छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री राम सेवक पैकरा वाकई बलशाली हैं या नहीं इसे लेकर राजनैतिक गलियारों में इन दिनों चर्चा छिड़ी हुई है. दरअसल पुलिस ट्रांसफर बोर्ड में गृहमंत्री की कोई पूछ परख नहीं होने से वे विधायकों के लिए नाममात्र के गृहमंत्री होकर रह गए हैं. विधायकों, सांसदों और नेताओं के सिफारिश पर पुलिस कर्मियों के ट्रांसफर नहीं होने से अब विपक्ष ही नहीं सत्ताधारी दल के विधायक भी गृहमंत्री की शक्तियों को लेकर तंज कसने में पीछे नहीं हैं.
विपक्ष जहां विधानसभा के भीतर गृहमंत्री पर चुटकी ले रहा है तो सत्ताधारी दल के विधायक अपने कमरों में. सभी का तर्क एक ही है कि आखिर क्यों पावर लेस हो गए हैं गृह मंत्री जी.
छत्तीसगसढ़ विधानसभा में राज्य के गृहमंत्री राम सेवक पैकरा को लेकर कांग्रेस ने जमकर चुटकी ली. उन पर तंज कसते हुए कोटा के विधायक और उप नेता प्रतिपक्ष कवासी लखमा ने कहा कि गृह मंत्री की न तो चपरासी सुनता है और न ही डीजीपी. इसके चलते प्रदेश में भय का वातावरण निर्मित हो गया है.
कवासी लखमा ने कहा कि प्रदेश में न तो व्यापारी सुरक्षित है और न ही आम आदमी. न तो लड़कियां सुरक्षित हैं और न ही नौजवान. गुंडे बदमाशों के आतंक के चलते लोगों में भय का माहौल है. दरअसल राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष सरकार को आड़े हाथों लेने में जुटा था. इसी के साथ गृह मंत्री पर भी तंज कसा जा रहा है.
रायपुर ग्रामीण से विधायक और पूर्व मंत्री सत्य नारायण शर्मा ने भी राज्य के गृहमंत्री राम सेवक पैकरा की स्थिति को लेकर उन पर तंज कसा. उन्होंने कहा कि राम सेवक पैकरा गृहमंत्री होने के बावजूद एक सिपाही का ट्रांसफर नहीं कर सकते. विधानसभा में गृहमंत्री की स्थिति को लेकर विपक्षी दल इन दिनों मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनकी सरकार पर ताने मारने से पीछे नहीं है. दरअसल विपक्ष गृहमंत्री की आड़ में मुख्यमंत्री पर निशाना साधने की कोशिश में जुटा है.
दरअसल विधायक हो या फिर सत्ताधारी दल या विपक्ष के नेता. पुलिस कर्मियों के तबादले के लिए अक्सर वे गृहमंत्री का दरवाजा खटखटाते हैं. गृहमंत्री उनकी गुहार सुनकर नोटशीट के साथ सम्बंधित पुलिस कर्मी का नाम ट्रांसफर लिस्ट में शामिल कराने के लिए पुलिस मुख्यालय भेज देते हैं. इस उम्मीद में कि पुलिस कर्मी को राहत मिलेगी उसका ट्रांसफर हो जाएगा, लेकिन नतीजा सिफर रहता है.
बीते चार सालों में गृहमंत्री राम सेवक पैकरा ने पुलिस कर्मियों के ट्रांसफर को लेकर सैकड़ों नोटशीट लिखी. लेकिन बमुश्किल एक या दो पुलिस कर्मियों का ट्रांसफर हो पाया. वो भी तब जब पीड़ित पुलिस कर्मी ने आला अफसरों की चौखट पर अपनी नाक रगड़ी.
आमतौर पर मंत्री अपने विभाग के सर्वे सर्वा माने जाते हैं. उम्मीद की जाती है कि उनके विभाग का हर एक फैसला उनके निर्देश पर ही लिया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री के साथ ऐसा नहीं हो रहा है. गृह विभाग ने उन्हें महत्वपूर्ण फैसलों से दरकिनार कर रखा है. हकीकत में उन्हें एक सिपाही के ट्रांसफर का भी अधिकार नहीं है.
विधानसभा में विपक्षियों के आरोपों की पड़ताल करने पर यह बात सामने आई कि वाकई छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री को अफसरों ने पावर लेस बना दिया है. आला अफसर सिर्फ मुख्यमंत्री की सुनते हैं. मुख्यमंत्री सचिवालय की नोटशीट उनकी टेबल पर तेजी से दौड़ती है. जबकि गृहमंत्री की नोटशीट सीधे अलमारी में कैद हो जाती है.
पुलिस ट्रांसफर बोर्ड में प्रकरण रखने का हवाला देकर आला अफसर अक्सर गृहमंत्री की नोटशीट पर यही टीप लिख कर उसे अपनी अलमारी में रख देते हैं. फिर साल दर साल उस फाइल में नयी नोटशीट का जमावड़ा लगते रहता है. इसलिए अब विपक्ष भी गृहमंत्री को 'नाम बड़े दर्शन छोटे' का ख़िताब देने में जुटा है.
उधर विपक्षियों के शब्द बाण को गृहमंत्री राम सेवक पैकरा सहजता से लेकर मुस्कुरा देते हैं. वो करें भी तो क्या, हकीकत वो बखूबी जानते हैं. फिलहाल गृहमंत्री की कमजोर पकड़ के चलते पुलिस कर्मियों के ट्रांसफर के लिए राजनेता मुख्यमंत्री के दरबार में हाजरी लगाना ही मुनासिब समझ रहे हैं.
रणविजय सिंह / सुनील नामदेव