही गिर गई. राजस्थान में गहलोत पायलट के हाथ हाईकमान ने जुडवाए थे. पांच साल तनाव ही बना रहा. हाईकमान ने छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल-टीएस सिंह देव हाथ तो जुड़वाया लेकिन तनाव बना रहा. दावा है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा यही हरियाणा में नहीं चाहते थे. वो चाहते थे कि जो जीते उनके गुट का जीते. ऐसी कंट्रोल्ड जीत जिसमें जीते विधायक सिर्फ उनके हों. ताकि हाईकमान से कोई दबाव ना बन पाए. लेकिन जीत को अपने हिसाब सेसेट करने में हरियाणा ही हाथ से निकलगया.

दस्तक देता सवाल ये है कि जो बातें अब सामने आ रही हैं, क्या इसका अंदाजा पार्टी हाईकमान को नहीं था? या फिर अंधेरे में राहुल गांधी को उन्हीं के नेता रख ले गए. जहां अब बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष को कहना पड़ता है कि चुनाव लड़ने की रणनीति को और दुरुस्त करना पड़ेगा. खड़गे पूछते हैं कि आखिर कैसे बागियों ने दर्जन भर सीट पर कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया. 14 मौजूदा विधायकों की हार की पड़ताल को अब खड़गे जरूरी बताते हैं. सूत्रों के मुताबिक खड़गे ने ये तक कह रहे हैं कि प्रचार के लिए उनकी एंट्री काफी देरी से कराई गई, उनको आखिरी वक्त में प्रचार के लिए कहा गया. वहीं चुनाव पर्यवेक्षक अजय माकन का कहना है कि आपसी मतभेद क्या रहे, ये आगे देखा जाएगा. 

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