59 महीने बाद 4% से नीचे आई महंगाई दर... जानें- कैसे कम हुई, मापने का क्या है तरीका

महंगाई से थोड़ी राहत मिली है. लगभग पांच साल बाद महंगाई दर चार फीसदी से नीचे आई है. खाने-पीने की चीजों की कीमतों में गिरावट के कारण महंगाई से थोड़ी राहत मिली है. ऐसे में जानते हैं कि महंगाई को कौन से फैक्टर प्रभावित करते हैं? और महंगाई को कैसे मापा जाता है?

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खाने-पीने की चीजों की कीमतों में कमी के चलते महंगाई दर कम हुई है. (फाइल फोटो-PTI) खाने-पीने की चीजों की कीमतों में कमी के चलते महंगाई दर कम हुई है. (फाइल फोटो-PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 13 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 5:32 PM IST

महंगाई कम हुई है. 59 महीने बाद. जुलाई में खुदरा महंगाई दर चार फीसदी के नीचे रही. आखिरी बार अगस्त 2019 में महंगाई दर चार फीसदी के नीचे थी.

सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई में खुदरा महंगाई दर 3.54% रही. इससे पहले जून में ये 5.08% थी. खाद्य महंगाई दर भी 9.36% से घटकर 5.42% पर आ गई. खाने-पीने की चीजों की कीमतें घटने की वजह से महंगाई से राहत मिली है. एक साल पहले जुलाई में खुदरा महंगाई दर 7.44% और खाद्य महंगाई दर 11.51% थी.

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सरकार के मुताबिक, कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) पर खुदरा महंगाई दर में कमी आई है. शहरी इलाकों में महंगाई दर जून में 4.39% थी, जो जुलाई में घटकर 2.98% हो गई. वहीं, ग्रामीण इलाकों में महंगाई दर जून में 5.66% थी. जुलाई में ये घटकर 4.10% पर आ गई.

महंगाई घटने की वजह क्या?

महंगाई घटने-बढ़ने में लगभग आधी हिस्सेदारी खाने-पीने की चीजों की होती है. जून की तुलना में जुलाई में खाद्य महंगाई दर लगभग आधी हो गई है. इस कारण जुलाई में महंगाई दर में बड़ी कमी आई है. 

जुलाई 2023 में खाद्य महंगाई दर 11.51% थी. इस साल जुलाई में ये घटकर 5.42% पर आ गई. जबकि, जून में ये 9.36% थी.

सब्जियों की महंगाई दर जुलाई में 6.83% रही, जबकि जून में ये 29.32% थी. इसी तरह से अनाज की महंगाई दर 8.75% से घटकर 8.14% हो गई. वहीं, दालों की महंगाई दर 16.07% से घटकर 14.77% पर आ गई. इसी तरह फलों की महंगाई दर भी 7.15% से कम होकर 3.84% हो गई.

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क्या होती है महंगाई दर?

महंगाई दर का मतलब है किसी सामान या सेवा की समय के साथ कीमत बढ़ना. इसे महीने और साल के हिसाब से मापते हैं. मसलन, कोई चीन सालभर पहले 100 रुपये की मिल रही थी, लेकिन अब 105 रुपये में मिल रही है. इस हिसाब से इसकी सालाना महंगाई दर 5 फीसदी रही.

महंगाई दर बढ़ने का सबसे बड़ा नुकसान ये होता है कि इससे समय के साथ मुद्रा का महत्व कम हो जाता है. यानी, अगर आपके पास आज 105 रुपये है तो वो सालभर पहले तक 100 रुपये के बराबर थे.

अभी महंगाई दर का आकलन 2012 के बेस प्राइस से किया जाता है. इससे अनुमान लगाया जाता है कि 2012 में 100 रुपये में आप जो चीज खरीद सकते थे, आज वही खरीदने के लिए आपको कितना खर्च करना होगा.

2012 में अगर आप 100 रुपये में कोई सामान खरीदते थे, तो आज उसी चीज को खरीदने के लिए आपको 192.9 रुपये खर्च करने होंगे. एक साल पहले तक आपको 186.3 रुपये खर्च करने पड़ते थे. चूंकि, एक साल में ही आपको उसी सामान को खरीदने के लिए 186.3 रुपये की बजाय 192.9 रुपये खर्च करने पड़े, इसलिए सालाना महंगाई दर 3.54% हो गई.

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कैसे मापते हैं महंगाई?

भारत में महंगाई मापने के दो इंडेक्स हैं. पहला है कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI. और दूसरा है होलसेल प्राइस इंडेक्स यानी WPI. 

CPI के जरिए खुदरा महंगाई दर निकाली जाती है. वहीं, WPI से थोक महंगाई दर को मापा जाता है. 

आप और हम जैसे आम लोग ग्राहक के तौर पर जो सामान खरीदते हैं, वो खुदरा बाजार से खरीदते हैं. सीपीआई के जरिए पता लगाया जाता है कि खुदरा बाजार में जो सामान है, वो कितना महंगा या सस्ता हो रहा है. 

वहीं, कारोबारी या कंपनियां थोक बाजार से सामान खरीदती हैं. WPI से थोक बाजार में सामान की कीमतों में होने वाले बदलाव का पता चलता है. 

दुनिया के कई देशों में WPI को ही महंगाई मापने के लिए मुख्य मानक माना जाता है, लेकिन भारत में CPI को मुख्य पैमाना माना जाता है.

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