कहानी शरद पवार की NCP की... सोनिया गांधी से बगावत कर बनी पार्टी, लेकिन खुद को कांग्रेस से अलग नहीं कर पाई

महाराष्ट्र के साथ-साथ केंद्र की सियासत में अच्छा-खासा दखल रखने वाले शरद पवार ने एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. शरद पवार 1999 से ही पार्टी के गठन से इसके अध्यक्ष थे. शरद पवार ने 1999 में सोनिया गांधी से बगावत कर एनसीपी का गठन किया था.

Advertisement
सोनिय गांधी से नाराज होकर शरद पवार ने 1999 में एनसीपी का गठन किया था. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे आर्काइव) सोनिय गांधी से नाराज होकर शरद पवार ने 1999 में एनसीपी का गठन किया था. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे आर्काइव)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 03 मई 2023,
  • अपडेटेड 8:17 PM IST

17 अप्रैल 1999. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मात्र एक वोट से गिर गई. इसी के साथ 13वीं लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई. इसी बीच सीताराम केसरी की जगह सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया. इसके साथ ही सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित करने की बातें होनी लगीं. इन्हीं सब वजहों से कांग्रेस में बगावत हो गई.

Advertisement

इस बगावत के तीन अहम किरदार- शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा. तीनों ने सोनिया गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. तीनों ने सोनिया गांधी के 'विदेशी मूल' होने पर सवाल उठाया. उनका कहना था कि एक विदेशी मूल के व्यक्ति को भारत का प्रधानमंत्री कैसे बनाया जा सकता है?

सिर्फ शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ही अकेले नहीं थे सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने पर सवाल उठा रहे थे. बल्कि, बीजेपी भी इस पर मुखर थी. 

तीनों ने सवाल उठाया, 'जब लोग पूछते हैं कि कांग्रेस अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में 98 करोड़ की आबादी वाले देश से एक भारतीय पाने में विफल रही है तो इसका कोई जवाब नहीं है.'

तीनों की बगावत इतनी बढ़ गई कि कांग्रेस को वर्किंग कमेटी की इमरजेंसी मीटिंग बुलानी पड़ी. बाद में तीनों को पार्टी से निकाल दिया. पार्टी से निकाले जाने के बाद जब तीनों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो शरद पवार ने कहा, 'समझौता करने का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि ये राष्ट्रीय गौरव से जुड़ा मुद्दा है.'

Advertisement
पीए संगमा, शरद पवार और तारिक अनवर. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे आर्काइव)

इसी बगावत से जन्मी एनसीपी

सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी की नींव रखी. शरद पवार ने तारिक अनवर और पीए संगमा के साथ मिलकर 10 जून 1999 को एनसीपी का गठन किया. 

उसी साल अक्टूबर में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए. एनसीपी का ये पहला विधानसभा चुनाव था. पार्टी ने राज्य की 288 सीटों में से 223 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए. इस चुनाव में एनसीपी ने 58 सीटें जीतीं.

चुनाव में किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. 75 सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी. चुनाव से पहले कांग्रेस और एनसीपी ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा था. लेकिन बाद में कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर सरकार बनाई. कांग्रेस के विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने. एनसीपी के छगन भुजबल डिप्टी सीएम बने.

एनसीपी के पहले अधिवेशन में पीए संगमा, शरद पवार और तारिक अनवर. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे आर्काइव)

राज्य के बाद फिर केंद्र में साथ आए

एनसीपी बनी थी कांग्रेस और सोनिया गांधी की बगावत से, लेकिन दोनों एक-दूजे का साथ नहीं छोड़ पाए. राज्य में तो दोनों ने मिलकर सरकार बना ली थी. बाद में दोनों ने केंद्र में मिलकर 10 साल सरकार भी चलाई.

Advertisement

1999 में जब आम चुनाव हुए तो बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी ने 182 सीटें जीतीं. कांग्रेस 114 सीट ही जीत सकी. बीजेपी ने दूसरी पार्टियों के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई. 

2004 में भी बीजेपी को भी अपनी जीत की उम्मीद थी. वाजपेयी को लगा कि समय से पहले चुनाव कराने से बीजेपी को फायदा होगा. लिहाजा तय समय से 6 महीने पहले ही चुनाव करा दिए गए. हालांकि, ये दांव उल्टा पड़ गया.

उस चुनाव में कांग्रेस ने 145 सीटें जीत लीं. बीजेपी 138 सीटों पर सिमट गई. बाद में कांग्रेस ने कई पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाई. शरद पवार की एनसीपी ने 9 सीटें हासिल कीं. एनसीपी ने भी यूपीए सरकार को समर्थन दिया. 10 साल तक मनमोहन सिंह की सरकार में शरद पवार कृषि मंत्री रहे. 

महाराष्ट्र में तो साथ-साथ ही रहे

महाराष्ट्र में तो एनसीपी और कांग्रेस साथ-साथ ही रहे. 1999 से लेकर अभी तक अलग ही नहीं हुए. 1999 से लेकर 2014 तक महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार रही. 

2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 122 तो शिवसेना ने 44 सीटें जीतीं. कांग्रेस 82 सीटें ही जीत सकी. बाद में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर सरकार बनाई. 

2019 के चुनाव के बाद शिवेसना ने बीजेपी से नाता तोड़ दिया. उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी की सरकार बनाई. हालांकि, शिवसेना के टूटने के कारण महाविकास अघाड़ी की सरकार भले ही गिर गई हो लेकिन कांग्रेस और एनसीपी अभी भी साथ हैं.

Advertisement
सोनिया गांधी और शरद पवार. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे आर्काइव)

पवार ने 20 साल बाद किया था खुलासा

2018 में एक इंटरव्यू में शरद पवार ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने को लेकर खुलासा किया था. उन्होंने कहा था कि उन्होंने कांग्रेस इसलिए छोड़ी थी क्योंकि 1999 में सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं.

इंटरव्यू में शरद पवार ने कहा था कि 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरने के बाद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद पर दावा पेश कर दिया था. 

उन्होंने कहा था, 'उस समय मैं या मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे सही उम्मीदवार थे. मैं घर पर था तब मुझे मीडिया से पता चला कि सोनिया गांधी ने दावा पेश कर दिया है. उसी समय मैंने कांग्रेस छोड़ने का फैसला ले लिया था.'

24 साल बाद एनसीपी अध्यक्ष का पद छोड़ा

1999 में शरद पवार ने जब एनसीपी का गठन किया था, तब उनकी उम्र 58 साल थी. तब से ही शरद पवार इसकी कमान संभाल रहे थे.

2 मई 2023 को शरद पवार ने अचानक एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया. इस्तीफे का ऐलान करते हुए उन्होंने कहा, '1999 में एनसीपी के गठन के बाद से मुझे अध्यक्ष रहने का मौका मिला. आज इसे 24 साल हो गए हैं. 1 मई 1960 से शुरू हुए ये सार्वजनिक जीवन की यात्रा पिछले 63 साल से बेरोकटोक जारी है. इस दौरान मैंने महाराष्ट्र और देश में अलग-अलग भूमिकाओं में सेवा की है.'

Advertisement

हालांकि, एनसीपी कार्यकर्ताओं ने शरद पवार से पद न छोड़ने की अपील की है. सिर्फ कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि बड़े नेता भी उनसे यही अपील कर रहे हैं. एनसीपी नेता छगन भुजबल ने कहा कि शरद पवार ही हमारे नेता हैं, उन्हें जो फैसला लेना हो लें, लेकिन पार्टी अध्यक्ष का पद न छोड़ें.

शरद पवार और अजित पवार. (फाइल फोटो- इंडिया टुडे आर्काइव)

कौन हैं शरद पवार?

शरद पवार का जन्म 12 दिसंबर 1940 को महाराष्ट्र के बारामती जिले (तब कस्बा) के कटेवाड़ी गांव में हुआ था. पढ़ाई के दौरान ही वो छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे.

1958 में कांग्रेस से जुड़े. 1962 में पुणे जिला युवा कांग्रेस अध्यक्ष बने. 1967 में कांग्रेस के टिकट पर बारामती विधानसभा से चुनाव लड़ा और 27 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने. 

1977 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी कांग्रेस (यू) और कांग्रेस (आई) में बंट गई. शरद पवार कांग्रेस (यू) में शामिल हुए. 1978 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दोनों हिस्सों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. लेकिन, राज्य में जनता पार्टी को रोकने के लिए साथ मिलकर सरकार बनाई. हालांकि, कुछ ही महीनों बाद शरद पवार ने कांग्रेस (यू) को भी तोड़ दिया और जनता पार्टी से जा मिले. जनता पार्टी के समर्थन से पवार 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बन गए. वो राज्य के अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं.

Advertisement

1987 में शरद पवार दोबारा कांग्रेस में लौट आए और 1988 में दोबारा मुख्यमंत्री बने. 1990 के विधानसभा चुनाव में पवार तीसरी बार और 1993 में चौथी बार मुख्यमंत्री बने.

अपने छह दशकों के राजनीतिक करियर में शरद पवार 6 बार विधायक, 6 बार सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे. महाराष्ट्र की सियासत के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में भी उनका अच्छा-खासा दखल है. 

शरद पवार के साथ एनसीपी का गठन करने वाले तारिक अनवर और पीए संगमा ने बाद में उनका साथ छोड़ दिया था. 2012 में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए पीए संगमा ने एनसीपी छोड़ दी थी. तो वहीं तारिक अनवर 2018 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement