JPC कितनी ताकतवर? जिससे राहुल गांधी ने उठाई स्टॉक मार्केट क्रैश की जांच की मांग

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने चार जून को स्टॉक मार्केट गिराने का आरोप लगाया है. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री ने लोगों को स्टॉक मार्केट में पैसा लगाने की सलाह दी. एग्जिट पोल के अगले दिन मार्केट ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए लेकिन 4 जून को खटाक से गिर गया. उन्होंने इसे बड़ा घोटाला बताते हुए इसकी जेपीसी जांच की मांग की है.

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राहुल गांधी (फोटो-PTI) राहुल गांधी (फोटो-PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 जून 2024,
  • अपडेटेड 6:38 AM IST

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने स्टॉक मार्केट को लेकर बीजेपी पर बड़ा आरोप लगाया है. उन्होंने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि अमित शाह ने लोगों को शेयर खरीदने की सलाह दी. इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्टॉक मार्केट में तेजी आने की बात कहते हुए लोगों को शेयर खरीदने की सलाह दी. फिर निर्मला सीतारमण ने भी ऐसी बात कही.

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राहुल ने कहा कि एग्जिट पोल के बाद अगले दिन शेयर बाजार ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए, लेकिन अगले ही दिन 4 जून को नतीजे वाले दिन शेयर मार्केट खटाक से अंडरग्राउंड में चला गया.

उन्होंने कहा कि मार्केट में गिरावट से 30 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. ये पैसा पांच करोड़ रिटेल इन्वेस्टर्स का था. उन्होंने इस पूरे मामले की जेपीसी से जांच कराने की मांग की है. इससे पहले भी राहुल गांधी कई मामलों की जांच के लिए जेपीसी की मांग कर चुके हैं.

पर ये जेपीसी होती क्या है? दरअसल, संसद को एक ऐसी एजेंसी की जरूरत होती है जिसपर पूरे सदन को भरोसा है. इसके लिए संसद की समितियां होती हैं. इन समितियों में संसद के सदस्य होते हैं. किसी बिल या फिर किसी सरकारी गतिविधियों में वित्तीय अनिमितताओं के मामलों की जांच के लिए जेपीसी का गठन किया जाता है.

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जेपीसी की जरूरत क्यों?

इसकी जरूरत इसलिए क्योंकि संसद के पास बहुत सारा काम होता है. इन कामों को निपटाने के लिए समय भी कम होता है. इस कारण कोई काम या मामला संसद के पास आता है तो वो उस पर गहराई से विचार नहीं कर पाती. ऐसे में बहुत सारे कामों को समितियां निपटाती हैं, जिन्हें संसदीय समितियां कहा जाता है. 

ज्वॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी यानी संयुक्त संसदीय समिति भी इसी मकसद से गठित की जाती है. इसे संयुक्त संसदीय समिति इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें दोनों सदनों- लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य होते हैं.

संसदीय समितियों का गठन संसद ही करती है. ये समितियां संसद के अध्यक्ष के निर्देश पर करती हैं और अपनी रिपोर्ट संसद या अध्यक्ष को सौंपती हैं. 

दो तरह की होती हैं समितियां

ये समितियां दो प्रकार की होती हैं. स्थायी समितियां और अस्थायी समितियां. स्थायी समितियों का कार्यकाल एक साल होता है और इनका काम लगातार जारी होता है. वित्तीय समितियां, विभागों से संबंधित समितियां और कुछ दूसरी तरह की समितियां स्थायी समितियां होती हैं.

वहीं, अस्थायी या तदर्थ समितियों का गठन कुछ खास मामलों के लिए किया जाता है. जब इनका काम खत्म हो जाता है तो इन समितियों का अस्तित्व भी खत्म हो जाता है. 

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संसद की संयुक्त समिति एक अस्थाई समिति होती है, जिसका गठन एक निश्चित अवधि के लिए किया जाता है. इसका मकसद एक खास मुद्दे को देखना होता है. जेपीसी का गठन तब होता है, जब एक सदन उसका प्रस्ताव पास कर दे और दूसरा सदन उसका समर्थन कर दे. 

काम क्या होता है?

जेपीसी में दोनों सदनों के सदस्यों को शामिल किया जाता है. समिति के सदस्यों की संख्या तय नहीं है. लेकिन फिर भी इसका गठन इस तरह से किया जाता है, ताकि सभी राजनीतिक पार्टियों के सदस्यों को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिले. 

आमतौर पर संयुक्त संसदीय समिति में राजस्यसभा की तुलना में लोकसभा से दोगुने सदस्य होते हैं. इनके पास किसी भी माध्यम से सबूत जुटाने का हक होता है. किसी भी मामले से जुड़े दस्तावेज मांग सकती है, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बुलाकर पूछताछ कर सकती है.

अगर कोई व्यक्ति या संस्था जेपीसी के सामने पेश नहीं होता है तो इसे संसद की अवमानना का उल्लंघन माना जाता है. इसे लेकर जेपीसी उस व्यक्ति या संस्था से लिखित या मौखिक जवाब मांग सकती है. 

कैसे करती है काम?

संसद की ओर से जेपीसी का गठन किया जाता है और कुछ प्वॉइंट्स भी बताए जाते हैं, जिनकी जांच की जाती है. 

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जेपीसी की जांच में अलग-अलग सहयोगियों, विशेषज्ञों और इच्छुक समूहों को आमंत्रित किया जाता है. तकनीकी सलाह के लिए तकनीकी विशेषज्ञों को भी नियुक्त किया जाता है. इसके अलावा कुछ मुद्दों पर आम जनता से भी सलाह ली जाती है.

इसके काम करने का पूरा सिस्टम गोपनीय रखा जाता है. लेकिन इसके अध्यक्ष समय-समय पर मीडिया को जानकारी देते रहते हैं. जनहित से जुड़े मुद्दों को छोड़कर बाकी सभी मामलों की रिपोर्ट को भी गोपनीय रखा जाता है. इसके अलावा किसी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने या न करने का अंतिम फैसला सरकार के ऊपर रहता है. एक बार जांच रिपोर्ट संसद में पेश हो जाने के बाद जेपीसी का अस्तित्व खत्म हो जाता है.

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